Thursday 22 December 2016

'एक रजाई तीन लुगाई' घटिया सोच की उपज

भोजपुरी फिल्म 'एक रजाई तीन लुगाई' कुछ लोगों की खटिया सोच को उजागर करती है। फिल्म तो अभी तक देखने को मिली नहीं है, पर फिल्म का टाइटल जब इतना खटिया रखा गया है तो इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिल्म कैसी होगी? 


यह तो भोजपुरी संस्कृति को बदनाम करने की एक बड़ी सोच लगती है। दुःख तो तब और बढ़ गया जब पता चला फिल्म की निर्मात्री एक महिला ही यानी एकता बहल जी हैं। एक सम्मानित, शिक्षित महिला इतनी गंदी टाइटल रखने को तैयार कैसे हो गईं, यह समझ से परे है। 
छत्तीगढ़ के मंजुल ठाकुर की हर कोई तारीफ करता था, उन्होंने भोजपुरी में कई अच्छी फिल्में निर्देशित कीऔर उनकी राजा बाबु ने तो दर्शकों की खूब तालियाँ बटोरी पर उनकी यह फिल्म 'एक रजाई तीन लुगाई', टाइटल देखकर ही उनकी सोच को प्रदर्शित करता है और यह भी समझ से परे है कि उन्होंने ऐसा कैसे कर दिया, क्योंकि ऐसी टाइटिल वाली फिल्म की उम्मीद उनसे नहीं थी।


चलिए, अब बात कर लेते हैं, फिल्म के हीरो और खांटी भोजपुरिया और बलिया के लाल यश कुमार की। यश कुमार को आप अगर फेसबुक या व्हाट्सएप्प ग्रुप पर फॉलो करते होंगे तो आप उनके विचारों और उनकी दार्शिनिक उपदेशों से जरूर प्रभावित होंगे, 'एक रजाई तीन लुगाई' से भी। एक तरफ यश का उपदेश और दूसरी तरफ 'एक रजाई तीन लुगाई' का उनके द्वारा पोस्ट किया हुआ पोस्टर। कोई कैसे यश के इस दोहरेपन को पचा सकता है? यश कुमार का असली चेहरा कौन सा है? उपदेशों वाला या 'एक रजाई तीन लुगाई' वाला? यह तो यश ही जाने, क्योंकि उनके फालोवर तो अब कंफ्यूज ही होंगे!


केवल फिल्म से जुड़े लोग ही नहीं जिमेदार नहीं हैं, इसके लिए टाइटल रजिस्टर्ड करने वाली संस्था के साथ सेंसर बोर्ड भी जिमेदार हैं.... 


एक तरफ भोजपुरी इंडिया के बाहर अपना पंख पसार रही है, मॉरीशस और दुबई के बाद लंदन में इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड की तैयारी हो रही है तो दूसरी तरफ 'एक रजाई तीन लुगाई' जैसी घटिया टाइटल की फिल्में रिलीज के कगार पर खड़ी भोजपुरी सिनेमा उद्योग के साथ ही भोजपुरियों को भी मुँह चिढ़ा रही हैं। ऐसे फिल्म मकेरों का बहिष्कार होना ही चाहिए।

No comments:

Post a Comment