Monday 20 February 2017

प्रो करुणाशंकर उपाध्याय बेतुके और देशद्रोही बोल

भोजपुरी को मान्यता मिलने से आठवीं अनुसूची डम्पिंग ग्राउंड हो जाएगा : प्रो करुणाशंकर उपाध्याय



पढ़िए मुम्बई यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के बेतुके और देशद्रोही बोल:-
डॉ करुणाशंकर उपाध्याय विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग मुंबई विश्वविद्यालय अपने वक्तव्य के दौरान हिन्दी की ताकत बताने की बजाय क्षेत्रीय बोलियाँ विशेषकर भोजपुरी के उपहास पर ही ज्यादे बोलते चले गए।
१. क्षेत्रीय बोलियाँ को आठवीं अनुसूची मे जगह देने से आठवीं अनुसूची बोलियों का डम्पिंग ग्राउंड हो जाएगा!
२. भोजपुरी सहित क्षेत्रीय बोलियों के दो कौड़ी के साहित्यकारों को पुरस्कार मिलने लगेंगे और हिन्दी के 12 लाख साहित्यकारों के साथ अन्याय होगा।
३. डॉ उपाध्याय के अनुसार अगर आज भोजपुरी के आठवीं अनुसूची मे आने से नहीं रोका गया तो कल चंबल के डाकू और कश्मीर के आतंकवादी भी अपने भाषा को आठवीं अनुसूची में डालने के लिए मांग करने लगेंगे। 
४. भाषा को लेकर एक देश मे भाषा युद्ध छिड़ जाएगा और देश मे हिन्दी के 38 बोलियों के नाम पर पृथक राज्य की मांग उठने लगेगी।
५. भोजपुरी भाषी जिस संख्या बल के होने की बात करते हैं उतनी संख्या बल उनकी है ही नहीं , उनके अनुसार भोजपुरी वाले अवधी बोली क्षेत्र को अभी अपने में मिला के अपना गलत संख्या बताते हैं।
६. उनके अनुसार भोजपुरी वाले तो अमिताभ बच्चन को भी भोजपुरी का बताते हैं जबकि वह मूल रूप से प्रतापगढ़ के हैं और अवधी है।
७. डॉ उपाध्याय का स्पष्ट मानना था की भोजपुरी को मान्यता मिलने से देश में अलगाववाद की भावना भड़केगी और जैसे देश में बंग भंग या पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था वैसी परिस्थितियों का निर्माण होगा।
८. डॉ उपाध्याय ने चीन कि कठोर और दमनकारी भाषा नीति कि वकालत करते हुए भारत सरकार से आग्रह किया की जैसे चीन अपने 58 बोलियों की जगह चाइना की राष्ट्र भाषा को अनिवार्य अनिवार्य बनाने के लिए कठोर एवं दमनकारी कानून लगाता है भारत सरकार को वैसे ही कठोर एवं दमनकारी कानून लाकर बोलियों को आठवीं अनुसूची में आने से रोकना चाहिए।
९. जिस दिन भोजपुरी को भाषा की मान्यता मिल जाएगी उस दिन आधिकारिक रूप से हिन्दी भाषियों की संख्या कम हो जाएगी और यूनाइटेड नेशन्स मे हिन्दी की दावेदारी कम हो जाएगी।
१०. डॉ उपाध्याय का स्पष्ट मानना था की जिस दिन यूनाइटेड नेशन्स मे हिन्दी को मान्यता मिल जाती है तो उस दिन हिन्दी को आग भी लगा दी जाए तो उनको मंजूर है उन्हे हर कीमत पर यूनाइटेड नेशन्स मे हिन्दी की मान्यता चाहिए। 
११. अपने पूरे वक्तव्य के दौरान डॉ उपाध्याय क्षेत्रीय बोलियों के आठवीं अनुसूची मे शामिल होने के खिलाफ ही बोलते चले गए। अंत मे उन्होने कहा की या तो क्षेत्रीय बोलियों को आठवीं अनुसूची मे शामिल ही नहीं किया जाए और यदि किया ही जाना है तो हिन्दी की श्रेणी को अपग्रेड कर एक नई श्रेणी में डाला जाए।

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भोजपुरी को मान्यता मिलने से आठवीं अनुसूची डम्पिंग ग्राउंड हो जाएगा ऐसे कथन हैं मुंबई विश्व विद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो करुणाशंकर उपाध्याय के। इन दिनों भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग चल रही है। लेकिन हिंदी प्रेमी विद्वानों का मानना है कि हिंदी की ही इन बोलियों को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लेने से हिंदी का नुकसान होगा। क्योंकि जनगणना के समय इन भाषाभाषियों की माृतभाषा भोजपुरी/मैथिली/राजस्थानी आदि लिखी जाएगी, न कि हिंदी। यह नुकसान हिंदी और देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना पड़ेगा। इस गंभीर विषय पर मुंबई प्रेसक्लब ने शुक्रवार दिनांक 17 जनवरी 2017 को मुंबई प्रेस क्लब मे साँय 3 बजे से एक रचनात्मक बहस का आयोजन किया। जिसकी अध्यक्षता बॉम्बे उच्चन्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. चंद्रशेखर धर्माधिकारी जी ने की। भोजपुरी का पक्ष रखने के लिए विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष एवं महाराष्ट्र शासन के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव सतीश त्रिपाठी मौजूद थे। भोजपुरी की तरफ से बड़ी मुखरता से उनका साथ दिया चार्टर्ड एकाउंटेंट पंकज जायसवाल ने। हिंदी का पक्ष रखा मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने ।

बहस की शुरुवात विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष एवं महाराष्ट्र शासन के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव सतीश त्रिपाठी ने करते हुए बहस के विषय पे टिप्पणी करते हुए कहा की वह हिन्दी बनाम बहस के विषय को लेकर थोड़ा भ्रम में हैं क्यूँ की कभी उन्होने सोचा ही नहीं था की हिन्दी का कभी वो विरोध करेंगे हिन्दी कभी भोजपुरी का विरोध करेगी। संविधान निर्माण के समय आठवीं अनुसूची में 14 भाषाएँ थी अब 22 भाषाएँ है, मैथिली सहित 8 नई भाषाएँ आने से अगर हिन्दी कमजोर नहीं हुई तो भोजपुरी के जुडने से हिन्दी कैसे कमजोर हो जाएगी ये उनके समझ से बाहर है।

डॉ करुणाशंकर उपाध्याय विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग मुंबई विश्वविद्यालय अपने वक्तव्य के दौरान हिन्दी की ताकत बताने की बजाय क्षेत्रीय बोलियाँ विशेषकर भोजपुरी के उपहास पर ही ज्यादे बोलते चले गए। डॉ उपाध्याय का स्पष्ट कहना था क्षेत्रीय बोलियाँ को आठवीं अनुसूची मे जगह देने से आठवीं अनुसूची बोलियों का डम्पिंग ग्राउंड हो जाएगा, भोजपुरी सहित क्षेत्रीय बोलियों के दो कौड़ी के साहित्यकारों को पुरस्कार मिलने लगेंगे और हिन्दी के 12 लाख साहित्यकारों के साथ अन्याय होगा। डॉ उपाध्याय के अनुसार अगर आज भोजपुरी के आठवीं अनुसूची मे आने से नहीं रोका गया तो कल चंबल के डाकू और कश्मीर के आतंकवादी भी अपने भाषा को आठवीं अनुसूची में डालने के लिए मांग करने लगेंगे। भाषा को लेकर एक देश मे भाषा युद्ध छिड़ जाएगा और देश मे हिन्दी के 38 बोलियों के नाम पर पृथक राज्य की मांग उठने लगेगी। डॉ उपाध्याय का यह भी कहना था की भोजपुरी भाषी जिस संख्या बल के होने की बात करते हैं उतनी संख्या बल उनकी है ही नहीं , उनके अनुसार भोजपुरी वाले अवधी बोली क्षेत्र को अभी अपने में मिला के अपना गलत संख्या बताते हैं। उनके अनुसार भोजपुरी वाले तो अमिताभ बच्चन को भी भोजपुरी का बताते हैं जबकि वह मूल रूप से प्रतापगढ़ के हैं और अवधी है। डॉ उपाध्याय का स्पष्ट मानना था की भोजपुरी को मान्यता मिलने से देश में अलगाववाद की भावना भड़केगी और जैसे देश में बंग भंग या पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था वैसी परिस्थितियों का निर्माण होगा। डॉ उपाध्याय ने चीन कि कठोर और दमनकारी भाषा नीति कि वकालत करते हुए भारत सरकार से आग्रह किया की जैसे चीन अपने 58 बोलियों की जगह चाइना की राष्ट्र भाषा को अनिवार्य अनिवार्य बनाने के लिए कठोर एवं दमनकारी कानून लगाता है भारत सरकार को वैसे ही कठोर एवं दमनकारी कानून लाकर बोलियों को आठवीं अनुसूची में आने से रोकना चाहिए। जिस दिन भोजपुरी को भाषा की मान्यता मिल जाएगी उस दिन आधिकारिक रूप से हिन्दी भाषियों की संख्या कम हो जाएगी और यूनाइटेड नेशन्स मे हिन्दी की दावेदारी कम हो जाएगी। डॉ उपाध्याय का स्पष्ट मानना था की जिस दिन यूनाइटेड नेशन्स मे हिन्दी को मान्यता मिल जाती है तो उस दिन हिन्दी को आग भी लगा दी जाए तो उनको मंजूर है उन्हे हर कीमत पर यूनाइटेड नेशन्स मे हिन्दी की मान्यता चाहिए। अपने पूरे वक्तव्य के दौरान डॉ उपाध्याय क्षेत्रीय बोलियों के आठवीं अनुसूची मे शामिल होने के खिलाफ ही बोलते चले गए। अंत मे उन्होने कहा की या तो क्षेत्रीय बोलियों को आठवीं अनुसूची मे शामिल ही नहीं किया जाए और यदि किया ही जाना है तो हिन्दी की श्रेणी को अपग्रेड कर एक नई श्रेणी में डाला जाए।

इस चर्चा में तृतीय वक्ता चार्टर्ड अकाउंटेंट पंकज जायसवाल का वक्तव्य भोजपुरी और क्षेत्रीय बोलियों को लेकर काफी मुखर रहा और उनके निशाने पर डॉ उपाध्याय के बोलियों के उपहास वाले वक्तव्य रहे। जायसवाल के अनुसार डॉ उपाध्याय के
वक्तव्य और उनके तर्कों के स्तर को सुनने के बाद अब वो निश्चिंत हैं कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में जाने से कोई नहीं रोक सकता है। उन्होने डॉ उपाध्याय को आठवीं अनुसूची मे शामिल होने पर सूची को डम्पिंग ग्राउंड बोलने पर आड़े हाथो लिया और एक बूढ़ी होती माँ कि कहानी सुनाई कि एक बूढ़ी माँ अपने जवान होते बेटे के सामने आज अपने आसरे और हक़ के लिए खड़ी है और जवान बेटे को निर्णय लेना है। जायसवाल ने इस कहानी के माध्यम से बताया कि बोलियाँ ही हिन्दी कि जननी है और हिन्दी बोलियों कि संतति। भला जननी को संतति के यशस्वी और प्रगति करने से क्या आपत्ति होगी। अगर संतति को कष्ट होगा तो जननी को भी होगा। भोजपुरी तो हिन्दी का कभी अहित चाह ही नहीं सकती। भोजपुरी और हिन्दी
एक ही परिवार के हैं। आप कि अदालत मे अमर सिंह के वक्तव्य को उद्धृत करते हुए बताया कि यकीन मानिए जैसे पिता को पुत्र से हर्णे में बहुत मजा आता है, अगर आज भोजपुरी हार भी जाती है और हिन्दी जीत भी जाती है तो यकीन मानिए भोजपुरी को बहुत संतोष होगा। जायसवाल का मानना था कि यह तो वक़्त और दौर का तकाजा है कि हिन्दी बनाम क्भोजपुरी हो गया है,लेकिन उनको तो कभी अहसास ही नहीं हुआ कि दोनों अलग है। डॉ उपाध्याय को आड़े हाथों लेते हुए उन्होने कहा कि समस्या को समझिए,समस्या सरकारी व्यवस्था है जो कि जनगणना फॉर्म मे सिर्फ एक ही कॉलम रखती है, डॉ उपाध्याय को जनगणना फॉर्म के प्रारूप के खिलाफ लड़ना चाहिए ताकि वह बदले ना कि भोजपुरी और क्षेत्रीय बोलियों के खिलाफ। जायसवाल के अनुसार यदि जनगणना फॉर्म मे भाषा के कुछ कॉलम बढ़ा दिए जाएँ और आठवीं अनुसूची में बोलियों कि एक अप सूची बना दी जाए तो इस व्यर्थ के बहस और विवाद से बचा जा सकता है।



चौथे वक्ता के रूप मे अडवोकेट अनिल पांडे ने डॉ उपाध्याय के आंकड़ों कि सत्यता पे सवाल उठाए और उन पर तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने के आरोप लगाए। अडवोकेट अनिल पांडे के अनुसार डॉ उपाध्याय ने सभा मे सतही जानकारी पेश की, उनकी भाषा शैली बोलियों के प्रति उपहासात्मक रही और उनके नाम/पद/डिग्री के अनुरूप नहीं थी। अडवोकेट अनिल पांडे को उनसे स्तरहीन उपमा और सतही शब्दों के इस्तेमाल की अपेक्षा नहीं थी। उन्होने डॉ उपाध्याय के वक्तव्यों पे दुख व्यक्त करते हुए कहा की डॉ उपाध्याय अनावश्यक विवाद को हवा दे रहे हैं जिसे सोचा न जा सकता हो। 

कार्यक्रम के दौरान कुछ श्रोतावों ने डॉ उपाध्याय के द्वारा बताए गए आंकड़ों पे भी प्रश्न किया, तो किसी ने हिन्दी से रोजगार कैसे प्राप्त होगा ईसपे भी बल डाला। एक श्रोता ने अँग्रेजी और अंग्रेज़ियत और बच्चों के सिर्फ अँग्रेजी स्कूल में ही दाखिले को हिन्दी भाषा का संकट बताया।

अपने अध्यक्षीय सम्बोधन मे बंबई हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस चंद्रशेखरन धर्माधिकारी ने कहा कि आज हिन्दी को संकट हिन्दी भाषियों से ही है। जिस तरह से अँग्रेजी का विस्तार हो रहा है और हिन्दी का घटाव हो रहा है वो चिंताजनक है। असली खतरा हिन्दी को सबसे ज्यादा अँग्रेजी से है। हम क्यूँ नहीं अपने हिन्दी भाषा मे बोलियों के शब्दों को स्थान देते हैं, हम क्यूँ हिन्दी को कठिन करने पर तुले हुए हैं। अगर किसी वाक्य में कोई शब्द लेना है तो हमे अंगेरजी के बजाए बोलियों के शब्द लेने चाहिए तभी हिन्दी का विकास होगा। उन्होने अपने बारे में बताया कि वो अदालत के काम अँग्रेजी में करते थे, लेकिन अदालत के बाहर सब काम और बातचीत और सम्बोधन हिन्दी में ही करते थे।

कार्यक्रम के संयोजक और संचालक वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश तिवारी और मुंबई प्रेस क्लब आयोजक रहा। गरमागरम चर्चा का निष्कर्ष रहा कि हिंदी की 38 बोलियों सहित देश की तमाम बोलियों के विकास के लिए सरकार कोई अलग व्यवस्था करे, ताकि इन बोलियों का टकराव हिंदी से न हो और ये भाषाएं भी प्राकृतिक रूप से फलें-फूलें।