Sunday 18 October 2015

भौजी नंबर १ - का ग्रांड फिनाले २५ अक्टूबर को लाइव


महुआ प्लस और भोजपुरी का नंबर वन शो भौजी नंबर १ - सीजन ७ सारे रिकॉर्ड को तोड़ते हुए फाइनल स्टेज में पहुंच चूका है. २५ अक्टूबर को सबेरे ११ बजे से लाइव टेलीकास्ट किया जायेगा. यह शो घरेलु महिलाओं के हुनर को निखारना और राष्ट्रीय फलक पहचाने दिलाने में वर्षों से सफलतापूर्वक काम कर रहा है, जिसके चलते महिलाओं का साथ-साथ पूरा परिवार यह शो देखता है, घरेलु महिलाये तो भौजी न. १ शो के दौरान टेलीविजन से चिपकी रहती है। बिहार, झारखण्ड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के परिवार मे भौजी न. १ ही नहीं महुआ प्लस की पहली पसंद महुआ प्लस के शो और सीरियल ही है.

अपने लोकप्रिय भौजी को जिताने के लिए वोट करे .....
१. अनुराधा भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> ANU और भेजें दें 58888  पर...............

२. पूजा भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> POO और भेजें दें 58888  पर...............


३. रीना भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> REE और भेजें दें 58888  पर...............


४. श्वेता भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> SWE और भेजें दें 58888  पर........








फाइनल में पहुंची चारों महिलाये अब पुरे भारत में लोकप्रिय हो चुकी है, कोई किसी से कम नहीं है. एसएमएस द्वारा लाखों एसएमएस रोज़ सभी प्रतियोगियों के लिए उनके फैन एसएमएस भेज रहे हैं, जिससे भौजी नो. की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं. भौजी नंबर १ के निर्णायक मंडल में भोजपुरी फिल्मो के प्रसिद्द निर्देशक राज कुमार आर. पाण्डेय, लोक गायक गोपाल राय जज की भूमिका में और भोजपुरी फिल्मों कई कलाकार अतिथि जज की भूमिका में दिखेंगे है साथी लटका-झटका भी दिखाते मिलेंगे. कॉन्सेप्ट डिजाइनर राघवेश अस्थाना डायरेक्टर, होस्ट : लोकप्रिय एंकर प्रियेश सिन्हा, राकेश सिन्हा क्रिएटिव हेड - अमित शर्मा, स्क्रिप्ट राइटर आलोक श्रीवास्तव एवं पीआरओ: कुलदीप श्रीवास्तव.


Tuesday 13 October 2015

भोजपुरी फिल्म गुलामी -- १६ अक्टूबर से सिनेमा घरो में

भोजपुरी फिल्म इतिहास में पहली बार भोजपुरी फ़िल्मी गुलामी का प्रचार-प्रसार भारत की टॉप न्यूज़ चैनल पर होने जा रहा है, ज़ी न्यूज़, IBN7  न्यूज़ २४, न्यूज़ नेशन, समाचार प्लस आदि पर किया जायेगा. यशी फिल्म बैनर तले बानी फिल्म गुलामी में  कलाकार दिनेश लाल निरहुआ, मधु शर्मा, शुभी शर्मा, टीनू वर्मा आदि. फिल्म का निर्देशन टीनू वर्मा ने किया है. गुलामी एवं अभय सिन्हा के पूरी टीम बहुत बहुत बधाई!  

यशी एन्टरप्राईजस, पिक्टोग्राफ, समीर आफताब एवं टीनू वर्मा निर्देशित और अभय सिन्हा प्रस्तुति फिल्म गुलामी जो 16 अक्टूर को रिलिज हो रही है। पिछले महिने अंधेरी वेस्ट स्थित द क्लब में भोजपुरी फिल्म गुलामी को म्यूजिक एक भव्य एवं शानदार कार्यक्रम में हिन्दी फिल्मों के एंग्रीयंगमैन सनी देओल सनी दिओल ने रवि किशन के साथ फिल्म के कलाकार दिनेश लाल निरहुआ, अभिनेत्री मधु शर्मा, शुभी शर्मा,एक्टर डायरेक्टर टीनू वर्मा एवं एवेरग्रीन अभिनेता कुणाल सिंह, निर्माता अभय सिन्हा एवम् समीर आफताब, जिक डायरेक्टर पंकज तिवारी और गोविन्द ओझा मौजूदगी में हुआ। इमप्पा के अध्यक्ष टीपी अग्रवाल और वेब म्यूजिक के हंसराज ने भी कार्यक्रम में चार चाँद लगाये।
इतने कम समय में गुलामी के गाने लोगों के जुबान पर चढ़ गए है, हर कोई अपनी-अपनी पंसद के गाने गुन-गुनाते मिल जाएगा। इस फिल्म में हर तबके के मिजाज के अनुसार गाने डाले गए है। किसी को धीरे धीरे दिल में, तो किसी को ‘दाब दिहीं ए राजा’ पंसद आ रहा है तो कोई धक चकड़ के दिवाना है सभी मस्त गाने है, फिल्म में कुल् 10 धमाकेदार गाने है।
पंकज तिवारी एवं गोविंद ओझा ने पहली बार योद्धा में एक साथ संगीतकार के रूप में कैरिअर की शुरूआत की तो उनको थोड़ा-सा भी आभास नहीं था कि इतनी आपार सफलता मिलेगी। अपनी पहली हिट 


योद्धा के गाने की सफलता के जश्न के साथ-साथ गुलामी की गाने की ऐसी कंपोज कर बैठे की। गुलामी गाने एक ही हप्ते में ही सफलता के शिखर पर इन दोनों को ला खड़ा कर दिया है। गुलामी के गाने ऐसा धूम मचा रहा है कि श्रोता इन दोनों को पंकज-गोविंद से पुकारने लगी। धक् चकड़ या धीरे धीरे दिल में, मधुर एवं कणप्रिय गाने है. कल्पना के गाये ये गीत, दाब दिहीं ए राजा सबके जुबान पर चढ़ चूका है......... भोजपुरी पंचायत ने पंकज जी को फोन कर उनकी प्रतिक्रिया मांगी। उनका कहना था कि ‘हमने दिल से अपने चाहने वालों के लिए कुछ नया एवं मधुर और कर्णप्रिय संगीत देने की कोशिश की, जिसको दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है। जो हमे हौसला एवं कुछ उम्दा करने की प्रेरणा देता है। 
आपके चाहने वालों ने आप दोनों को एक नया नाम पंकज-गोविंद दिया है। अपको कैसा लगा रहा है? यह श्रोताओं का प्यार है। हम अपने फैन से बस इतना ही कहना चाहेंगें कि ‘हिट पे हिट देम हो, सबका दिल जीत लेम हो’। दिल से धन्यवाद!

यादव पान भण्डार सन्देश पूर्ण स्वस्थ मनोरंजक फिल्म है - जितेश दूबे

फिल्म निर्माता जितेश दूबे की सोच बहुत ही अलग है और उनकी सोच ही सिनेमा के रूपहले परदे पर
सिनेप्रेमियों को मंनोरजन के साथ ही साथ संदेश भी देती है. जीतेश दूबे भले ही फिल्म निर्माता है, पर वह फुल फिल्मी सोच के मालिक है, इसलिए उनको भोजपुरी के शोमैन के नाम से भी जाना जाता है। उनका हर काम अनोखा होता है। उनकी फिल्म का टाइटल को ही ले, ‘धर्मवीर’, ‘मुन्नीबाई नौटंकीवाली’, ‘यादव पान भण्डार’ और अगली फिल्मी होगी ‘मेंहरारू पार्टी जिन्दाबाद’!

शीघ्र ही प्रदर्शित होने वाली उनकी भोजपुरी फिल्म यादव पान भण्डार के पोस्ट प्रोडक्शन के समय स्टूडियो में हुई उनसे बातचीत के प्रमुख अंश -
जितेश दूबे जी आपकी लगभग सभी फिल्में सफल रही है और बाक्स आॅफिस पर 
धमाल मचाई है, इस सफलता का क्या राज है?
मैं हमेशा से ही फिल्म इंडस्ट्री को अलग हटके कुछ नया और यूनिक देना चाहता हूँ और सफलता भी मिली है. मेरी पहली फिल्म ‘धर्मवीर’ दो दोस्त की कहानी थी, उसके बाद ‘मुन्नीबाई नौटंकी’ वाली नायिका प्रधान फिल्म थी, ‘बृजवा’ एक खलनायक की कहानी थी, ‘मार देब गोली केहू ना बोली’ और अब ‘यादव पान भण्डार’. मेरी सभी फिल्मों के टाईटल और कांसेप्ट बहुत हटके होते हैं. सफलता का यही राज है, समाज के हर तबके मेरी फिल्म देखने को आती है। युवा, महिला चाहे हमारे बुजुर्ग, सभी मेरी फिल्मों को पंसद करते है एवं उनका भरपूर प्यार मिलता हैं, तो जिसके साथ समुचा समाज तो फिल्म वैसे ही हिट!
यादव पान भण्डार मेरी सभी फिल्मों की तरह मनोरंजन से भरपूर साफ सुथरी फिल्म है. जिसे आप अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं. इमोशन, रोमांस, हँसी, एक्सन, ड्ररामा, मारधाड़, नाच-गाना आदि जो भी दर्शकों को चाहिए होता है वह सब कुछ फिल्म के अन्दर है, फुल इंटरटेंमेंन्ट!
‘यादव पान भण्डार’ के बारे में आप बताईये?
यह फिल्म एक पान वाले की जिंदगी पर आधारित  कहानी है. हमारे मेगास्टार मनोज तिवारी जी यादव का किरदार निभा रहे हैं. मनोज तिवारी ने बेहतरीन अभिनय किया है. फिल्म की नायिका गुंजन पन्त हैं और हास्य सम्राट मनोज टाईगर हैं. खलनायक संजय पाण्डेय और अयाज खान हैं. बृजेश त्रिपाठी, सीपी भट्ट, नीलिमा सिंह, रीना रानी, विनोद मिश्रा, बालगोविन्द बंजारा सहित भोजपुरी के बहुत से कलाकार दर्शकों का मनोरंजन करेंगे. फिल्म के निर्देशक अजय कुमार है. इस फिल्म में बहुत अच्छा मैसेज है, जो फिल्म देखने के बाद पता चलेगा. जैसाकि आप जानते हैं हर कोई चाहे वह फिल्म निर्माता हो या कलाकार हो, वो अपनी अगली फिल्म में नयापन देने की कोशिश करता है, और मैंने भी वही कोशिश की है. मुझे उम्मीद है कि मेरी आई हुई सभी फिल्मों का रिकाॅर्ड यादव पान भण्डार तोड़ देगी.
फिल्म में ऐसा क्या है जो दर्शकों को बार-बार फिल्म देखने जाना पड़ेगा ?
मैंने इस फिल्म के निर्माण में बहुत मेहनत की है. फिल्म का गीत संगीत बहुत ही कर्णप्रिय है जिसको श्रोता बार-बार सुनना व देखना चाहेंगे. फिल्म के एक्शन सीन की चर्चा करने से पहले फाईट मास्टर शकील मास्टर जी को श्रद्धांजलि देना चाहूँगा. आज वो हमारे बीच नहीं रहे, अल्लाह उन्हें जन्नत दें. उन्होंने  यादव पान भण्डार में दर्शकों के मनोरंजन के लिए उम्दा और रोमांचक एक्शन दिया है.
पूरी फिल्म दर्शकों को बाँधकर रखेगी. बहुत सी चीजे हैं फिल्म में जिसे सिनेप्रेमी बार बार सिनेमाहाल में देखने के लिए जायेंगे.
जोरो की चर्चा है कि अब तक आपकी जितनी फिल्म आई है सबका कांसेप्ट और टाईटल आप देते हैं और आप अपनी अगली फिल्म का निर्देशन खुद करने वाले हैं, क्या यह बात सही है?  
इसके बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा. सुनने में तो मुझे भी आया है, कई लोग मुझसे भी पूछ चुके हैं मगर निर्देशक बनने का मेरा कोई ऐसा इरादा नहीं है. मैं फिल्म निर्माता ही बने रहना चाहता हूँ. फिल्म अच्छी बने और दर्शकों का पैसा वसूल हो, इसलिए मैं दर्शकों के लिए फिल्म बनाता हूँ. यही वजह है कि फिल्म के हर पहलु पर मैं बारीकी से ध्यान देता हूँ. मेरे कुछ करीबी हीरो हीरोइन हैं जो चाहते हैं कि मैं निर्देशन करूँ तो भविष्य में हो सकता है कि शौकिया तौर पर कोई फिल्म निर्देशित करूँ, परन्तु अभी कोई इरादा नहीं है.

Sunday 11 October 2015

आखिर कब मिलेगी जातिवाद और सांप्रदायिकता से मुक्ति?

बिहार चुनाव अपने चरण पर है और पूरी तरह सेसंकीर्ण राजनीतिक एवं सांप्रदायिकता से नहाया हुआ है। मोदी के विकास एजेंडे से कोसों दूर दादरी और गोमांस ऐसे छाया हुआ है जैसे कि लगता है है
कि बिहार में तो कोई समस्या ही नहीं है। अभी फिलहाल केवल गोमांस और दादरी पर ही नेतागण अपनी बात करते, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते नजर आ रहे हैं। इस समय बिहार चुनाव किसी थ्रिलर फिल्म की तरह दिलचस्पी के चरम शिखर पर पहुंचा हुआ है जहां नेतागण जीत के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार हैं या यूँ कहें तो उतर चुके हैं! मतदाता भ्रम की स्थिति में हैशायद अब उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि जाएं तो जाएं किधर! बिहार की जनता के मन में कई प्रश्न उठ रहे हैं, जैसेकि अगर संघ भाजपा वाले लालू राज को जंगल राज और खुद लालू अपने राज को मंडल राज बता रहे हैं तो आखिर इसमें हकीकत क्या है? सच क्या है?क्या सच वह है, जो लालू कह रहे हैं या वह, जो भाजपा वाले बतला रहे हैं। अभी फिलहाल लालू और भाजपा की मौखिक लड़ाई में नीतीश कहीं गुम हो गए लगते हैं। लगता है कि असली लड़ाई भाजपा एवं राजद यानी लालू के बीच ही सिमट कर रह गई है।
भाजपा और मोदी कह रहे हैं कि पहले लालू को उनके ही जंगलराज में उनको जेल का अनुभव नहीं था पर अब तो जेल का भी अनुभव भी है उनके पास। क्या आप ऐसा बिहार चाहते हैं? अगर नहीं तो भाजपा को वोट दें और हम ही बिहार से पूरी तरह जंगल राज खत्म करेंगे। तो दूसरी तरफ लालू गुजरात दंगे का अलाप लगा रहे हैं और तो और लालू संघ को ब्राह्मणों की संस्था बता भाजपा और मोदी पर वार पर वार किए जा रहे हैं।
                दादरी की घटना ने बिहार चुनाव में आग में घी काम किया है। लालू और भाजपा को विकास से इतर एक ऐसा मुद्दा मिल गया है जिसके चलते बिहार और देश-समाज की समस्याएँ मीडिया और नेताओं के मुख से नौ-दो-ग्यारह हो गई हैं। लालू ने यह कहकर कि हिन्दू भी बीफ खाते हैं, दादरी मामले को बिहार चुनाव में झौंक दिया। लालू के समर्थक इस पूरे घटना-क्रम को नफरत-राजके रूप में देख रहे हैं और लोगों को दिखा रहे हैं। बिहार की जनता डरी हुई है कि कहीं10 साल पहले वाले बिहार में हम न आ जाएं और दूसरी तरफ भागलपुर की जनता भी डरी हुई है। यहां के सांप्रदायिक सौहार्द के वातावरण को बिगाड़ने की कोशिशें चल रही हैं और रेशमी नगर अपनी आंखों से यह सब विवश होकर देख रहा है। यहां भी अफवाहों का बाजार गर्म है। चर्चा है कि एक बार मंदिर निर्माण के नाम पर यहां हिंसा भड़की थी। महागठबंधन के लोग कहते हैं कि इस बार एक नेता अपने पुत्र के भविष्य निर्माण के लिए ऐसा करवा रहे हैं। रेशमी शहर के लोग सहमे हैं। गाय-सूअर का खेल और अफवाहें जोर-शोर से उड़ रही हैं। सद्भाव बिगाड़ने की साजिश चल रही है। नफरत का माहौल बनाने की कोशिशें हो रही हैं। धन्य है भागलपुर की जनता, जो राजनेताओं की साजिशों से दूर खड़ी है। सबकुछ समझ रही है। ये तो पब्लिक है, ये सब जानती है। पब्लिक है।
                भाजपा और मोदी दावा कर रहे है कि हम जंगल राज खत्म करेंगे। जनता के मन में
प्रशअन उठना लाजमी है कि क्या नफरत के रास्ते जंगल राज खत्म होगा? प्रश्न तो कई मन में उठते हैं कि क्याजात-पात के नाम पर या धर्म के नाम पर बाँटकर ही बिहार का विकास संभव है क्या? क्या हमारे नेतागण धर्म, जात-पात और नफरत की राजनीति से कभी ऊपर उठकर बिकास की बात करेंगे या सदा की तरह खुद को और जनता को भी नफरत की राजनीति में उलझाकर अपनी गोटी चम करने की फिराक में ही रहेंगे? क्या मोदी ने जैसे विकासवाद के नाम पर दिल्ली का शासन अपने हाथ में लिया वैसे ही विकास के नाम पर, विकास को मुद्दा बनाकर, बिहार की समस्याओं को उठाकर, सत्ता तक नहीं पहुँचा जा सकता? आखिर कब तक धर्म, जात-पात, नफरत की राजनीति में देश, बिहार जलता रहेगा, आखिर कत तक? ऐसा क्यों होता है कि चुनाव आते ही नफरत, धर्म, जात-पात की राजनीति गरमा जाती है, कहीं पर दंगे तो कहीं पर अफवाहों का बाजार गर्म होने लगता है और इसका खामियाजा अपने ही निर्दोष भाइयों-बहनों को भुगतना पड़ता है? आखि क्यों? क्या हमारे नेताओं के आँखों का पानी सदा के लिए मर गया है? क्या उन्हें अपनी तथा अपनी पारटी के स्वार्थ के सिवा कुछ और देखने-सुनने की जरूरत नहीं? क्या हो गया है हमारे नेताओं को?

                हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, दलित, महादलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा और अगड़ा सबके घर अंधेरे
में हैं। सब बेहाल हैं, परेशान हैं, देश, राज्य सभी असमंजस की स्थिति में नेताओं की ओर आँखें लगाए बैठे हैं पर सशंकित भी हैं कि क्या, उनके नेता, अपने ही घर-देश के नेता अपने तथा अपनी पार्टी के स्वार्थ से ऊपर उठते हुए देश, समाज, बिहार का विकास कर पाएँगे? क्या विकास की राजनीति को तवज्जो मिलेगी? खैर देखते हैं, आगे होता है क्या? बिहार का ताज किसके सिर बँधता है?

तुम डाल-डाल, हम पात-पात - बिहार चुनाव

चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियों को गिरगिट जैसे रंग बदलते आसानी से देखा जा सकता है। अब
देखिए न, बिहार में चुनावी बिसात तो बिछ ही चुकी है, इधरमहागठबंधन में दरार भी पड़ चुका है, नीतीश के भरोसेमंद जीतनराम मांझी अब एनडीए खेमे में जा मिले हैं। कुछ महीनों पहले जिस तरह से जीतनराम मांझी के इस्तीफे के साथ ही नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनते कई महीनों से जारी मांझी और नीतीश के बीच सियासी लड़ाई हुई थी, उस सियासी लड़ाई ने इस चुनावी लड़ाई को नीतीश के लिए थोड़ा मुश्किल तो कर ही दिया है। नीतीश कुमार ने जबसे दुबारा राज्य के मुख्यमंत्री की बागडोर संभाले हैं, बिहार की राजनीतीनेनीतीशको समझौते की राह पर ला खड़ा कर दिया है। बिहार की राजनीति उनके लिए इतनी मुश्किल जान पड़ रही है कि उन्हें न चाहते लालू यादव के साथ आना पड़ा है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि विकट परिस्थितियों के बीच भी अपने राजनैतिक हमलावरों, विपक्षियों से जूझते हुए, बातों-बातों में ही कभी पटकनी देते तो कभी पटखनी खाते हुए नीतीश अपनी पार्टी को एकजुट रख पाने में सफल भी हुए हैं। लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार अब बहुत हद तक मजबूत नज़र आ रहे है। उपचुनाव में जीत और दिल्ली में भाजपा की करारी हार ने उनको और पार्टी को टॉनिक पिला दिया है, उनमें जोश भर दिया है लेकिन अब उनके सामने नई चुनौतियां होंगी। अब उन्हें अपने महादलित वोट बैंक को समझाना होगा कि मांझी को हटाना क्यों जरूरी था? यह भी बताना होगा कि किस कारण से उन्हें लालू प्रसाद यादव से समझौता करना पड़ा है। लालू एवं राजद का साथ उनके लिए थोड़ा नुकसानदायक जरूर हो सकता है, लेकिन राजनीति में समयानुसार विरोधियों से भी हाथ मिलाना पड़ता है, यह जगजाहिर है। इस बात को भी साकारात्मक रूप से नीतीश कुमार जनता के बीच ले जाना चाहेंगे, क्योंकि सत्ता तक पहुँचने के लिए नीतीश कुमार लगभग दो दशक तक लालू एवं उनके कार्यकाल को जंगलराज बताकर बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे और गाहे-बेगाहे लालू एंड पार्टी को निशाना बनाया करते थे। खैर नीतीश को पता है कि जनता सब भूल जाती है और वर्तमान में जीती है, शायद इस बात को ध्यान में रखकर वे थोड़े निश्चिंत होंगे और जनता की नाराजगी दूर करने का प्रयास करेंगे।

भाजपा और जदयू गठबंधन टूटने के बाद और भाजपा के सरकार से बाहर होने के बाद बिहार में कानून व्यवस्था की हालत जर्जर हो गई है और विकास की गाड़ी पटरी से पूरी तरह उतर चुकी है। उन्हें हरहालत में विकास को फिर से पटरी पर लाना होगा, जिसे वे अपना यूएसपी बताते हैं। उनके सामने यह भी दुविधा होगी कि मांझी द्वारा आनन-फानन में लिए गए फैसलों का क्या करें? दलितों के पक्ष में लिए गए उन निर्णयों को पलटने से उन्हें सियासी नुकसान हो सकता है। इसलिए नीतीश फूँक-फूँक कर कदम रख रहे हैं और जनता के लिए, बिहार के लिए नई-नई घोषणाएँ करने के साथ ही प्रधानमंत्री की घोषणा को घोषणा से दूर उसे बिहार के लिए मजाक करार दे रहे हैं। नीतीश और उनकी टीम बिहार को समझाने में लगी है कि मोदीजी ने जो घोषणा की वे अपने घर से नहीं दिए, वह बिहार का हक है और साथ ही उनके घोषणा करने का तरीका भी पूरी तरह से गलत था।

हाँ, यह भी सत्य है कि मांझी नीतीश के लिए मुश्किल इसलिए भी खड़ी कर सकते हैं क्योंकि इस्तीफे के बाद से उनका कद थोड़ा बढ़ गया और मुख्यमंत्री बनने से पहले लोगों के लिए अनजान व्यक्ति, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते ही महादलितों के नेता के रूप में अपने को प्रोजेक्ट कर लिया और शायद इसलिए बीजेपी भी उन्हें अपने खेमे में रखकर बिहार की जंग जीतना चाहती है। बीजेपी जनता के बीच नीतीश सरकार की गलतियों को गिनाने में लगी है। यह सही है कि बिहार की हालत अच्छी नहीं है। पिछला चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था की २०१५ तक हर गॉव में २४ घंटा बिजली नहीं पंहुच पाई तो वोट मांगने नहीं जाऊंगा! अब उनके वादों का क्या होगा? क्या जनता नीतीश के वादों को भूलकर उन्हें ओट करेगी या उन्हें धूल चटाएगी, यह देखने वाली बात होगी। साथ ही लालू से हाथ मिलाना भी बिहारी जनता को अखर सकता है और इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ सकता है पर साथ ही यह भी हो सकता है कि नीतीश की राजनीतिक मजबूरियों को समझते हुए जनता उनके साथ बनी रहे।

इधर मोदी की बिहार में दनादन रैलियाँ हो रही हैं। भीड़ भी खूब जुट रही है, तालियाँ भी खूब बज रही हैं, पर अभी तक यह भी असमंजस है कि यह तालियाँ मोदी के लिए बज रही हैं, एक प्रधानमंत्री के लिए बज रही हैं, उनकी घोषणाओं के लिए बज रही हैं या बिहार की जंग जीतने उतरी भाजपा के लिए, उनके उम्मीदवारों के लिए बज रही है? क्योंकि यह भी तो हो सकता है कि जनता मोदी को तो पसंद करती हो पर बिहार में वह बीजेपी के पक्ष में न जाए, जैसा कि दिल्ली आदि में देखा जा चुका है।
वैसे नीतीश की राह भले कठिन हो पर यह भी सत्य है कि उनका भी एक जनाधार है, जो उन्हें एक अच्छा अगुआ, एक अच्छा मुख्यमंत्री के रूप में देखता है। उसे लगता है कि बिहार को सही रास्ते पर, विकास के रास्ते पर नीतीश जरूर दौड़ा सकते हैं पर इसके लिए हमें उन्हें समय देना होगा। बिहार की यह लड़ाई सभी पार्टियों, गठबंधनों के लिए नाक की लड़ाई बनते नजर आ रही है और खींचातानी भी शुरू हो गई है। कहीं चुनावी भाषण तो कहीं गानों के माध्यम से अपने को अच्छा साबित करने की कोशिश। जनता भी चुनावी भाषणों, गानों आदि का खूब आनंद ले रही है और लगभग 80 प्रतिशत जनता ने ओट के लिए अपने माइंड को सेट भी कर लिया है। लगभग 20 प्रतिशत जनता उहापोह में है और अब इन्हें ही पार्टियाँ अपने लटके-झटके और भाषाणों से लुभा सकती हैं। तो चलिए देखते हैं कि तुम डाल-डाल, हम पात-पात की लड़ाई में बाजी कौन मारता है?



Sunday 20 September 2015

लंदन में होगा बीफा(BIFA) अवार्ड

 मुम्बई। भोजपुरी इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड (BIFA) समारोह अब लन्दन में संपन्न होगा। जैसा की विदित है की इसी वर्ष जून माह में प्रथम बीफा समारोह मॉरीशस में संपन्न हुआ था। जिसकी अपार सफलता के बाद अब बीफा समारोह लंदन में आयोजित करने की कवायद शुरू हो चुकी है। समारोह को आकर्षित एवं लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से आज फिल्म स्टार रवि किशन एवं फिल्म निर्माता अभय सिन्हा ने गहन चर्चा की। 
विश्व पटल पर भोजपुरी फिल्मों के प्रचार-प्रसार में सुपर स्टार रवि किशन और सब बड़े एवं समर्पित निर्माता अभय सिन्हा का महत्वपूर्ण योगदान है। 
इस बाबत चर्चा के दौरान सुपरस्टार रवि किशन ने कहा कि मॉरीशस के बाद अब लंदन में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का धमाल होगा। यही नहीं दोनों की धारणा है कि भोजपुरी फ़िल्में गंभीर और सामाजिक मुद्दों पर गुणवत्तापूर्ण बनाई जाये।जिससे नेशनल अवार्ड के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल में भी भोजपुरी फिल्मों को सम्मान मिल सके।

Friday 4 September 2015

"अंगुरी में डसलेस पिया नगीनिया हो" से लेकर "नई झूलनी के सईंयां बलम दुपहरिया बिताय ला हो" पर झूमा मुम्बई


भोजपुरी माटी की सोंधी महक को मुम्बई की माया नगरी में बिखेरने वाला  फ्रंटलाइन सबरंग कार्यक्रम बहुत ही मनमोहक रहा। भोजपुरी




फ़िल्म स्टार रवि किशन की संवाद अदायगी और नृत्य से प्रारम्भ हुए इस कार्यक्रम की उत्कृष्टता पहले ही सिद्ध हो गई। कार्यक्रम में प्रारम्भ से अंत तक उपस्थित होकर श्रेष्ठ अभिनेता कुणाल सिंह ने कार्यक्रम को एक अलग ही ऊँचाई दी। पाखी हेगड़े, अनारा गुप्ता, सीमा सिंह, काजल राघवानी, पूनम दुबे, तनुश्री, मोहिनी घोष, यश कुमार, कुणाल आदित्य, कॉमेडियन सुनील पाल  आदि अभिनेत्रियों की मोहक प्रस्तुतियों के बीच अंत में लोक गायक व अभिनेता  दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' ने अपनी गायकी से ऐसा शमा बाँधा कि मुम्बई की महानगरी में भोजपुरी की सुगंध महीनों तक फैलती रहेगी।


 उक्त कार्यक्रम में एक ऐसा भी पल आया जब उपस्थित दर्शकों से लेकर अतिथियों तक, मेहमानों से लेकर मेजबानों तक, सब भावुक हो गए जब भोजपुरी सिनेमा में योगदानों के लिए बीते जमाने के अभिनेता  गोपाल जी को जब 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' दिया गया।मुम्बई की सामाजिक सांस्कृतिक संस्था "अभियान" के सहयोग से  'भोजपुरी पंचायत' पत्रिका का तृतीय वार्षिक समारोह 'सबरंग-2015' शनिवार को आयोजित किया गया था। यह कार्यक्रम 'फ़िल्म सम्मान समारोह' के रूप में मुम्बई के नवीन भाई ठक्कर सभागार, विले पार्ले (प) में संपन्न हुआ। समारोह में फ़िल्मी कलाकारों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया तथा साथ ही फ़िल्म, साहित्य, राजनीति तथा सामाजिक सरोकारों से जुड़े तमाम लोगों को सम्मानित किया गया।

 कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना से हुई तथा महामंडलेश्वर स्वामी उमाकान्तानंद महाराज ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया।

 उक्त सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि  के रूप में 'दोपहर का सामना' के संपादक प्रेम शुक्ला जी थे तथा अध्यक्षता विश्व भोजपुरी सम्मलेन के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश त्रिपाठी ने किया। सम्पूर्ण कार्यक्रम का सफल संयोजन 'अभियान' के अध्यक्ष अमरजीत मिश्रा ने किया।

 सम्मान समारोह में दशक का श्रेष्ट निर्माता अभय सिन्हा जी को तथा दशक का श्रेष्ट अभिनेता रवि किशन को दिया गया। सम्मान के इसी क्रम में वर्ष 2014 के लिए सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार 'योद्धा' को दिया गया। वर्ष 2014 के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' को फ़िल्म 'निरहुआ हिंदुस्तानी' के लिए दिया गया। श्रेष्ठ अभिनेत्री मधु शर्मा को फ़िल्म 'योद्धा' के लिए तथा श्रेष्ठ नृत्य निर्देशक कानू मुखर्जी को दिया गया। वर्ष 2014 के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार रवि किशन को फ़िल्म योद्धा के लिए दिया गया। अभिनेता कुणाल सिंह को 'अभिनय रत्न' से, अभय आदित्य सिंह को 'महेंदर मिश्र सम्मान' तथा सीमा सिंह को डांसिंग क्वीन से सम्मानित किया गया।



कार्यक्रम के अंत में 'भोजपुरी पंचायत' पत्रिका के संपादक कुलदीप कुमार श्रीवास्तव ने आगंतुकों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में देश-विदेश से आये अनेक विभूतियों ने सम्मान समारोह का मान बढ़ाया। कार्यक्रम में लन्दन से शशि सोहदेव, बिहारी कंनेक्ट के उदेश्वर सिंह, गोल्फ क्रिक्रेट सेंटर के इरशाद अहमद सिद्दिकी तो पधारे ही थे साथ ही दिल्ली से पूर्वाञ्चल एकता मंच के अध्यक्ष शिवजी सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश सिंह, लखनऊ से श्रेष्ठ पत्रकार मनोज श्रीवास्तव, सोशल क्लब मस्कट के भोजपुरी विंग के संजय तिवारी जी, उत्तर प्रदेश भोजपुरी कलाकार एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद मिश्र आदि ने कार्यक्रम का मान बढ़ाया। अभियान की ओर से भोजपुरी पंचायत के सम्पादक कुलदीप कुमार का सम्मान विश्व भोजपुरी सम्मेलन के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम की सफलता और लोकप्रियता का आकलन सभागार में दर्शकों की भीड़ से किया जा सकता था।


दिनेशलाल यादव निरहुआ को फिल्म निरहुआ हिंदुस्तानी के बेस्ट एक्टर का अवार्ड प्रदान करते हुए भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता कुणाल सिंह ,बीजेपी मुम्बई के महामन्त्री व अभियान संस्था के संस्थापक अमरजीत मिश्र,फ़िल्म निर्माता अभय सिन्हा और भोजपुरी पंचायत के सम्पादक कुलदीप कुमार।


फ़िल्म सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए महामण्डलेश्वर स्वामी उमाकांतानंद सरस्वती महाराज,अभिनेता रवि किसन,पत्रकार प्रेम शुक्ल, बीजेपी मुम्बई के महामन्त्री व अभियान संस्था के संस्थापक अमरजीत मिश्र और भोजपुरी पंचायत के सम्पादक कुलदीप कुमार।


















Wednesday 25 March 2015

जिन्हें नाज है भोजपुरी पर, वो कहाँ हैं....



सैद्धांतिक तौर पर कहा जाता है कि जो भाषा रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं करा पाती, उस भाषा का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म होता जाता है। लेकिन यह सिद्धांत भोजपुरी के साथ ठीक-ठीक सामंजस्य नहीं बना पा रहा। सीधे तौर पर देखें तो अभी तक भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा भी नहीं मिला है पर इसके बावजूद यह भाषा अपनी उत्पत्ति क्षेत्र की सीमा लांघ कर दुनिया के लगभग 20 देशों में पंख पसार चुकी है। भाषा के विकास की भावना के साथ कुछ पेशेवर पहल भी देश में हुए हैं जो पर्याप्त न होने के बावजूद भी सकून देते हैं और संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के दावे को पुख्ता करते हैं। दूसरी ओर देखें तो, नेपाल से लेकर मॉरीशस और सूरीनाम में यह कुछ हद तक रोजगार की भाषा बनी है।


      एक हजार साल पुरानी भोजपुरी भाषा न केवल एक भाषा है बल्कि बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी क्षेत्र का संस्कार और जीवन है। भोजपुरी में वह क्षमता है जो अन्य भाषाओं में कम देखने को मिलता है। यह हर परिस्थिति में अपनी स्थिति मजबूत कर लेती है और उस मुकाम पर पहुँच जाती है जहाँ इसे होना चाहिए था। अपनी ऐतिहासिकता के लिए विख्यात भोजपुरी एक तरफ बलिया से बेतिया तक फैली है, तो इसका उत्तरी-दक्षिणी फैलाव लौरिया नंदनगढ़ से आजमगढ़, देवरिया तक है। दूसरी ओर जहां इसकी कीर्ति पताका राम प्रसाद बिस्मिल, मंगल पांडेय, असफाकउल्लाह खां जैसे क्रांतिवीरों ने लहराया है तो, वहीं बाबू कुंवर सिंह ने इसी जमीं में जीत का जज्बा भरा है। आजादी के बाद भोजपुरी क्षेत्र से बनने वाले प्रथम राष्ट्रपति की बात हो या कर्मठ प्रधानमंत्री का, डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर लाल बहादुर शास्त्री तक सर्वश्रेष्ठ विकल्प पुरबिया माटी से ही निकले हैं। सचिदानंद सिन्हा ने अपना कौशल दिखलाया तो वहीं दूसरी ओर दुश्मनों के दांत खट्टे करने और सरहदों की रक्षा ही नहीं वरन विस्तार करने में बाबू जगजीवन राम का कोई सानी नहीं।

      हमारे सांसद अपने गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा ले सकते हैं, क्योंकि हमारा भोजपुरिया प्रदेश विशेष रूप से सदा सत्ता का केंद्र रहा है और अपने सम्मान की रक्षा में हमेशा आगे रहा है। मौर्यों से पहले जरासंध और शिशुनाग जैसे शासकों को देख चुका यह क्षेत्र महान सिकंदर के आक्रमण को चंद्रगुप्त मौर्य के शौर्य से चुनौती देता है। कभी शिक्षा का महानतम केंद्र, तेजस्विता से ओत-प्रोत यह क्षेत्र कितने मनीषियों, शिक्षाविदों, राजनेताओं की महान कर्मस्थली बन विश्व का नेतृत्व किया, विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाया और आज एकाएक यह अनपढ़ और अपने कर्तव्य के प्रति उदासिन कैसे हो गया? नेता, सांसद अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान की बात तो करते हैं पर संसद में असहाय क्यों दिखते हैं, यह संदेहास्पद बात है, इनकी कोई मजबूरी है या ये जानबूझ कर अपनी मातृभाषा को उपेक्षित रखना चाह रहे हैं।



      एक से बढ़कर एक पावरफुल भोजपुरिया सांसद, मंत्री, लोकसभा अध्यक्षा, प्रधानमंत्री एवं देश के सर्वोच्च पद महामहिम राष्ट्रपति हुए। पर, आजादी के 68 साल बाद भी भोजपुरी भाषा अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रही है। वह भी भारत में सबसे ज्यादा भोजपुरी बोलने वाले सपूतों को पैदा करने के बाद भी, भोजपुरी माटी के लाल देश मे ही नहीं विदेशों में भी अपनी हुनर, मेहनत और ताकत के बलबूते सर्वोच्च पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं।

      आज मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सुरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिदाद, टोबैगो जैसे देशों में भोजपुरी जनसमूह अपना परचम बड़े गर्व से फहरा रहा है। मॉरीशस के खेतों में गन्ने की खेती के लिए धोखा से ले जाए गए मजदूरों ने बसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओत प्रोत हो कर उस मिट्टी को ही अपने खून-पसीने से सिंचना शुरू किया। बंजर जमीनें लहलहा उठीं और आज मॉरीशस विश्व का जीता-जागता स्वर्ग बन गया। यह भोजपुरी माटी की ताकत ही है कि देश के बाहर एक और भारत का निमार्ण हो गया। आखिर हमारे नेता अपने इतिहास से सीख क्यों नहीं लेते और वर्षो से लंबित भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की जोरदार पहल क्यों नहीं करते? आखिर कब तक ये सांसद, नेता, मंत्री केवल बातें बनाते रहेंगे और कोरा आश्वासन देते रहेंगे। यूपीए 1 एवं 2 के मंत्री और नेता भी केवल आश्वासन देने के सिवा कुछ नहीं किए। खांटी भोजपुरिया एवं सासाराम की सांसद, मीरा कुमारलोकसभा अध्यक्षा रहीं और कुशीनगर के सांसद आरपीएन सिंह गृहराज्य मंत्री रहे, फिर भी बिल तक पेश नहीं करा पाए लोकसभा में।

      भोजपुरी माटी में पैदा होकर अनेक भोजपुरिया सपूत अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण एवं पावरफुल बने। उन्हीं में से कवि केदार नाथ सिंह जी, आलोचक नामवर सिंह, मनेजर पाण्डेय जी और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी जी। इन चारों का मेरा नमन। इन लोगों ने अपने साहित्य, कविताओं और आलोचनाओं से देश-विदेश में भोजपुरी माटी का मान बढ़ाया है। पर, इन लोगों ने कभी भी अपनी मां की भाषा भोजपुरी की बात करना तो दूर कर्ज चुकाने की भी कोशिश नहीं की।

      हम ए महान विभूति लोगन से पुछत बानी की, ‘भोजपुरी के संवैधानिक दरजा मिले, एकरा खातिर कवनो फरज नइखे? विकिपीडिया पर भोजपुरी माटी के महान सपूत नामवर सिंह के हम प्रोफाइल पढ़त रहनी, पढ़ि के हमरा सरमिंदा महसूस भइल कि का कवनो भोजपुरिया खातिर एतना खराब समय आ गइल बा की ओकरा आपन पहिचान बतावत में सरम आवत बा? रउआँ सभे भी पढ़ लीं की का लिखल बा, ‘वे हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, बाँग्ला, संस्कृत भाषा भी जानते हैं।नामवर सिंह के जनम 1 मई 1927 के बनारस (अब के चंदौली जिला में) के एगो गाँव जीयनपुर में भइल रहे। तऽ का माननीय नामवरजी के आपन माई भाखा भोजपुरी ना आवेला? का पैदा होते उहाँ का उर्दू भा बंगला बोले लगनीं? यह बहुत ही शर्म की बात है कि ऐसा व्यक्ति जिस पर हम भोजपुरियों को नाज है वह अपनी माटी की खूशबू और भाषा से ही परहेज कर गया, जिसमें वह पला-बढ़ा, जिसको बोलकर वह आज इस मुकाम पर पहुँचा।

मनेजर पाण्डेय जी एवं कविवर केदारनाथ सिंह जी भोजपुरी में कुछ ना लिख सकेनीतऽ भोजपुरी मान्यता के मांग भी ना कर सकेनी का? ओने साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी 24 भासा के लोगन के सम्मान देत समय एक्को बेर उनका आपन माई के भासा भोजपुरी के यादो ना आइल? इ सभ देख के दिल के बड़ा ठेस पहुँचे ला, पर का इ चारों विभूतियन के कुछु फर्क भी ना पड़े? अब ए से बड़हन सरम के बात का होई। 2013 में पटना में मोदी सरकार के पावरफुल मंत्री रविशंकर प्रसाद भी कहले रहनी की मोदी सरकार आवते भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता मिल जाई। पर मान्यता तऽ दूर के बात बा, अभी हाले में रविशंकर बाबु 22 भासा में किताबन के डिजिटलाइजेशनके घोसना कइलन, पर भोजपुरी के तनको इयाद ना कइनें!


      हमरा उम्मीद ही ना पूरा विश्वास बा कि अगर इ नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, मनेजर पाण्डेय जी, विश्वनाथ त्रिपाठी और सभ भोजपुरिया सांसद एक बार, एक साथ जोरदार ढंग से भोजपुरी के अष्ठम अनुसूची में सामिल कइले के मांग उठाई लोग तऽ कवनो सरकार के रोकल मुश्किल हो जाई आ मान्यता संबंधी बिल संसद में पास करहीं के पड़ी। जय भोजपुरी!


Wednesday 18 March 2015

जर्मनी का दो सदस्यीय दल आज भोजपुरी अध्ययन केन्द्र में



हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी का दो सदस्यीय दल आज भोजपुरी अध्ययन केन्द्र में आया और भोजपुरी अध्ययन केन्द्र की गतिविधियों, पाठ्यक्रम और उसके व्यापक सरोकारो से परिचय प्राप्त किया। इस दल में हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय के साउथ एशिया केन्द्र के भारत विभाग के प्रतिनिधि श्री राडू काचूमारू तथा श्री सुबुर बख्त शामील थे। श्री काचू मारू ने भोजपुरी अध्ययन केन्द्र द्वारा विकसित नये ज्ञानानुशासन ‘जनपदीय अध्ययन’ की तारीफ की। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन में अस्मिताओं के निर्माण की आन्तरिक गति को समझने और उनके आपसी ताल-मेल और सह अस्तित्व की दृष्टि विकसित करने की क्षमता है, जो कि आज के विश्व की जरूरत है। श्री काचूमारू ने केन्द्र के संस्कृति और अस्मिता अध्ययन की तारीफ करते हुए कहा कि इसमें अकूत सम्भावनाएं हैं। देशज ज्ञान, देशज बुद्धिमत्ता, देशज कौशल को आधुनिक जीवन की बेहतरी में उपयोग करने की केन्द्र की धारणा बेहद सराहनीय है। उन्होंने केन्द्र के समन्वयक प्रो0 सदानन्द शाही से कहा कि केन्द्र की अवधारणाओं और सम्भावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय केन्द्र के साथ सहयोग करेगा। उन्होंने केन्द्र के समन्वयक प्रो0 शाही से इच्छा जताई कि भोजपुरी संस्कृति का अध्ययन करने के लिए जर्मन शोध छात्र केन्द्र में आयेंगे। श्री काचूमारू ने प्रो0 शाही से जनपदीय अध्ययन की अवधारणा, के बारे में हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय में वक्तव्य देने के लिए आग्रह किया। श्री काचूमारू ने यह भी कहा कि भोजपुरी अध्ययन केन्द्र की यह यात्रा एक सुदीर्घ और फलदायी सहयोग की शुरूआत है। भोजपुरी अध्ययन केन्द्र के साथ शोध अध्ययन की ठोस परियोजनाएँ तथा साझेदारी की रूपरेखा तैयार करने के बाद हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय इस सिलसिले में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति से मुलाकात करेगा। केन्द्र के निदेशक, प्रो0 सदानन्द शाही ने इस दल का स्वागत करते हुए कहा कि छः सौ वर्ष पुराने और पश्चिम के उत्कृष्ट विश्वविद्यालयांें में से एक हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय के प्रतिनिधियों को अपने बीच पाकर मैं बेहद प्रसन्न हूँ। भोजपुरी और जनपदीय अध्ययन के नवस्थापित केन्द्र के लिए यह गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय के साथ सहभागिता से केन्द्र को बल मिलेगा। इस अवसर पर प्रो0 शुभा राव, राजनीति विज्ञान, विभाग, प्रो0 एम नटराजन, जर्मन विभाग, डाॅ0 अंचल श्रीवास्तव, भौतिकी विभाग, डाॅ0 अवधेश दीक्षित, डाॅ0 अजीत राय, गोपेश, धीरज गुप्ता, शिखा सिंह, यश्वी मिश्रा, उषा, दिलीप कुमार सिंह, विनोद आदि लोग उपस्थित थे। 

Friday 13 March 2015

पारिवारिक फिल्म होगी 'फंस गइले प्रेम'


एनसीएस फिल्म्स की ओर से भोजपुरी फिल्म 'फंस गइले प्रेम'की शूटिंग अंतिम चरण में है। यह एक पारिवारिक फिल्म होगी जिसमें दहेज की समस्या के खिलाफ पुरजोर आवाज उठायी गयी है। ग्रामीण परिवेश से ओतप्रोत इस फिल्म में एक्शन और पारम्परिक गीत-संगीत भी लोगों को आकॢषत करेगा। फिल्म निर्देशक पप्पू भारती की यह दूसरी फिल्म है। फिल्म की अब तक की शूटिंग छपरा के समीप बेनियापुर गांव में हुई है।

इस फिल्म छपरा के राश बिहारी रवि गिरी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में है. रवि को बचपन से ही फिल्मो की दीवानगी रही हैं, और उस दीवानगी को बहुत दमदार अभिनय के साथ परदे दिखा रहे हैं. रवि कहते हैं कि 'भोजपुरी फ़िल्म और एलबम में गंदे गाने हमें परेशान कर देते हैं । मैं इस लाइन में आने से पहले एक ट्रांस्पोट कंपनी रीजनल मेनेजर की हैसियत से काम किया हूँ  । मुझे कविता और गीत लिखने का बचपन से शौक हैं । मैं भोजपुरी फ़िल्म बी डी ओ साहेब में एस ए डंका बाबा का एक्टिंग कर चूका हूँ और मेरे किरदार को दर्शको द्वारा काफी सराहा गया हैं.  मेरी आने वाली फ़िल्म 'फंस गइले प्रेम में' बहुत अच्छा किरदार निभा रहा हु । इस फ़िल्म की गीत मैंने लिखा हैं ।'


 फिल्म में मुख्य भूमिकाएं कुणाल सिंह, प्रतिभा सिंह, हेमंत, बाबी, रासबिहारी रवि, प्रेम सिंह, घनश्याम मिश्रा, केएम सिंह, सुल्ताना, बाबी अनुराधा, कुमार संजीत, अमित वर्मा, जीतू सिंह, अकबर अली, मुकुल यादव, कोमल मिश्रा, रूपा सिंह, रमेश कुमार, गंगा ठाकुर एवं विजय राय ने अदा की हैं। फिल्म के गीत रासबिहारी ने लिखे हैं नागेन्द्र नृपांशु ने संगीतबद्ध किया है। गायक आलोक कुमार, प्रतिभा सिंह, रेणु भारती गिरि, सुरजीत, आदिती मुखर्जी एवं मोहना हैं। फिल्म निर्देशक पप्पू भारती का कहना है कि इसमें अश्लीलता नहीं है तथा यह पूरे परिवार को ध्यान में रखकर बनायी गयी है।  रवि गिरी सहित पूरी टीम को अग्रिम बधाई। … 

Tuesday 10 March 2015

पति, पत्नि और वो दो



नाम-फेम के साथ-साथ अपने शख्तसियत को भी उपर उठाते हुए आगे बढ़ना पड़ता है, अपने स्टाइल में, रहन सहन में और व्यवहार में भी। पर भोजपुरी फिल्मी स्टारों में इन सभी बातों में बहुत अभाव देखा जाता रहा है। क्योंकि वो अपने गायकी से रातों-रात लोकप्रियता के हवाई जहाज पर एक बार चढ़ जाते हैं तो नीचे देखने की कोशिश ही नहीं करते। उनको लगता है कि एक बार फ्लाई कर दिये तो लैंड करने की क्या जरूरत? मगर जहाज को जमीन पर उतारना ही पड़ता है। जहां तक पवन सिंह की बात है तो मां सरस्वती उनके गले में वास करती हैं, आज की तारीख में पवन से सुरीला कोई गायक भोजपुरी गायकी की दुनिया में नहीं है। कम पढ़े-लिखे होने के साथ ही गलत संगत ने उनको कई गलत आदतों का आदि बना दिया है।

शराब की लत के साथ कई हिरोइनों के साथ उनका नाम जुड़ता रहा है, रानी चटर्जी के साथ तो कई सालों तक चला और आखिरकार बहुत हंगामें के साथ ब्रेकअप हुआ, उसके बाद मनोलिसा के साथ बहुत दिनों तक संबंध, चर्चाओं में रहा। फिर रीना रानी के साथ शादी की चर्चा चली और कई महीनों तक पवन और रीना रानी को साथ देखा गया, फिर वहीं हुआ जो पहले होता आ रहा था, ब्रेकअप।


जब हमें यह खबर मिली कि पवन सिंह की घरवारी उनके बडे़ भाई (रानु सिंह) की आधी घरवाली बनेगी तो बहुत खुशी हुई और पहली भोजपुरिया फिल्मी स्टार पवन सिंह की शादी 1 दिसबंर 2014 को बड़े धूमधाम से नीलम सिंह के साथ हुई। शादी में भोजपुरी फिल्म जगत की कई हस्तियों के अलावा राजनीतिक जगत के कई महत्वपूर्ण लोग शामिल हुए थे। 21 वर्षीय नीलम बीए पार्ट वन की छात्रा थी और छह दिन पहले ही मुंबई गई थी। नीलम उर्फ नीलू सिंह बीए- पार्ट वन की परीक्षा देने के लिए मुंबई से आरा गई थीं। परीक्षा देने के बाद अभी छह दिन पहले 3 मार्च 2015 को मुंबई गई थीं। पवन सिंह की साली कम भाभी बोली, ‘पति के पास पत्नी के लिए वक्त नहीं था’। पवन सिंह की पत्नी नीलम की मौत के मामले में मुंबई पुलिस ने जांच तेज कर दी है। सूत्रों के मुताबिक नीलम सिंह का शव सबसे पहले देखने वाली उसकी बहन (पूनम) ने पुलिस को बताया है कि पवन सिंह काम के सिलसिले में हमेशा व्यस्त रहते थे और उसकी बहन को वक्त नहीं दे पाते थे, जिसके चलते नीलम तनाव में रहती थी। 

मेरा सोचना है कि ये शादी बेमेल थी, 31 साल के पवन और 21 साल की कॉलेज में पढ़ने वाली नीलम सिंह फिल्मी दुनिया की तड़क-भड़क से दूर-दूर तक कोई नाता ना होने के कारण, फिल्मी रहन-सहन से अनजान नीलम पति को अपने पास और साथ चाहती थी जो पवन सिंह के पास नहीं था। शुटिंग, रिकाडिंग, डबिंग, दोस्तों के साथ दारू-बाजी और बाहर वाली का साथ - एक नहीं दो-दो। इन सब के बीच पवन के लिए अपनी पत्नि के लिए वक्त था ही कहां। और पवन चाहकर भी अपनी पत्नि के लिए वक्त नहीं निकाल पाते थे, क्योंकि उनके दारूबाज दोस्त और बाहर वाली छोड़ते ही नहीं थे। गांव की लड़की नीलम सिंह से अपनी पति की दूरी सही नहीं गई और दुनिया को अलविदा कह गई। 

चर्चाओं में नवोदित भोजपुरी फिल्मों की हिरोइन काव्या सिंह के साथ पवन सिंह से रिश्ता भी एक नीलम के सुसाइड का कारण माना जा रहा है तो दूसरा नाम भी मुंबई के भोजपुरी फिल्मी जगत में खुब उछल रहा है, प्रियंका पंडित का। अब सच्चाई क्या हैं ये तो पुलिस की जाँच के बाद ही पूरी तरह सामने आ पाएगा। बशर्ते कि पुलिस बिना कोई दबाव में जांच करे। एक बात और पुलिस अबतक केवल आत्महत्या के एंगिल से ही जाँच कर रही है… पुलिस को हत्या के एंगिल से भी जाँच करनी चाहिए। क्योंकि कई लोगों को पवन की शादी से दिक्कत हो गई थी…कइयों की कमाई रुक गई थी तो कइयों का करियर दांव पर। .... मेरा पुलिस से केवल यही अनुरोध हैं कि सच सामने आना चाहिए।… और दोषी को हर हाल में सजा मिलनी चाहिए। ………