Friday 13 February 2015

मानसून-सत्र में भोजपुरी को मान्यताः मनोज तिवारी


एक साल बाद फिर से दिल्ली विधान सभा का चुनाव 7 फरवरी को होने जा रहा है, पिछले चुनाव में पिछली बार किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. इस बार केंद्र में सरकार बना चुकी भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों दिल्ली में सरकार बनाने का दावा कर रही हैं और दोनों में कांटे की टक्कर चल  रहा है. पिछले चुनाव में आप को पूर्वांचलियांे ने पूरा सपोर्ट किया था. इसी को देखते हुए भाजपा ने भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता-गायक और नार्थ ईस्ट दिल्ली के संसद मनोज तिवारी को पूर्वांचली वोटों का ध्रुर्वीकरण के लिए लगाया है और मनोज इस काम में लग भी गए  है. अभिनेता  से राजनेता बने मनोज बड़ी तेजी से राजनेता के रूप में लोकप्रिय हो रहे है. तभी तो झारखण्ड चुनाव में प्रधानमंत्री के बाद मनोज तिवारी की सबसे ज्यादा मांग थी, और मनोज ने सबसे ज्यादा 42 जनसभाएं की और झारखण्ड बनने के बाद पहली बार पूर्ण बहुमत की बीजेपी सरकार बनी है. अब दिल्ली की बारी है.  हाल ही में संसद मनोज तिवारी से भोजपुरी पंचायत ने बातचित किया। प्रतुस्त है बाचीत का प्रमुख अंशः

भोजपुरी कब तक आठवी अनुसूची में शामिल होइ? 
पांचवा सत्र में !

पाचवा सत्र यानी मानसून सत्र में?
हाँ

बिहार चुनाव के पहले?
हँसे, नहीं में ये शुरू की कह रहा हूँ कि 2015 में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता मिल जाएगी। हमारी जिम्मेदारी है कि भोजपुरी को जल्द से जल्द आठवी अनुसूची में शामिल कर लिया जाए.  प्रधानमंत्री मोदी जी एवं गृहमंत्री जी बहुत गंभीर है.

अभिनेता से सांसद बने लोगो का ट्रैक रिकाॅर्ड अच्छा नहीं रहा है, वो काम नहीं करते, आपने अपने ७ महीने में क्या काम किया है?
मैंने अब तक 586 करोड़  का काम कराया रहा हूँ, इनमें से कई काम पूरा हो चुका हैं और कई काम बड़ी तेजी से हो रहे हैं। 277  करोड़ का पावर स्टेशन बन चुका है, हर्षविहार में जिसका उत्घाटन अरुण जेटली जी एवं पियूष गोयल जी किया। 100 से 125 करोड़  का सीवर, रोड, पार्क आदि का काम भी कम्पलीट हो चुका है.

इसके अलावे जो कोंग्रेस सरकार और आम आदमी के समय से रुका हुआ कई काम पड़ा था उसको फण्ड मुहैया कराकर तेजी से पूरा करवाया, जो 1500 करोड़ से ऊपर का है, उसमे 586 करोड़ का काम जोड़ देंगे तो ये 2000 हजार करोड़ का आँकड़ा पार कर जाएगा. जो ७ महीने में रिकार्ड काम करने की कहानी बयान कर रहा है.

दिल्ली चुनाव में आम आदमी से भाजपा को कड़ी ठक्कर मिल रही हैं, भाजपा की क्या रणनीति हैं?
ऐसा कुछ नहीं हैं, चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी ‘आठ आदमी पार्टी’ बनकर रह जाएगी। क्योंकि
किरण बेदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनाने जा रही हैं।

Monday 9 February 2015

स्वाती पाण्डेय - दमदार भोजपुरिया

स्वाती पाण्डेय - (50)
28 वर्ष, गायन - अंतरराष्ट्रीय

संगीत के साधिका



स्वस्ति पाण्डेय के भोजपुरी लोक संगीत और संस्कृति के विश्व स्तर पर प्रचार प्रसार में योगदानः ’गंगा जी के पनिया झलमल, नइया लागेला किनार’ - अमेरिका के प्रशांत महासागर के पश्चिमी तट, भोर भिनसार के अरघ के बेरा, आ ओह पर गूँजत छठी माई के गीत। लहरन के आवाज के चीरत, हाड़ कपकपाने आला सीत के जीतत, यह आवाज हैे भोजपुरिया माटी के दमदार बेटी, स्वस्ति पाण्डेय का हैं। 

संगीत के साधिका के साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी, स्वस्ति पाण्डेय के जन्मस्थली आरा के महाराजा हाता है। तो इनका कर्मस्थली अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में अवस्थित सैन होजे नगर है। बाबूजी, डाॅ. कपिल देव पाण्डेय (हिंदी के प्राध्यापक, जैन काॅलेज आरा) के स्नेहिल छाया असामयिक निधन के कारण बचपन में ही उठ गया था। इससे उनकी किशोरावस्था बड़ी विषम परिस्थिति में बिता था। माताजी (श्रीमती शुभा पाण्डेय) जीवन के उस विशम समय को बड़ी चुनौती के साथ डट के मुकाबला की और स्वस्ति के पठन पाठन पर किसी तरह का कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ने दिया। विद्याध्ययन के साथ-साथ खेलकूद, एनसीसी आ विशेषकर संगीत, में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए निरंतर प्रेरित करती रही।

महेन्द्र प्रताप सिंह - दमदार भोजपुरिया

महेन्द्र प्रताप सिंह - (49)
62 वर्ष, रंगमंच

रंगकर्मी



रंगश्री के संस्थापक महेन्द्र प्रताप सिंह विश्व भर में अपने नाटक के मंचन के लिए जाने जाते हैं। रंगश्री भोजपुरी रंगमंच को समर्पित एक नाट्य संगठन हैं जो भोजपुरी नाटकों को सालो भर विभिन्न जगहों पर मंचन करता रहता हैं, जिससे समाज में जागरूता आए। रंगश्री समाज के बुराइयांे पर कटाक्ष करती हुई नाटकों का मंचन करता है। महेन्द्र प्रताप भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के विरासत को जींदा रखने के लिए कठिन परिश्रम करते हुए नजर आते हैं। 31 जुलाई 1952 को भोजपुर जिले के चंदी गांव में महेन्द्र प्रताप सिंह का जन्म हुआ था। 

वे अब तक दो भोजपुरी नाटक ‘कटोच’ और ‘बिरजू के बियाह’ लिख चुके है। ‘बिरजू के बियाह’ दहेज प्रथा पर चोट करती हुई नाटक हैं, जो काफी लोकप्रिय नाटक हैं।

अंजना सिंह - दमदार भोजपुरिया

अंजना सिंह - (48)
24 वर्ष, फिल्म


हाॅट केक


भोजपुरी की हाॅट केक कही जाने वाली अभिनेत्री अंजना सिंह की बादशाहत लगातार तीसरे साल भी जारी है। पिछले दो साल में सर्वाधिक फिल्मो करने वाली अंजना  की  इस साल भी बाॅक्स आॅफिस पर सर्वाधिक फिल्मे रिलीज हुई। भोजपुरिया बाॅक्स ऑफिस पर साल 2014 में दस्तक देने वाली  पहली फिल्म करे ला कमाल धरती के लाल और आखिरी फिल्म लाल दुपट्टे वाली, इन दोनों ही फिल्मो में अंजना मुख्य भूमिका में थी।  इस दोनों ही फिल्मो के  बीच अंजना की सभी बड़े कलाकारों के साथ दस और फिल्मे रिलीज हुई। पिछले तीन सालों में अंजना सिंह ने रिकार्ड कुल 36 फिल्में की हैं, और फिल्म सेक्शन में अंजना के लिए ही सबसे ज्यादा वोट आए।

7 अगस्त 1990 को उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में अंजना का जन्म हुआ। चार भाई-बहनों में अंजना दूसरे नंबर की थी। बहराइच से स्कुली शिक्षा ग्रहण करने के बाद अंजना लखनऊ आ गई और उसी साल वो मिस लखनऊ प्रतियोगिता में दुसरे नंबर पर रहीं। फिर क्या था वो मुंबई आ गई और भोजपुरी फिल्मों की सबसे डिमांडिग अभिनेत्री बन गई।

आलोचनाः
ज्यादा अंगप्रर्दशन करती हैं।

संजय कु. तिवारी - दमदार भोजपुरिया

संजय कु. तिवारी - (47)
46 वर्ष, उद्योगपति, अतरराष्ट्रीय

दिलदार



भारत के बारह जाकर जाॅब करना और फिर अपनी बिजनेश करना, यह किसी भारतीय और भोजपुरियों के लिए किसी करिश्में से कम नहीं हैं। पेशे से इंजीनियर संजय कुमार तिवारी दो दशक पहले गल्फ में जाॅब करने गये संजय आज एक बड़ी कंपनी के मालिक है। जब उन्होंने जाॅब छोड़ी तो वो एक मल्टीनेशनल कंपनी में जेनरल 
मनेजर’ के पद पर थे। उनकी कंपनी ‘नेशनल स्टोन  ’में लगभग 200 लोग काम करते हैं उनसे से अधिकतर बिहारी ही है। संजय सिवान जिले के तितरा गांव के हैं, अपनी पढ़ाई उन्होंने रांची से की हैं।

मो. इरसाद - दमदार भोजपुरिया

मो. इरसाद -  (46)
39 वर्ष, अंतरराष्ट्रीय

भोजपुरी के स्टार प्रचारक


मोहम्मद इरसाद सिदिकी, समाजिक, मसकट, ओमान इरसाद भाई गल्फ देशों में और खासकर मसकट में भोजपुरी भाषा और संस्कृति के विकास में वषों से लगे है और काफी हद तक गल्फ में भोजपुरी स्थापित में सफल भी रहे है।

कुशीनगर के लक्षमीपुर गाँव निवासी मो. इरसाद विश्व में भोजपुरी के सेवक रूप में  काफी लोकप्रिय है, उन्होंने भोजपुरी माँ की सेवा के साथ ही अपने इराके के बहुत सारे गायको को अंतरराष्ट्रीय मंच मुहैया कराया है। देश के लगभग सभी नामचिन भोजपुरी गायकों एवं समाजिक कार्यकत्ताओं को मसकट में भोजपुरी मंच पर उनका सम्मान बढ़ाया है।

इरसार एक क्रिकेट खिड़ाली के साथ एक क्रिकेट कोच की भूमिका मसकट के टीम के लिए बखूबी निभा रहे है। वे पेश्ेावर क्रिकेट कोच है जो आॅस्टेलिया और पाकिस्तान से लेवल 2 की कोचिंग की कोर्स किए है। इसाद ने दश के कई हजार लोगों को रोजगार दिलाने में मदद की है और करते रहते है, हर साल हजारों भोजपुरियों को वे रोजगार गल्फ देश में दिलाते है। मो. इरसाद के समाजिक कार्य को देखते हुए उनको कई सम्मान से सम्मानित किया गया है।

आलेाचनाः 
अपनी भावनाओं को छुपा नहीं पात हैं, जिसके चलते लोगो को लगता हैं कि वो बोलते ज्यादा हैं।

राजेन्द्र प्रसाद सिंह - दमदार भोजपुरिया

राजेन्द्र प्रसाद सिंह - (45)
49 वर्ष, शिक्षा


भाषा वैज्ञानिक



डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह भोजपुरी के प्रमुख भाषा वैज्ञानिक एवं आलोचक हैं। पूर्वोत्तर भारत की भाषाओं पर सम्पूर्ण रूप से काम करनवाले वे हिंदी के पहले भाषावैज्ञानिक हैं। उन्होंने एक साथ पंचानवे भाषाओं का शब्दकोष संपादित किया है। वे ऐसे पहले आलोचक हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य में सबाल्टर्न अध्ययन का सूत्रपात किया। भोजपुरी में दलित चेतना को रेखांकित करनेवाले भी वे पहले आलोचक हैं। साथ ही भोजपुरी का पहला त्रिभाषी कोष का संपादन करने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है। 

भोजपुरी माटी में एक से बढ़कर एक सपूत दिए हैं जिनमें डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह अंतरराष्ट्रीय पर भोजपुरी भाषा की विशेषता एवं उपयोगिता को स्थापित करने में अतुलनीय योगदान दिया है।

डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह का जन्म रोहताह जिले के अरंग गांव में 5 नवबंर 1965 को हुआ था। शांति प्रसास जैस महाविद्यालय में राजेन्द्र प्रसाद हिन्दी के प्रोफेसर हैं।

गिरजानन्द सिंह 'बिसेसर' - दमदार भोजपुरिया

गिरजानन्द सिंह  'बिसेसर' - (44)

38 वर्ष, अंतरराष्ट्रीय


माॅरीशस के कर्मयोगी


माॅरीशस के शिक्षाविद और पत्रकार गिरजानंन्द सिंह बिसेसर ‘अरविंद’ भारत सरकार के आईसीसीआर जनरल कल्चर स्काॅलरसीप 1995 में दी थी। उसके तहत वे दिल्ली यूनिवसिर्टी से बीए एवं बीएड किया, उसके बाद यूनिर्वसिटी आॅफ ब्रम्धिटन, यूके (ठतपहीजवदए न्ज्ञ) से मास्टर डीग्री हासिल किया। 7 सालो तक शिक्षण के साथ जुडे रहे। फिर 2007 में महात्मा गाॅधी संस्थान के भोजपुरी, लोक संस्कृति विभाग में लेक्चरर के पद पर आसीन हुए। इसके साथ ही वे मीडिया के साथ जुड़े रहे एवं भोजपुरी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते रहे है। माॅरीशस में प्रचलित गमत ज्ञान को पुनः स्थापित करने के लिए कई साल बाद गमत  गायको को मंच दीलाने के लिए प्रोग्राम प्रस्तुत करवाए। ‘भोजपुरी सफल‘ प्रोग्राम में भोजपुरी कलाकारों से भेट कर और भोजपुरी संस्कृति को केन्द्र में रखा। रेडियों में माॅरीशस के अनेक जगहों से लाइव रेडियों कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए मौका दिया।

अरविंद बिसेसर को ही महत्मा गाँधी संस्थान में अनेक शोध काम करने और भोजपुरी शिक्षको को स्थापित करने को श्रेय जाता है और भोजपुरी भाषा के परिचय, कल्चर स्टडीज और बिगिनर कोर्स इन भोजपुरी की शुरूआत करवाया एवं संयोजन करते रहे। उन्होंने जो काम भोजपुरी के स्कुली शिक्षा में योगदान दिया उसके लिए उनका नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है।

अरविंद ने गिरमिटिया मजदूरों के माॅरीशस आगमन के 180 साल पूरे होने पर हुए अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन के संयोजक के रूप महत्वपूर्ण योगदान दिया और यह कार्यक्रम सफल रहा। 

बीएन तिवारी - दमदार भोजपुरिया

बीएन तिवारी -  (43)
72 वर्ष, सामाजिक


भाईजी भोजपुरीया



बाबा ब्रह्यमेश्वर नाथ की नगरी ब्रह्यपुर के सपीप गंगा नदी और धर्मावती नदी के मध्य स्थित नंदपुर ग्राम में रामनवमी के दिन भोजपुरी के सेवक के रूप में जन्म हुआ।

50 वर्षो से भोजपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित बैद्यनाथ तिवारी ‘भाई जी भोजपुरीया’ विश्व स्तर पर भोजपुरी के प्रचार-प्रसार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भईजी भोजपुरिया बिहार झारखण्ड ही नहीं अपितु समस्त देश में आजीवन भोजपुरी की सेवा में समर्पित रहे है।

आलोचनाः
बहुत भावुक इंसान हैं, भावनाओं में कभी-कभार भह जाते हैं!

लोक सोहोदेव - दमदार भोजपुरिया

लोक सोहोदेव -  (42)
51 वर्ष, अंतरराष्ट्रीय

रियल हीरो



माॅरीशस के गायक एवं लेखक लोकदेव सोहोदेव ’सशि’ ने अपनी लेखनी से यूरोपियन देशों में भोजपुरी के प्रचार-प्रसार में बहुत ही महत्वपूर्ण दिया है।  उन्होंने अपनी अंग्रेजी पुस्तक ’द इम्पैक्ट आॅफ माॅरीशसियन 
भोजपुरी ट्रेडिशसन इन ब्रिट्रेन एण्ड यूरोप’ के माध्य से भोजपुरी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को बड़े विस्तार से लिखा है, अंग्रेजी में यह किताब होने कारण अंग्रेजो में भी यह किताब काफी लोकप्रिय है। ’बिहारी बाबु’ और ’भोजपुरी गुनगुना’ भी काफी लोकप्रिय किताबों में शुमार है, मेरे हिसाब से तो बिहारी बाबु की कहानी पर तो फिल्म बन सकती है, वही ’भोजपुरी गुनगुना’ कमाल की किताब है, बहुत सुन्दर गीतों से पूर्ण है। 30 अक्टूबर 2014 को उनकी एक नई पुस्तक ’हीरा’ का लोकार्पण माॅरीशस के राष्ट्रपति ने किया। 

सशि लेखक और पत्रकार के साथ-साथ एक अच्छे गायक भी है जो खुद अपने लिए गीत भी लिखते है। उनका अलबम ’चैरंगा झंडा’ काफी लोकप्रिय हुआ है और वे अपने नये अलबम पर काम कर रहे है, जो अगले साल में रीलिज होगी।

अमरजीत मिश्रा - दमदार भोजपुरिया

अमरजीत मिश्रा - (41)
45 वर्ष, सामाजिक

जुझारू नेता


देश की आर्थिक राजधानी मुंबई जैसे शहर में उत्तर भारतीयों का प्रतिनिधी करना ही अपने आप में बड़ी बात है। मुंबई में उत्तर भारतीयों के विकास एवं उनके उत्थान के साथ अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति समर्पित अमरजीत मिश्रा आज एक संस्था बन चुके है। जो किसी की परवाह न करते हुए अपनी माटी, भाषा और 
संस्कृति के प्रचार-प्रसार में वर्षो से समर्पित है।

20 जून 1969 को मुंबई में जन्मे अमरजीत मिश्रा को अपने परिवार से अपनी भाषा के साथ जो संस्कार और संस्कृति मिली उसको संजो के रखने के लिए उन्होंने सोसल कल्चलर आॅगानाइजेशन - अभियान के तहत हर साल सावन में पूरे मंुबई में कजरी महोत्सव करते है। उन्होंने 1989 में उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस मनाने की शुरूआत की जो आज भी जारी है, साथ ही दो विश्व भोजपुरी सम्मेलन मुंबई में करा चुके है।

1990 से 2000 तक इन्होंने जनसत्ता डेली में पत्रकारिता की है, उनके बाद ये भाजपा में शामिल हो गए और आज ये मुंबई भाजपा के महामंत्री पद पर आसीन है।

बिपिन बहार - दमदार भोजपुरिया

बिपिन बहार  -  (40)
39 वर्ष, फिल्म

बवाली गीतकार


विपिन कुमार उपाध्याय यानी विपिन बहार पिछले सत्रह सालों में भोजपुरी के लोकगीत, गजल, भजन व सामयिक गीत मिलाकर कुल 4000 चार हजार से अधिक गीत लिख चुके हैं इनके गीतों को मनोज तिवारी मृदुल, कल्पना, इंदू सोनाली, पवन सिंह, खेंसारी लाल, निरहुआ, कुमार शानू, उदित नारायण, लखवीर सिंह लक्खा, पामेला जैन आदि गायकों ने अपनी आवाज दी है। इन्होंने कुछ फिल्मो में अभियन भी किये है। विश्व प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह द्वारा गाया हुआ एकमात्र भोजपुरी गीत भी बिपिन बहार का लिखा हुआ। 

बिपिन बहार सिवान जिले के बलऊं गांव में जन्में दिल्ली से पढ़ाई की हैं। बिपिन कभी सद्दाम, कभी बुश, कभी आतंकवाद या जनलोकपाल, कभी बिहारी मराठी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी अपनी कलम चलाकर भोजपुरी समाज का पक्ष रखते रहे हैं। मुंबई में रहकर भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए हमेशा तत्पर रहे। राज ठाकरे विवाद हो या फिल्म फेडरेशन द्वारा भोजपुरी शूटिंग पर प्रतिबंध का मामला, बिपिन ने हमेशा आगे आकर जी जान से गलत की खिलाफत की। 2014 में गीतों की रीलिज फिल्में - तेरे नाम, शोला शबनम, चरणों की सौगंध, नगीना आदि हैं। शीघ्र प्रकाश्य पुस्तकें -- थेंथर मन (भोजपुरी कविता संग्रह) और धर्मांतरण का सच (धार्मिक विवेचना)हिंदी।

आलोचनाः
तु खालू तिरंगा, गोरिया हो ..... जैसे गीतों के रचयिता!

पं. हरिराम द्ववेदी - दमदार भोजपुरिया

पं. हरिराम द्ववेदी - (39)
78 वर्ष, साहित्यकारा

श्रद्धावनत

पंडित हरिराम द्ववेदी अपनी लोक संस्कृति के प्रति पूरी निष्ठा के समर्पित, लोक मान्यताओं के प्रति श्रद्धावनत, लोकजीवन के निकट रहकर न केवल कुछ कहने की कसमसाहट वरन् लोक जीवन जीने के सुखद अनुभव से परिपूर्ण। पारम्परिक लोक  गीतों के प्रति विनत और उसी धरातल पर उसी बोली-भाषा में कुछ सकने की आकुलता से भरे अनवरत प्रयत्नशील रहते है।

पंडित हरिराम द्ववेदी का जन्म 12 मार्च 1936 को उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले के शेरवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम स्व. पं. शुकदेव द्विवेदी एवं हरिराम द्ववेदी ने एम. ए., बीएड. तक पढ़ाई की है। लगभग तीन दशक तक आकाशवाणी की प्रसारण सेवा से सम्बद्ध रहकर मार्च 1994 में सेवानिवृत हुए।

पं. हरिराम द्ववेदी जी ने 10 भोजपुरी की किताबे लिखे हैं, उनमें दो भोजपुरी गीतों का संग्रह है, नदियों गइल दुबराय और अँगनइया को लोगों ने हाथों-हाथ लिया। इसके एक-एक गीत दिल को छू जाता है।

विवेकी राय - दमदार भोजपुरिया

विवेकी राय - (38)
52 वर्ष, साहित्यकार

साहित्यकार और पत्रकार


साहित्यकार व पत्रकार विवेकी राय हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार हैं। मनबोध मास्टर की डायरी हो या जनसत्ता के  मुंबई संस्करण में  में प्रकाशित स्तंभ ‘अड़बड़ भइया की भोजपुरी चिट्ठी’ आज भी लोगों को याद हैं।

मूल रूप से गाजीपुर के सोनवानी नामक ग्राम में 19 नवम्बर 1924 को जन्में विवेकी राय जी को उत्तर प्रदेश सरकार ने विभिन्न सम्मान दिये हैं। वे 50 से अधिक पुस्तकों की रचना कर चुके हैं।

दिनेश प्रताप सिंह - दमदार भोजपुरिया

दिनेश प्रताप सिंह - (36)
39 वर्ष, राजनीति

दिल्ली में बिहारीयों का नेता


बिहार की मिट्टी में गजब की उर्वरा शक्ति रही है। यहां के लोग जहां भी होते हैं उनकी मेहनत नजर आ जाती है। इसी संदर्भ में एक नाम है दिनेश प्रताप सिंह का। पिछले वर्ष अक्टूबर में उन्हें भाजपा दिल्ली प्रदेश में पूर्वांचल मोर्चा का अध्यक्ष पद का दायित्व मिला है। 15 जनवरी, 1975  को सिवान के सरउत गांव में जन्में दिनेश प्रताप सिंह पर उनके पिता श्री भगवान सिंह व माता अहिल्या देवी के संस्कारों का सार्थक असर पड़ा। बचपन में जो संस्कार दिनेश प्रताप सिंह ने प्राप्त किए उन संस्कारों को आज भी वो संयोजे हुए हैं। राजनीतिक शास्त्र व इतिहास से स्नातक करने वाले दिनेश प्रताप सिंह ने दिल्ली में आकर बिहार के लोगों को एकजुट करने का प्रयास किया। इस संदर्भ में उन्होंने दिल्ली में बिहार जागरण मंच की स्थापना की और छठ पूजा को एक भव्यता देने में उनके मंच ने सराहनीय कार्य किया।

आलोचनाः
दिनेश प्रताप सिंह एक सधे हुए राजनीतिज्ञ हैं। दमदार तरीके से बोलते हैं। उनका यह बोलना ही बहुत से लोगों को पसंद नहीं आता। उनके शुभचिंतक भी यहीं चाहते हैं कि वो अपनी वाचाल प्रवृति पर काबू करें।

मनोज श्रीवास्तव - दमदार भोजपुरिया

मनोज श्रीवास्तव - (37)
52 वर्ष, पत्रकार

व्यंगकार


वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभ लेखक मनोज श्रीवास्तव पिछले कई वर्षों से भोजपुरी संसार पत्रिका का समन्वय संपादन का कार्य कर रहे हैं। भोजपुरी साहित्य व भोजपुरी आंदोलन को बारिक नजरों से अगर कोई परखता रहा है तो वह नाम है मनोज श्रीवास्तव। मनोज श्रीवास्तव की पहचान भोजपुरी साहित्य-पत्रकारिता में एक व्यंग्यकार के रूप में है। मूल रूप से सिवान जिला के लहुरी कोड़िया के रहने वाले मनोज श्रीवास्तव वर्तमान में लखनऊ को अपना कर्म भूमि बनाए हुए हैं।

रवीन्द्र श्रीवास्तव - दमदार भोजपुरिया

रवीन्द्र श्रीवास्तव जुगानी  - (35)

72 वर्ष, पत्रकार

प्रखर वक्ता


भोजपुरी पत्रकारिता को बुलंदी दिलाने में रवीन्द्र श्रीवास्तव जुगानी का भी अहम योगदान है। 12 मई 1942 को गोरखपुर में जन्में रवीन्द्र श्रीवास्तव ने आकाशवाणी के माध्यम से भोजपुरी साहित्य का प्रचार किया है। उनका स्तंभ ‘बेगुंची चलल फुंकावे नाल’भी बहुत प्रसिद्ध रहा है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से प्राप्त कर चुके रवीन्द्र श्रीवास्तव जुगानी भोजपुरी पत्रकारिता के आधार स्तंभ पत्रकारों में शुमार हैं.

ओंकारेश्वर पांडेय - दमदार भोजपुरिया

ओंकारेश्वर पांडेय - (34)
50 वर्ष, पत्रकार

बेबाक पत्रकारिता


भोजपुरी पत्रकारिता को एक नई उच्चाई देने में अगर किसी एक पत्रकार का नाम लिया जाए तो वह नाम ओंकारेश्वर पांडेय का है। प्लानमैन मीडिया समूह की पत्रिका द संडे इंडियन का भोजपुरी अंक निकलवाने से लेकर उसे देश के कोने-कोने में रह रहे भोजपुरियों तक पहुंचाने में अपना अहम् योगदान दिया है। मूल रूप से बिहार के आरा जिला के रहने वाले ओंकारेश्वर पांडेय भोजपुरी पत्रकारिता को एक व्यवस्थित रूप देने के लिए जाने जाते हैं। द संडे इंडियन (भोजपुरी) के संपादन का दायित्व संभालकर उन्होंने भोजपुरी में पत्रकारिता करने की एक नई परिपाटी शुरू की। इसके अलावा भोजपुरी आंदोलन को दिशा देने में भी उनका अहम् योगदान रहा है।

आलोचनाः
भोजपुरी को लेकर उनकी कम हुई सक्रियता आलोचकों की नजर में  है। उनके शुभचिंतकों का कहना है कि उन्हें भोजपुरी साहित्य को समृद्ध करने की दिशा में और सक्रिय होना चाहिए।

प्रो. गुरुशरण सिंह - दमदार भोजपुरिया

प्रो. गुरुशरण सिंह - (33)
56 वर्ष, शिक्षा

दमदार वक्ता


भोजपुरी भाषा-साहित्य को अकादमिक रूप देने में प्रो. गुरूशरण सिंह का अहम योगदान रहा है। एस.पी.जैन महाविद्यालय, सासाराम में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे प्रो. गुरूशरण सिंह के मार्गदर्शन में आधे दर्जन से ज्यादा छात्र भोजपुरी-साहित्य में शोध कर रहे हैं अथवा कर चुके हैं। 

इग्नू के लिए भोजपुरी पाठ्क्रम में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रो. गुरूशरण सिंह अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के महामंत्री हैं। 

देश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रो. गुरूचरण जी द्वारा रचित भोजपुरी साहित्य का प्रकाशन होता रहा है। भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका के समन्वय संपादक रूप में प्रो. सिंह ने भोजपुरी को एक समृद्ध करने का कार्य उन्होंने किया। 

आलोचनाः
भोजपुरी को अकादमिक रूप से स्थापित करने में सहयोगी रहे गुरूशरण जी को लेकर आलोचकों का कहना है कि उन्हें किताब लेखन पर और ध्यान देना चाहिए।

प्रेम शुक्ल - दमदार भोजपुरिया

प्रेम शुक्ल - (32)
47 वर्ष, पत्रकार

असरदार व्यक्तित्व



मुंबई से प्रकाशित दोपहर का सामना दैनिक पत्र के संपादक की भूमिका निभा रहे प्रेम शुक्ल मुंबई में भोजपुरियों के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। माॅरीशस के संसद को संबोधित करने का अवसर प्राप्त करने वाले वो पहले भारतीय भोजपरिया हैं। विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रेम शुक्ल मुंबई में विश्व भोजपुरी सम्मेलन दो बार आयोजित करा चुके हैं। इतना ही नहीं मराठी भोजपुरी समरसता के लिए “लाई चना महोत्सव” का आयोजन भी वो कराते हैं।

जय कान्त सिंह - दमदार भोजपुरिया

जय कान्त सिंह - (31)
45 वर्ष, शिक्षा

शिक्षाविद्



जयकान्त सिंह जय पहले कमीशन द्वारा नियुक्त भोजपुरी के प्रोफेसर है। उन्होंने भोजपुरी भाषा-साहित्य पर कई शोध एवं पुस्तकें लिखी हैं।

जय कान्त सिंह जय का जन्म 1 नवम्बर 1969 को बिहार के छपरा जिले में हुआ था। उन्होंने लगभग आधे दर्जन किताबे लिखी है। 

Sunday 8 February 2015

उदेश्वर कुमार सिंह - दमदार भोजपुरिया

उदेश्वर कुमार सिंह - (30)
44 वर्ष, अंतरराष्ट्रीय

ब्रांड एम्बेडसर


उदेश्वर कुमार का जन्म बदली मोड़, सिवान, बिहार में हुआ था। पेशे से इंजिनियर उदेश्वर ने बहुत सालो तक यूरोप में सीमेंस मोबाइल कंपनी सिनियर पद पर काम किये। उसके बाद विदेशों में फैले बिहारी मजदूरी की समस्याओं के निदान के लिए उन्होंने बिहारीकनेक्ट डाॅट काॅम बनाई और इसके तहत यूरोप, गल्फ देशों में बिहारी मजदूरों की समस्याओं के हल करने में लग गए। आज बिहारीकनेक्ट 56 देशों में अपना ब्रांच स्थापित किया।

अपने पेशेवर कैरियर के अलावा वह एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हंै। उन्होंने अपने पैतृक जिले में गरीबों के इलाज के लिए चलता-फिरता अस्पताल स्थापित किया। सीवान में भी बिहारी कनेक्ट को आॅफिस स्थापित किया है, जहाँ कोई भी अपनी समस्याओं के निदान के लिए जा सकता है। हाल के वर्षों में उदेश्वर सिंह ने अपनी संस्था के फैलाव और बिहारिययों को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से दुबई, माॅरीशस, सिंगापुर, फ्रांस, हाॅलैंड, मलेशिया और बैंकाक जैसे कई देशों की सफल यात्रा किया है। उनका समर्पण, दृढ़ संकल्प और कार्य को देखते हुए उनको कई सम्मान से सम्मानित किया गया जिसमें प्रमुख रूप से ’बिहार भोजपुरी अकादमी सम्मान’, भोजपुरी गौरव सम्मान, माॅरीशस में कर्मयोगी सम्मान से नवाजा गया। वे यूके में दो कंपनियों में डाइरेक्टर के पद पर आसीन है।

आलोचनाः वह अधिकतर समय देश के बाहर रहते है।

प्रो. शत्रुध्न कुमार - दमदार भोजपुरिया

प्रो. शत्रुध्न कुमार - (29)
58 वर्ष, शिक्षा

शिक्षाविद्



प्रो. शत्रुध्न कुमार इग्नू में भोजपुरी भाषा की शुरूआत कराने में अहम भूमिका निभाने के लिए जाने जाते है या यूं कहे की इग्नु में भोजपुरी की पढ़ाई होने के पिछे शत्रुध्न कुमार का ही सोच है। वो इग्नू में पिछले 25 सालो से हिन्दी के प्राध्यापक के रूप में कार्यरत है। लगातार वे तीन वर्षो तक इग्नू के सर्वोच्च समिति बोर्ड आॅफ मेनेजमेंट के सदस्य रहे। इग्नू के भोजपुरी भाशा पाठ्यक्रम के सूत्रधार एवं संयोजक की भूमिका बखूबी निभा रहे है।

प्रो. शत्रुध्न कुमार का जन्म 6 जून 1956 को मेहीजाम, जिला दुमका बिहार में हुआ था। इन्होंने एम.ए., पीएचडी., बांग्ला भाशा तथा जपानी भाषा में सर्टिफिकेट कोर्स, चित्रकला में विशेष योग्यता तथा संस्कृत से स्नातक तक पढ़ाई की है। उनका हिन्दी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंग्रेजी, बांग्ला, जपानी , उर्दू भाषा पर अच्छी दक्षता है।

1987 में इग्नू के स्नातक स्तर के लिए कुल चैंतीस पाठ सामग्री का लेखन। हिन्दी पाठ्यक्रम से सम्बन्धित आॅडियो-विडियो का निर्माण, असमी-ओड़िया-बांग्ला भाषा के आधार पाठ्यक्रमों का संयोजन, स्नातकोत्तर के ’भारतीय साहित्य की भूमिका’ पाठ्यक्रम निर्माण में सक्रिय। इग्नू में दलित साहित्य पर पाठ्यक्रम निर्माण में सफल भूमिका।

अशोक चैबे - दमदार भोजपुरिया

अशोक चैबे - (2४)
43 वर्ष, सामाजिक

उर्जावान



ब्रज क्षेत्र आगरा में भोजपुरी की अलख जगाने वाले सीवान बिहार के खांटी भोजपुरिया अशोक चैबे अपने काॅलेज के दिनों से ही भोजपुरी माई के सेवा में कार्यरत हैं। सीवान डीएवी से इंटर करने के बाद ही आगरा जा बसे अशोक अपने कुछ भोजपुरी भाईयों के साथ मिलकर 1989 में पूर्वांचल सांस्कृतिक सेवा समिति नामक एक संस्था बनाई। तब उनके संस्था में मुठी भर लोग ही थे आज 80 हजार लोग इस संस्था में से जुड़े हैं।

आलोचनाः 
बेबाक तरीके से किसी की परवाह किए बिना अपनी बात को मजबूती से रखना।

अभय सिन्हा - दमदार भोजपुरिया

अभय सिन्हा -  (28)
46 वर्ष, फिल्म

भोजपुरी फिल्मों के संरक्षक



अभय सिन्हा एवं उनकी कंपनी यशी फिल्म अब तक 30 भोजपुरी फिल्मों का निर्माण कर चुकी है। अभय सिन्हा को सबसे बड़ी बजट एवं क्वालिटी फिल्म बनाने के लिए जाना जाता है। 

बिहार के आरा जिले में जन्में अभय सिन्हा ने भोजपुरी फिल्म उद्योग परिवारिक एवं तकनीकी रूप से उत्कृष्ट बनाने का श्रेय है। नहीं तो अधिकतर फिल्में बहुत ही निम्न दर्जे के फिल्में बनने लगी है जिससे भोजपुरी फिल्मों का मार्केट मंदा चल रहा है।

आलोचनाः
अब कम फिल्में बनाने लगे हैं!

जय प्रकाश सिंह - दमदार भोजपुरिया

जय प्रकाश सिंह -  (27)
42 वर्ष, अधिकारी

जबाज अधिकारी



जबाज आईपीएस अधिकारी जय प्रकाश सिंह अपने काम से एक काबिलियत अधिकारी एवं ईमानदार छवि के मालिक हैं। फिलहाल वह जनरल वीके सिंह  के पीएस के पद पर कार्यरत हैं। बिहार के छपरा जिले के टेघरा गाँव में जन्में जय प्रकाश सिंह शुरूआत से ही मेधावी छात्र रहे है, 1988 से 1994 तक इंडियन आर्मी में पंजाब एवं जम्मू एण्ड कश्मीर में उनके द्वारा सराहनीय काम के चलते के लिए उनको मेडल मिला।

1994 से 1997 और यूपी सरकार के 1997 से 2000 तक अपनी सेवाएं प्रदान कीए उनके बाद 2000 में वे हिमाचल प्रदेश कैडर में आए फिलहाल वे
डीआईजी रैंक के अधिकारी हैं।

प्रो. सदानन्द शाही- दमदार भोजपुरिया

प्रो. सदानन्द शाही-  (26)
56 वर्ष, शिक्षाविद्

बौद्धिक व्यक्तित्व



प्रो. सदानन्द शाही का जन्म कुशीनगर जनपद के छोटे से गांव सिगहा में 7 अगस्त 1958 को हुआ। प्रोफेसर सदानन्द शाही काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में भोजपुरी अध्ययन केन्द्र के समन्वयक हैं। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में भोजपुरी अध्ययन केन्द्र की स्थापना से लेकर उसे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने में प्रो. शाही ने अथक श्रम किया है। 

विश्व विद्यालय के भीतर और बाहर के अनेक मंचों पर उन्होंने यह बात मजबूती से रखी कि भोजपुरी भाषा का विकास भोजपुरी समाज के विकास से जुडा है। उन्होंने यह भी  स्थापित किया कि भोजपुरी का अर्थ  केवल लोक साहित्य नही, बल्कि विशाल भोजपुरी समाज और उसमें मौजूद देशज ज्ञान है। प्रोफेसर शाही ने भोजपुरी के बौद्धिक एवं वैचारिक पहलू को स्थापित करने के लिए ‘भोजपुरी जनपद’ जैसी पत्रिका निकाली। जन भोजपुरी मंच की स्थापना करके प्रोफेसर शाही ने भोजपुरी आन्दोलन को सतही भावुकता से निकालने का यत्न किया।

5 अगस्त 2014 को उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री से मिलकर प्रो शाही उन्हें यह  समझाने में सफल रहे कि भोजपुरी की जरूरत केवल भावनात्मक वजहों से नहीं बल्कि एक वृहत्तर समाज की समझ और कल्पनाशीलता से जुडा है। प्रोफेसर शाही ने उत्तर प्रदेश सरकार के समक्ष अनेक तर्क और तथ्य देकर यह स्थापित किया कि  भोजपुरी बोली से विकसित होकर भाषा का रूप ले चुकी है।परिणाम स्वरूप उत्तर प्रदेश सरकार ने 29 अगस्त 2014 को भोजपुरी अकादमी स्थापित करने की घोषणा की। 

प्रोफेसर शाही ने इसी वर्ष भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लेकर गृहमंत्री से मिल और इसके लिए ठोस तर्क मुहैय्या कराया।सम्प्रति प्रोफेसर शाही भोजपुरी डायस्पोरा चेयर तथा भोजपुरी विश्व विद्यालय बनवाने के लिए यत्न शील हैं। इसके लिए मारीशस तथा भारत सरकार से लगातार संवाद हैं।

डाॅ.अशोक द्विवेदी - दमदार भोजपुरिया

डाॅ.अशोक द्विवेदी - (25)
63 वर्ष, साहित्यकार

कविता ही जिन्दगी



भोजपुरी के दूसरे पीढ़ी के साहित्यकारों में डाॅ. अशोक द्विवेदी का नाम बहुत ही सम्मानीय है। पाती पत्रिका के संपादक अशोक द्विवेदी का जन्म 1 मार्च 1951 को गाजीपुर (यूपी) के सुल्तानपुर गाँव में हुआ था।

14 जनवरी 2015 को अशोक द्विवेदी को ’लोककवि सम्मान‘ से सम्मानित किया जाएगा।

रचनाएंः
1. अढ़ाई आखर (कविता संग्रह), 1978
2. रामजी के सुगना (निबंध संग्रह), 1994 (अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन से पुरस्कृत)
3. ‘गाँव के भीतर गाँव’ (कथा संग्रह), 1998  (उ॰प्र॰ हिन्दी संस्थान से ‘राहुल सांस्कृत्यायन पुरस्कार)
4. ‘आवऽ लवटि चलीं’
(कथा-संग्रह), 2000
8. ‘फूटल किरिन हजार’
(गीत-गजल संकलन), 2004
9. मोती बी.ए. रचना संसार (मोनोग्राफ) 2014

डाॅ. रमेश चन्द्र श्रीवास्तव - दमदार भोजपुरिया

डाॅ. रमेश चन्द्र श्रीवास्तव- ( 23)
62 वर्ष, शिक्षा

गणितज्ञ 



भोजपुरी माटी ज्ञान से परिपूर्ण हैं। बस एक नजर सही तरीके से उठाकर तो देखिए। आज पूरी दुनिया भोजपुरियों की ज्ञान शक्ति को देखकर अचरज में रहती है। इसी संदर्भ में एक बड़ा नाम है डाॅ. रमेश चन्द्र श्रीवास्तव जी गारेखपुर विश्वविद्याल के गणित और सांख्यिकी विभागाध्यक्ष डाॅ. रमेश चन्द्र श्रीवास्तव विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ हैं।


देश-विदेश के कई वैज्ञानिक शोध संस्थानों से सबद्ध रहे श्री श्रीवास्तव अभी तक पांच दर्जन से ज्यादा मूल शोध-पत्र व अनेक विज्ञान संबंधित लेख व दो पुस्तकें लिख चुके हैं। मूल रूप से उत्तरप्रदेश के कुशीनगर जिला में जन्में डाॅ. रमेश चन्द्र श्रीवास्तव की पहचान गणित के क्षेत्र में अग्रणी लोगों में होती है।

शिवजी सिंह - दमदार भोजपुरिया

शिवजी सिंह - (22)
47 वर्ष, सामाजिक

जोशिला सेवक




उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के मूल निवासी और पूर्वांचल एकता मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवजी सिंह ने अपनी भोजपुरी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण एवं उत्थान के लिए विगत 17 वर्षों से लगे हैं। 

भोजपुरी भाषा को भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची में सम्मिलित कराने के लिए राजनैतिक गलियारों से लेकर सड़क तक बड़ी मजबूती के साथ आवाज उठा रहे हैं।

बिहार भोजपुरी अकादमी सम्मान के अलावे कई सम्मान से सम्मानित शिवजी सिंह अबतक 5 स्वाभिमान समारोह और 7 विश्व भोजपुरी सम्मेलन दिल्ली में करा चुके हैं जिसमें कई देशों के प्रतिनिधी हिस्सा लिए है।
आलोचनाः 
उनके बारे में आलचकों का कहना है कि शिवाजी सिंह अपनी भावनाओं को अपने अंदर दबा नहीं पाते हैं, और गुस्से में शब्दों के चुनाव में असफल हो जाते हैं। 

कुमार बिहारी पांडेय - दमदार भोजपुरिया

कुमार बिहारी पांडेय - (21)
78 वर्ष, उद्योगपति

सफल भोजपुरिया उद्यमी




कुमार बिहारी पांडेय देश के जाने माने उद्यमियों में गिने जाते हैं। सुनीता इंजीनियरिंग वर्क्स प्रा.लि. के संस्थापक श्री पांडेय की कंपनी मोल्ड, डाई, जीग के लिए बेस प्लेट और फिक्सर, डाई सेट तथा मोल्ड बेस का उत्पादन करती है। अपने कठिन परिश्रम व दूरदर्शिता से श्री पांडेय इस क्षेत्र के पायनियर माने जाते हैं। 

जन्म गुरू द्रोणाचार्य की कर्म स्थली दोन-दरौली, सीवान, बिहार में 7 मार्च 1936 को आयुर्वेदाचार्य श्री रामसेवक पांडेय व झुना देवी के पुत्र रूप में एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम रामेश्वर पांडेय रखा गया जो बाद में कुमार बिहारी पांडेय के नाम से विख्यात हुआ। सन् 1949 में मुंबई आने के बाद कुमार बिहारी पांडेय ने हर वह छोटा-बड़ा काम किया, ताकि उन्हें ईमानदारी पूर्वक जीने के लिए दो वक्त की रोटी व ठहरने का ठौर मिल सके। गांव-घर से दूर रहने का मलाल आज भी श्री पांडेय के दिल में हैं। इस बावत वे कहते हैं- घर से अलग होने के बाद मैंने सदैव संघर्ष और संकल्पों की छाँव में जिंदगी को जिया है और प्रकृति को अपना गुरू बना कर उससे भरपूर शिक्षा ली है। मैं कभी-कभार उन्हें गुनगुनाता भी हूं-

मुरादों को पाने में गाँव छुट गयाध् चहकते परिंदों का ठाँव छुट गया। बाड़ी-बगीचे की अल्हड़ बहारेंध् मदमाता महुआ और अम्बिया पुकारेंध्गंउवाँ के बरगद का छाँव छूट गया।

श्री कुमार बिहारी पांडेय का जीवन-दर्शन इन पंक्तियों में उभर कर सामने आया है-

मेरी मुफलिसी ने यारों जीना सिखा दिया
हर जख्म किल्लतों का सीना सिखा दिया।
दर्दों की दोस्ती में बेफिक्र जी रहा था
दर्दों ने हद से बढ़कर हँसना सिखा दिया।

हिन्दुस्तान से प्रेम करने वाले प्रत्येक 
भारतीय को समर्पित ये दो पंक्तियां उनकी जीवन श्रम की कथा खुद-ब-खुद कहती हैं-
भारत मेरा वतन है हमारा भाव भारती है
कर्म मेरी पूजा श्रमशक्ति आरती है।

आलोचनाः
कुमार बिहारी पांडेय की आलोचना करनी हो तो आप कह सकते हैं कि यह आदमी इस भौतिकवादी युग में खुद को 24 कैरेट का बनाए रखन में सफल रहा है। दूसरों की चिंता करने वाला कुमार बिहारी पांडेय अपनी चिंता नहीं करते। एक उद्योगपति होते हुए भी साहित्य रचते हैं जिसको साहित्यिक-संसार का अतिक्रमण कहा जा सकता है!

डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव - दमदार भोजपुरिया

डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव - (20)
75 वर्ष, साहित्यकार

सरल एवं सादगी का जीता जागता उदारहरण

भोजपुरी के साहित्यकार डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव को छिउकीं के जन्मदाता माना जाता है, छिउकी को दो-चार लाइनों का व्यंगात्मक दोहा कह सकते है। जो कम शब्दों में समाजिक बुराइयों को व्यंग्यात्मक अंदाज में सारी कहानी कह देती है, सुनने में तो मंनोरंजक लगता है, पर चोट बहुत गहरा करता है।

डॉरमाशंकर श्रीवास्तव का जन्म 19 जून 1939 को पचरूखी, सीवान में हुआ था। दिल्ली यूनीवर्सीटी के राजधानी काॅलेज से हिन्दी विभाग के सेवानिवृत्ती के बाद उनका जीवन साहितय सिर्जन में ही लगा है। हिन्दी और भोजपुरी के लगभग 36 किताबें लिख चुके है। जिनमें दाल-भात तरकारी (उपन्यास), चउका बइठल महादेव (कहानी संग्रह), इया के खटोली (बाल उपन्यास) एवं 2015 में उनकी भोजपुरी कहानी संग्रह ’हंसी हंसी पनवा खियवले बेइमानवा’ आने वाली है।

संपादन-संचालनः- ‘अस्वाद’ (साहित्य-संस्कृति), विश्व भोजपुरी सम्मेलन की अन्तर्राष्ट्रीय 
कार्यकारिणी के सदस्य। त्रैमासिक ’श्रीप्रभा’ का सम्पादन, आकाशवाणी और दूरदर्शन से 
प्रसारण।

आलोचनाः
उनका सरल स्वभाव जो उनके के लिए कभी हानी पहुँचाता है, क्योंकि आज के समय आपके चलाक होना चाहिए। तभी आपको आपका उचित स्थान मिलता है नहीं तो बहुत सारे लोग गिद्ध की नजर रखे हुए है।

अजित दुबे - दमदार भोजपुरिया

अजित दुबे - दमदार भोजपुरिया 

अजित दुबे - (19)
64 वर्ष, सामाजिक 



विद्वान लेखक

दिल्ली में रहने वाले पूर्वांचलवासियों के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक हितों व उनके सम्मान के प्रति जागरूक, भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की देश में चल रही मुहिम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले अतीज दूबे का नाम आता है।

उत्तर प्रदेश के हरिहरपर, बलिया के अजीत दुबे का जन्म ३ मार्च 1950 को दिल्ली में हुआ था, दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक, एमबीए और दिल्ली सरकार की मैथिली-भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष, भोजपुरी समाज दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दुबे आज दिल्ली में कार्यरत पूर्वांचल की विभिन्न संस्थाओं के अगुवा के रूप में जाने जाते हैं। भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के अभियान के विशेष संदर्भ में अजीत दुबे की “तलाश भोजपुरी भाषायी अस्मिता की” नामक पुस्तक हाल ही में प्रकाशित हुई है। 

आलोचनाः
पूर्वांचल समाज के अगुवा के नाते उनको पहले समाज फिर अपनों के बारे में सोचना चाहिए!

सुजीत कुमार सिंह - दमदार भोजपुरिया

सुजीत कुमार सिंह - दमदार भोजपुरिया 

सुजीत कुमार सिंह - (१८ )
34 वर्ष, उद्योगपति



उर्जावान 

युवा उद्यमी सुजीत कुमार सिंह ने बहुत कम समय में श्रेया लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिटेड को नई उच्चाई प्रदान की है, लगभग 80 मिलियन डाॅलर प्रतिवर्ष बिजनेश में करने लगी है, जो सुजीत कुमार सिंह के कुशल नेतृत्व की देन है।

सुजीत कुमार सिंह बिहार के हाजीपुर में जन्में और पढ़ाई लिखाई अपने नाना-नानी के घर आरा से किये और अब उनकी कर्मभूमि मुंबई बन चुका है। श्रेया ग्रुप की 5 कंपनियाँ है, और देश के बाहर भी बिजनेश करती है। श्रेर्या ग्रुप रसिया के तीसरी बड़ी मेडिकल मार्केटिंग कंपनी है,जिसका वार्षिक बिजनेश 600 मिलियन से भी अधिक है।  जिसमें सुजीत कुमार सिंह का महत्वपूर्ण योगदान है, सुजीत 
भारत में इन पाँचों कंपनियों को इंडिया में सफलतापुर्वक प्रमोट कर रहे हैंः
1. श्रेया लाइफ साइंस प्राइवेट लिमिडेट
2. श्रेया प्रार्मा प्राइवेट लिमिडेट
3. श्रेया क्रिएशन प्राइवेट लिमिडेट
4. श्रेया बायोटेक प्राइवेट लिमिडेट
5. श्रेया होटल प्राइवेट लिमिडेट

आलोचनाः
दिन-दुनिया से दुर केवल अपने काम पर घ्यान। 

डाॅ. अरूणेश नीरन - दमदार भोजपुरिया

डाॅ. अरूणेश नीरन  -  दमदार भोजपुरिया 

डाॅ. अरूणेश नीरन  - (17)
69 वर्ष, समाजिक



भोजपुरी भाषा को समर्पित


डाॅ. अरूणेश नीरन भोजपुरी आंदोलन के अगुआ और भोजपुरी के पर्याय हैं और वर्तमान में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा (महाराष्ट्र) में राइटर इन रेजिडेंस के पद पर कार्यरत हैं।

उत्तर  प्रदेश के देवरिया जिले के शिक्षाविद् एवं समाजिकार्यकत्र्ता है। वे 1995 से भोजपुरी आंदोलन से जुड़े है। 

कविवर जगन्नाथ - दमदार भोजपुरिया

कविवर जगन्नाथ - दमदार भोजपुरिया 

कविवर जगन्नाथ - (१६)
86 वर्ष, साहित्यकार

कविता ही जीवन

भोजपुरी-साहित्य के प्रत्येक विधा में कविवर जगन्नाथ ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। बिहार के आरा जिला में जन्में कविवर जगन्नाथ ने भोजपुरी कविता व गजल को समृद्ध किया है।

रचनाएं:
हिंदी उर्दू भोजपुरी के समरूप छंद
भोजपुरी गजल के विकास यात्रा
भोजपुरी गजल के शिल्प विधान 

पाण्डेय कपिल - दमदार

पाण्डेय कपिल - दमदार 

पाण्डेय कपिल - (१५)
84 वर्ष, साहित्यकार



भोजपुरी साहित्य को समर्पित व्यक्तित्व

भोजपुरी साहित्य पर सवाल उठाने वाले लोगों को सबसे पहले किसी भोजपुरी साहित्यकार को पढ़ना चाहिए तो वह नाम है पांडेय कपिल। पांडेय कपिल ने अपना पूरा जीवन भोजपुरी साहित्य के उत्थान में लगा दिया। 
साहित्य के तमाम विधाओं में उन्होंने अपने ज्ञान के मोती को विखेरा है। छपरा के शीतलपुर बरेजा में 24 सितंबर, 1930 में जन्में पांडेय कपिल अपनी पुस्तक ‘फुलसंघी’ से बहुत लोकप्रिय हुए। 

रचनाएंः
फुलसुंघी (उपन्यास), कह ना सकलीं (गजल संग्रह), परिंदा उड़ान पर (गजल संग्रह), जीभ बेचारी का कही (दोहा संग्रह), भोर हो गइल, (कविता संग्रह)

भरत शर्मा ’ब्यास‘- दमदार

भरत शर्मा ’ब्यास‘- (१४)
63 वर्ष, गायक



सामाजिक प्रतिबद्धता

भोजपुरी लोकगीत के सम्राट कहे जाने वाले भरत शर्मा ’ब्यास‘ पिछले 40 सालों से भोजपुरी गीत-संगीत के धुरी बने हुए है। उन्होंने अब तक सैकड़ों अलबम एवं फिल्मों में गाने गाये है एवं कुछ भोजपुरी फिल्मों में अभिनय भी किया है।

बिहार के बक्सर जिले में 1 अगस्त 1951 को महान गायक भरत शर्मा का जन्म हुआ था।

आलोचनाः
वह अपने गुस्से पर काबु नहीं रख पाते है और किसी दुसरे के कहे में आ जाते है।

Saturday 7 February 2015

पवन सिंह - दमदार भोजपुरिया

पवन सिंह - (१३)
31 वर्ष, फिल्म



प्यारा हीरो

आज के दौर के सबसे लोकप्रिय भोजपुरी फिल्म अभिनेता एवं गायक है। पवन सिंह 5 जनवरी 1983 को बिहार के आरा जिले के जोकरही में हुआ था। पवन 5 साल उम्र से ही गायन के क्षेत्र में है पर उनकी पहचान गायक से ज्यादा अभिनेता की है। पिछले 7 सालों में 75 फिल्मों में काम कर चुके है।

आलोचनाः
काफी अच्छे गीतों के साथ कई अश्लिील गीत भी गाए है।

शारदा सिन्हा - दमदार भोजपुरिया

शारदा सिन्हा -  (१२)
62 वर्ष, गायन



भोजपुरी की स्वर कोकिला

भोजपुरी गायन की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा को उनके लोक गायन के लिए 1992 में भारत सरकार ने पदम श्री से नवाजा। शारदा सिन्हा का छठ गीत पुरी दुनिया में प्रसिद्ध है, शारदा सिन्हा जी का छठ गीत का छठ की महत्ता को दर्शाता है।

1 अक्टूबर 1952 को शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी गायकी से भोजपुरी और मैथिली संगीत को नई उच्चाई प्रदान की है।

बिन्देश्वर पाठक - दमदार भोजपुरिया

बिन्देश्वर पाठक - (११)
71 वर्ष, समाजसेवा


सामाजिक प्रतिबद्धता

बिन्देश्वर पाठक देश के जाने-माने समाजसेवी हैं। मैला धोने की प्रथा को खत्म करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। शुलभ शौचालय का निर्माण भारत को स्वच्छ बनाने की दिशा में उठाया गया एक बेहतरीन कदम है। उनके सामाजिक प्रतिबद्धता का ही परिणाम है कि भारत सरकार ने उनको पदम भूषण से सम्मानित किया।

बिन्देश्वर पाठक का जन्म बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बघेल गांव में एक ब्राह्मण परिवार में २ अप्रैल 1943 को हुआ था।

आलोचनाः
उनसे बिहार और भोजपुरी के विकाश के लिए काफी अपेक्षाए हैं।

Friday 6 February 2015

केदारनाथ सिंह - दमदार भोजपुरिया

केदारनाथ सिंह - (१०)
76 वर्ष, - साहित्यकार



केदारनाथ सिंह का जन्म भी भोजपुरी माटी में 20 नवबंर, 1934 को बलिया जिले के ग्राम चकिया, उत्तर प्रदेश में हुआ था। बलिया जिले से निकलकर केदारनाथ सिंह पूरे विश्व-पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहे हैं।

कविता संग्रह:-
अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, ताल्सताय और साइकिल, ’तीसरा सप्तक’ में शामिल रचनाएँ, अकाल में सारस, यहाँ से देखो, बाघ, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, सृष्टि पर पहरा।

कुछ रचनाएँ:-
मंच और मचान (लम्बी कविता), हाथ, जाना, दिशा, बनारस, प्रिय पाठक, पाँचवी चिट्ठी, नए कवि का दुख, तुम आयीं, जब वर्षा शुरु होती है, बुनाई का गीत, शहरबदल, सन् ४७ को याद करते हुए, नदी, आदि

कविता संग्रह ’अकाल में सारस’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989), मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, कुमार आशान पुरस्कार (केरल), दिनकर पुरस्कार, जीवनभारती सम्मान (उड़ीसा) और व्यास सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित।

आलोचनाः
भोजपुरी भाषा और साहित्य के प्रति उदासिन रवैया।

रवि किशन - दमदार भोजपुरिया

रवि किशन - (९)
43 वर्ष, फिल्म - अभिनेता

अद्भुतास अभिनेता



भोजपुरी फिल्मी हीरो की अभिनय की बात की जाय तो रवि किशन का नाम सबसे पहले आता है। हिन्दी फिल्मों से अपनी फिल्मी कैरियर की शुरूआत करने वाले रवि आज हिन्दी के साथ भोजपुरी फिल्मों के चहेते अभिनेताओं में से एक है।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के केराक तहसिल, विसई गांव के एक पुजारी परिवार में रविन्द्र नाथ शुक्ला उर्फ रवि किशन का जन्म 17 जुलाई 1971 को हुआ था। बचपन से ही फिल्मों के शौकिन रवि किशन ने गांव के रामलीला से अपने अभिनय की शुरूआत की थी। माता पिता के विरोध के बावजूद वो फिल्मों को अपना कैरियर बनाये।

1993 में हिन्दी फिल्म ’उधार की जिनदगी‘में काजोल के पिता के रूप में उन्होंने अपने फिल्मीं सफल की शुरूआत की थी और 2003 में मोहन प्रसाद की पहली भोजपुरी फिल्म ’सइया हमार ’ की और तब से लेकर आज तक 100 से भी अधिक भोजपुरी फिल्में किया हैं, वे भोजपुरी के एकमात्र अभिनेता है जिन्होंने हिन्दी, तमील, तेलुगु और मराठी फिल्मों के साथ-साथ कई टीवी शो भी किया हैै। बिग बाॅस सिजन एक के फाइनल तक पहुंचने वाले रवि किशन देश-विदेश अपने अभियन के लिए जाने जाते हैं।

इसी साल वो अपनी हीट भोजपुरी फिल्म ’पंडितजी बताई ना बियाह कब होई’ का रिमेक लेकर आ रहे हैं।

आलोचनाः 
आम लोगो के बीच कम दिखते है और कांग्रेस के नेता होने के बावजूद अपनी सरकार से भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने में नकाम रहे।

डाॅ. सरिता बुद्धृ - दमदार भोजपुरिया

डाॅ. सरिता बुद्धृ  - (८)
60 वर्ष, अंतरराष्ट्रीय

अंतरराष्ट्रीय दीदी


अंतरराष्ट्रीय दीदी के तौर पर दुनिया में फेमस स्काॅलर डाॅ. सरिता बुद्धू अपनी लेखन एवं भोजपुरी भाषा के उत्थान के लिए समर्पित हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। उन्होंने कोलकत्ता विश्वविद्यलय से भूगोल में स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा जर्मनी और फ्रांस में पत्रकारिता से संबंधित उच्च शिक्षा भी प्राप्त की हैं। उन्होंने हिंदी में एम.ए. भी किया है। पूर्व में वे शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय (माॅरीशस)  में विश्व हिंदी सचिवालय की सलाहकार की भूमिका सफलतापूर्वक निभा चुकी हैं।

उन्होंने छोटी उम्र में ही अपने जीवन को माॅरीशस के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने भारत के भोजपुरी क्षेत्र की नेपाल और भारतीय वाड़्मय में विस्तृत खोज की और वेस्टइंडीज, संयुक्त राष्ट्रसंघ, यूरोप, यूके एवं अफ्र्रीका में भारतीय संस्कृति पर व्याख्यान दिए। सन् 1996 से 2001 के मध्य माॅरीशस में स्थित विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी पुस्तक ’कन्यादानः हिंदू विवाह प्रथा से संबंधित प्रश्न’ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाई है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई किताबे लिखी है, जो भोजपुरी भाषा, साहित्य एवं संस्कार प्रचार-प्रसार में सहायक साबित हुई हैं। जिसमें ’माॅरीशस की भोजपुरी परंपराएँ, भोजपुरी व्याकरण एवं भोजपुरी कैसे सीखे आदि महत्वपूर्ण पुस्तके है। 

अक्टूबर-नवम्बर 2014 अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव का उन्होंने सफल आयोजन किया, जिसमें कई देशों के प्रतिनिधी शामिल हुए। 

आलोचनाः
अपनी या परिवार की परवाह किये बगैर भोजपुरी के प्रचार-प्रसार के लिए महीनों घर से बाहर रहती है, जिससे उनके सेहत पर विपरीत असर पड़ता है।

मालिनी अवस्थी - दमदार भोजपुरिया

मालिनी अवस्थी - (७)
45 वर्ष, लोक गायिका



भावपूर्ण गायन

मालिनी अवस्थी भारत में लोक संगीत की पहचान  रही  हैं। जब आप पारंपरिक लोक संगीत के बारे में सोचते है तो आपको मालिनी अवस्थी नजर आती हैं, लुप्त होती जा रही पारंपरिक लोक संगीत को नई ऊचाई पर ले जाने में उनका महत्वूर्ण योगदान  है।

पद्म भूषण गिरिजा देवी जी की शिष्या, मालिनी आज बनारस घराने की अग्रणी ठुमरी गायकों में से एक हैं। मालिनी अपनी सुरीली एवं पावरफल अवाज के साथ एवं भावपूर्ण अदाओं के सुंदर संयोजन कर अपने गीत प्रस्तुत करती हैं, समान रूप से गजल और सूफी में निपुण, सुंदर लखनऊ और उत्तरप्रदेश की गंगा-जामुनी संस्कृति की याद दिलाती है मालिनी अवस्थी।

आलोचनाः
उनकी अपनी बहुत कम गाने और अलबम हैं!

राजीव प्रताप रूढ़ी - दमदार भोजपुरिया

राजीव प्रताप रूढ़ी - (6)५२ वर्ष, राजनीती 


प्रखर वक्ता 
राजीव प्रताप रूढी एक प्रखर वक्ता के रूप में देश के राजनीतिक मानचित्र पर उभरे हैं। उनकी इस प्रखरता ने ही उन्हें भाजपा के शीर्ष नेताओं की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। संसदीय राज्य मंत्री का पदभार संभाल रहे राजीव प्रताप रूढी ने बिहार की मिट्टी का गौरव बढ़ाया है। 30 मार्च, 1962 को पटना में जन्में राजीव प्रताप रूढ़ी ने अपने मेहनत व व दूरदर्शिता के बल पर देश की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है।


आलोचना

राजीव प्रताप रूढ़ी पर उनके क्षेत्र (सारण) के लोग अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते हैं। रूढ़ी जी के शुक्षचिंतकों का कहना है कि उन्हें एसी रूम राजनीति से ऊपर ऊठ के लोगों के बीच में रहना चाहिए। 

डाॅ. संजय सिन्हा - दमदार भोजपुरिया

डाॅ. संजय सिन्हा  - (5)
45 वर्ष, उद्योगपति

करिश्माई व्यक्तित्व



अपने कर्म से देश और समाज में सुख, शांति, ज्ञान व समृद्धि के पुष्प  खिलाने वाले भोजपुरियों में डाॅ. संजय सिन्हा का अग्रगण्य स्थान है। डाॅ. संजय सिन्हा देश व अंतरराष्ट्रीय कंपनी फ्रंटलाइन ग्रुप के चंयरमैन है, इन्होने अपनी कंपनी 2005 में मात्र कुछ हजार रूपए से शुरू की थी और आज यह कंपनी कई हजार करोड़ की कंपनी बन गई है, इतने कम समय मे डाॅ. सिन्हा ने अपनी कंपनी को टाॅप की सेकुरीटी कंपनियों में शुमार कराया है।

वे करिश्माई व्यक्तित्व के मालिक है। उनके कर्मचारियों का मानना है कि वे जिस चीज को छुते हैं, वह सोना बन जाता है, नहीं तो इतने कम समय में यह कम्पनी इतनी तेजी से तरक्की नहीं कर पाती। यह बस संजय सिन्हा के करिश्माई नेतृत्व की देन है, साथ ही उनपर कामाख्या माता का आपार आर्शीवाद है।

जन्म 31 मार्च 1969 को दिल्ली में जन्में डाॅ. सिन्हा हरदासपुर, खगौल, पटना के है, अपने पिताजी के खुशी के लिए इन्होंने कड़ी मेहनत कर 1991 में आईएस की परीक्षा में सफलता पाई, पर ज्वाइन नहीं की। उनका इरादा तो बिजनेश करने का था। डाॅ. संजय सिन्हा पोस्ट हारबेसट मैंनजमेंट में पीएचडी है। 

फ्रंटलाइन लगभग पूरे देश और विदेशों भी काम कर रही है, 40 से भी ज्यादा इसकी सब-आॅफिसे है जिसमें 1.5 लाख से भी ज्यादा कर्मचरी काम करते हैं, अधिकतर कर्मचारी भोजपुरी भाषी हैं। केवल बिहार और झारखंड में ही 38 हजार से भी अधिक लोग फ्रंटलाइन में काम करते हैं। 

फ्रंटलाइन दूर-संचार संबधी सारे कार्यो को मनायोग से करती है। यह कंपनी देश के हर हिस्से में टाॅवर लगाने से लेकर सुरक्षा सेवा प्रदान करने में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को काफी पीछे छोड़ते हुए यह कंपनी नंबर 1 बनी हुई है।

डाॅ सिन्हा की पहचान उद्योगपति के अलावे सादगी भरा जीवन, समाजसेवी व्यक्तित्व का भी है। वे अपनी व्यापारिक व्यवस्थाओं के बावजूद अपनी भाषा और संस्कृति के उत्थान के लिए समय निकाल ही लेते है, और तन-मन-धन से काम करते है।

डाॅ. संजय सिन्हा समाजसेवी संस्थाओं से जुड़कर समाज की सेवा अपने सच्चे तन, मन व धन से अभिरामता के साथ अविराम करते आ रहे है। भोजपुरी समाज, संस्कृति की उन्नति के लिए वे कटिवद्ध हैं। गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा मुहैया कराने में डाॅ. सिन्हा को अपार सुख मिलता है। 

डाॅ. सिंन्हा और उनकी कंपनी ने भोजपुरी भाषियों को सबसे ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराया हैं। 


परिवार एवं भाई का साथ
डाॅ संजय सिन्हा को उनके भाई पुष्पेश सिन्हा, पत्नि एवं परिवार का हर कदम पर साथ मिलता है।

आलोचनाः समाज और काम की चिंता करने वाले संजय सिन्हा अपनी सेहत की चिंता नहीं करते!

रवि शंकर प्रसाद - दमदार भोजपुरिया

रवि शंकर प्रसाद (4)
60 वर्ष, राजनीती 




बिहार की माटी का नाम रौशन करने वालो में रवि शंकर प्रसाद का नाम अग्रणी है। एक वकील का रूप हो या राजनीतिक चिंतक का रूप में या राजनेता के रूप सभी किरदारों को रविशंकर प्रसाद ने बेहतरीन तरीके से निभाया है। देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के प्रवक्ता के तौर पर राष्ट्रवादी विचारधारा को घर-घर तक पहुंचाने में रवि शंकर प्रसाद सफल रहे हैं। इसी का सु-परिणाम है कि आज वो देश के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। 30 अगस्त, 1954 को बिहार के पटना में जन्में रवि शंकर प्रसाद ने अपने 60 वर्ष के जीवन-काल में देश की राजनीति को एक उच्चाई दी है।

आलोचना

2013 में रविशंकर प्रसाद ने भोजपुरी को आठवी अनुसूची में डलवाने का आश्वासन दिया था लेकिन जब से मंत्री बने हैं तब से इस बावत उनका एक भी बयान नहीं आया है। उनके इस रवैये से भोजपुरिया माटी  के लोग उनसे नाराज हैं।

मनोज तिवारी - दमदार भोजपुरिया

मनोज तिवारी (3)
43 वर्ष, राजनीती 




मनोज तिवारी के लिए 2014 राजनीतिक रूप से एक नया सवेरा लेकर आया। एक बार राजनीतिक रूप से गोरखपुर से मात खाने के बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली ने उन्हें गले से लगा लिया और अपना सांसद बनाकर नरेन्द्र मोदी के कुनबे को मजबूति प्रदान की।  

बिहार के कैमुर जिला में स्थित भभुआ के अतरवलिया गाँव में 1 फरवरी 1971 को स्व. चन्द्रदेव तिवारी के घर जन्में मनोज तिवारी की प्रसिद्धि लोक-गायिकी से हुई। फिर भोजपुरी फिल्म ससुरा बड़ा पइसा वाला ने उनको भोजपुरी फिल्मी दुनिया में एक नयी बुलंदी पर पहुंचाया। वर्तमान में अभिनेता से नेता बने मनोज तिवारी पर भोजपुरिया माटी के लोगन के आवाज संसद में उठाने की जिम्मेदारी है। हालांकि नेता बनने के बाद मनोज तिवारी अपने लोगों के बीच देखे जा रहे हैं, यह स्वभाव उन्हें आगे और उपलब्धि दिलायेगा।

आलोचना

मनोज तिवारी के निर्णयों को दूसरे लोग प्रभावित कर देते हैं। इस बात को लेकर मनोज तिवारी के शुभचिंतक परेशान रहते हैं। मनोज तिवारी यदि खुद का सुने तो वो ज्यादा बेहतर कर सकते हैं।