Sunday 18 October 2015

भौजी नंबर १ - का ग्रांड फिनाले २५ अक्टूबर को लाइव


महुआ प्लस और भोजपुरी का नंबर वन शो भौजी नंबर १ - सीजन ७ सारे रिकॉर्ड को तोड़ते हुए फाइनल स्टेज में पहुंच चूका है. २५ अक्टूबर को सबेरे ११ बजे से लाइव टेलीकास्ट किया जायेगा. यह शो घरेलु महिलाओं के हुनर को निखारना और राष्ट्रीय फलक पहचाने दिलाने में वर्षों से सफलतापूर्वक काम कर रहा है, जिसके चलते महिलाओं का साथ-साथ पूरा परिवार यह शो देखता है, घरेलु महिलाये तो भौजी न. १ शो के दौरान टेलीविजन से चिपकी रहती है। बिहार, झारखण्ड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के परिवार मे भौजी न. १ ही नहीं महुआ प्लस की पहली पसंद महुआ प्लस के शो और सीरियल ही है.

अपने लोकप्रिय भौजी को जिताने के लिए वोट करे .....
१. अनुराधा भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> ANU और भेजें दें 58888  पर...............

२. पूजा भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> POO और भेजें दें 58888  पर...............


३. रीना भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> REE और भेजें दें 58888  पर...............


४. श्वेता भौजी को जीतने के लिए एसएमएस करे:
BHJ <स्पेस> SWE और भेजें दें 58888  पर........








फाइनल में पहुंची चारों महिलाये अब पुरे भारत में लोकप्रिय हो चुकी है, कोई किसी से कम नहीं है. एसएमएस द्वारा लाखों एसएमएस रोज़ सभी प्रतियोगियों के लिए उनके फैन एसएमएस भेज रहे हैं, जिससे भौजी नो. की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं. भौजी नंबर १ के निर्णायक मंडल में भोजपुरी फिल्मो के प्रसिद्द निर्देशक राज कुमार आर. पाण्डेय, लोक गायक गोपाल राय जज की भूमिका में और भोजपुरी फिल्मों कई कलाकार अतिथि जज की भूमिका में दिखेंगे है साथी लटका-झटका भी दिखाते मिलेंगे. कॉन्सेप्ट डिजाइनर राघवेश अस्थाना डायरेक्टर, होस्ट : लोकप्रिय एंकर प्रियेश सिन्हा, राकेश सिन्हा क्रिएटिव हेड - अमित शर्मा, स्क्रिप्ट राइटर आलोक श्रीवास्तव एवं पीआरओ: कुलदीप श्रीवास्तव.


Tuesday 13 October 2015

भोजपुरी फिल्म गुलामी -- १६ अक्टूबर से सिनेमा घरो में

भोजपुरी फिल्म इतिहास में पहली बार भोजपुरी फ़िल्मी गुलामी का प्रचार-प्रसार भारत की टॉप न्यूज़ चैनल पर होने जा रहा है, ज़ी न्यूज़, IBN7  न्यूज़ २४, न्यूज़ नेशन, समाचार प्लस आदि पर किया जायेगा. यशी फिल्म बैनर तले बानी फिल्म गुलामी में  कलाकार दिनेश लाल निरहुआ, मधु शर्मा, शुभी शर्मा, टीनू वर्मा आदि. फिल्म का निर्देशन टीनू वर्मा ने किया है. गुलामी एवं अभय सिन्हा के पूरी टीम बहुत बहुत बधाई!  

यशी एन्टरप्राईजस, पिक्टोग्राफ, समीर आफताब एवं टीनू वर्मा निर्देशित और अभय सिन्हा प्रस्तुति फिल्म गुलामी जो 16 अक्टूर को रिलिज हो रही है। पिछले महिने अंधेरी वेस्ट स्थित द क्लब में भोजपुरी फिल्म गुलामी को म्यूजिक एक भव्य एवं शानदार कार्यक्रम में हिन्दी फिल्मों के एंग्रीयंगमैन सनी देओल सनी दिओल ने रवि किशन के साथ फिल्म के कलाकार दिनेश लाल निरहुआ, अभिनेत्री मधु शर्मा, शुभी शर्मा,एक्टर डायरेक्टर टीनू वर्मा एवं एवेरग्रीन अभिनेता कुणाल सिंह, निर्माता अभय सिन्हा एवम् समीर आफताब, जिक डायरेक्टर पंकज तिवारी और गोविन्द ओझा मौजूदगी में हुआ। इमप्पा के अध्यक्ष टीपी अग्रवाल और वेब म्यूजिक के हंसराज ने भी कार्यक्रम में चार चाँद लगाये।
इतने कम समय में गुलामी के गाने लोगों के जुबान पर चढ़ गए है, हर कोई अपनी-अपनी पंसद के गाने गुन-गुनाते मिल जाएगा। इस फिल्म में हर तबके के मिजाज के अनुसार गाने डाले गए है। किसी को धीरे धीरे दिल में, तो किसी को ‘दाब दिहीं ए राजा’ पंसद आ रहा है तो कोई धक चकड़ के दिवाना है सभी मस्त गाने है, फिल्म में कुल् 10 धमाकेदार गाने है।
पंकज तिवारी एवं गोविंद ओझा ने पहली बार योद्धा में एक साथ संगीतकार के रूप में कैरिअर की शुरूआत की तो उनको थोड़ा-सा भी आभास नहीं था कि इतनी आपार सफलता मिलेगी। अपनी पहली हिट 


योद्धा के गाने की सफलता के जश्न के साथ-साथ गुलामी की गाने की ऐसी कंपोज कर बैठे की। गुलामी गाने एक ही हप्ते में ही सफलता के शिखर पर इन दोनों को ला खड़ा कर दिया है। गुलामी के गाने ऐसा धूम मचा रहा है कि श्रोता इन दोनों को पंकज-गोविंद से पुकारने लगी। धक् चकड़ या धीरे धीरे दिल में, मधुर एवं कणप्रिय गाने है. कल्पना के गाये ये गीत, दाब दिहीं ए राजा सबके जुबान पर चढ़ चूका है......... भोजपुरी पंचायत ने पंकज जी को फोन कर उनकी प्रतिक्रिया मांगी। उनका कहना था कि ‘हमने दिल से अपने चाहने वालों के लिए कुछ नया एवं मधुर और कर्णप्रिय संगीत देने की कोशिश की, जिसको दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है। जो हमे हौसला एवं कुछ उम्दा करने की प्रेरणा देता है। 
आपके चाहने वालों ने आप दोनों को एक नया नाम पंकज-गोविंद दिया है। अपको कैसा लगा रहा है? यह श्रोताओं का प्यार है। हम अपने फैन से बस इतना ही कहना चाहेंगें कि ‘हिट पे हिट देम हो, सबका दिल जीत लेम हो’। दिल से धन्यवाद!

यादव पान भण्डार सन्देश पूर्ण स्वस्थ मनोरंजक फिल्म है - जितेश दूबे

फिल्म निर्माता जितेश दूबे की सोच बहुत ही अलग है और उनकी सोच ही सिनेमा के रूपहले परदे पर
सिनेप्रेमियों को मंनोरजन के साथ ही साथ संदेश भी देती है. जीतेश दूबे भले ही फिल्म निर्माता है, पर वह फुल फिल्मी सोच के मालिक है, इसलिए उनको भोजपुरी के शोमैन के नाम से भी जाना जाता है। उनका हर काम अनोखा होता है। उनकी फिल्म का टाइटल को ही ले, ‘धर्मवीर’, ‘मुन्नीबाई नौटंकीवाली’, ‘यादव पान भण्डार’ और अगली फिल्मी होगी ‘मेंहरारू पार्टी जिन्दाबाद’!

शीघ्र ही प्रदर्शित होने वाली उनकी भोजपुरी फिल्म यादव पान भण्डार के पोस्ट प्रोडक्शन के समय स्टूडियो में हुई उनसे बातचीत के प्रमुख अंश -
जितेश दूबे जी आपकी लगभग सभी फिल्में सफल रही है और बाक्स आॅफिस पर 
धमाल मचाई है, इस सफलता का क्या राज है?
मैं हमेशा से ही फिल्म इंडस्ट्री को अलग हटके कुछ नया और यूनिक देना चाहता हूँ और सफलता भी मिली है. मेरी पहली फिल्म ‘धर्मवीर’ दो दोस्त की कहानी थी, उसके बाद ‘मुन्नीबाई नौटंकी’ वाली नायिका प्रधान फिल्म थी, ‘बृजवा’ एक खलनायक की कहानी थी, ‘मार देब गोली केहू ना बोली’ और अब ‘यादव पान भण्डार’. मेरी सभी फिल्मों के टाईटल और कांसेप्ट बहुत हटके होते हैं. सफलता का यही राज है, समाज के हर तबके मेरी फिल्म देखने को आती है। युवा, महिला चाहे हमारे बुजुर्ग, सभी मेरी फिल्मों को पंसद करते है एवं उनका भरपूर प्यार मिलता हैं, तो जिसके साथ समुचा समाज तो फिल्म वैसे ही हिट!
यादव पान भण्डार मेरी सभी फिल्मों की तरह मनोरंजन से भरपूर साफ सुथरी फिल्म है. जिसे आप अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं. इमोशन, रोमांस, हँसी, एक्सन, ड्ररामा, मारधाड़, नाच-गाना आदि जो भी दर्शकों को चाहिए होता है वह सब कुछ फिल्म के अन्दर है, फुल इंटरटेंमेंन्ट!
‘यादव पान भण्डार’ के बारे में आप बताईये?
यह फिल्म एक पान वाले की जिंदगी पर आधारित  कहानी है. हमारे मेगास्टार मनोज तिवारी जी यादव का किरदार निभा रहे हैं. मनोज तिवारी ने बेहतरीन अभिनय किया है. फिल्म की नायिका गुंजन पन्त हैं और हास्य सम्राट मनोज टाईगर हैं. खलनायक संजय पाण्डेय और अयाज खान हैं. बृजेश त्रिपाठी, सीपी भट्ट, नीलिमा सिंह, रीना रानी, विनोद मिश्रा, बालगोविन्द बंजारा सहित भोजपुरी के बहुत से कलाकार दर्शकों का मनोरंजन करेंगे. फिल्म के निर्देशक अजय कुमार है. इस फिल्म में बहुत अच्छा मैसेज है, जो फिल्म देखने के बाद पता चलेगा. जैसाकि आप जानते हैं हर कोई चाहे वह फिल्म निर्माता हो या कलाकार हो, वो अपनी अगली फिल्म में नयापन देने की कोशिश करता है, और मैंने भी वही कोशिश की है. मुझे उम्मीद है कि मेरी आई हुई सभी फिल्मों का रिकाॅर्ड यादव पान भण्डार तोड़ देगी.
फिल्म में ऐसा क्या है जो दर्शकों को बार-बार फिल्म देखने जाना पड़ेगा ?
मैंने इस फिल्म के निर्माण में बहुत मेहनत की है. फिल्म का गीत संगीत बहुत ही कर्णप्रिय है जिसको श्रोता बार-बार सुनना व देखना चाहेंगे. फिल्म के एक्शन सीन की चर्चा करने से पहले फाईट मास्टर शकील मास्टर जी को श्रद्धांजलि देना चाहूँगा. आज वो हमारे बीच नहीं रहे, अल्लाह उन्हें जन्नत दें. उन्होंने  यादव पान भण्डार में दर्शकों के मनोरंजन के लिए उम्दा और रोमांचक एक्शन दिया है.
पूरी फिल्म दर्शकों को बाँधकर रखेगी. बहुत सी चीजे हैं फिल्म में जिसे सिनेप्रेमी बार बार सिनेमाहाल में देखने के लिए जायेंगे.
जोरो की चर्चा है कि अब तक आपकी जितनी फिल्म आई है सबका कांसेप्ट और टाईटल आप देते हैं और आप अपनी अगली फिल्म का निर्देशन खुद करने वाले हैं, क्या यह बात सही है?  
इसके बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा. सुनने में तो मुझे भी आया है, कई लोग मुझसे भी पूछ चुके हैं मगर निर्देशक बनने का मेरा कोई ऐसा इरादा नहीं है. मैं फिल्म निर्माता ही बने रहना चाहता हूँ. फिल्म अच्छी बने और दर्शकों का पैसा वसूल हो, इसलिए मैं दर्शकों के लिए फिल्म बनाता हूँ. यही वजह है कि फिल्म के हर पहलु पर मैं बारीकी से ध्यान देता हूँ. मेरे कुछ करीबी हीरो हीरोइन हैं जो चाहते हैं कि मैं निर्देशन करूँ तो भविष्य में हो सकता है कि शौकिया तौर पर कोई फिल्म निर्देशित करूँ, परन्तु अभी कोई इरादा नहीं है.

Sunday 11 October 2015

आखिर कब मिलेगी जातिवाद और सांप्रदायिकता से मुक्ति?

बिहार चुनाव अपने चरण पर है और पूरी तरह सेसंकीर्ण राजनीतिक एवं सांप्रदायिकता से नहाया हुआ है। मोदी के विकास एजेंडे से कोसों दूर दादरी और गोमांस ऐसे छाया हुआ है जैसे कि लगता है है
कि बिहार में तो कोई समस्या ही नहीं है। अभी फिलहाल केवल गोमांस और दादरी पर ही नेतागण अपनी बात करते, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते नजर आ रहे हैं। इस समय बिहार चुनाव किसी थ्रिलर फिल्म की तरह दिलचस्पी के चरम शिखर पर पहुंचा हुआ है जहां नेतागण जीत के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार हैं या यूँ कहें तो उतर चुके हैं! मतदाता भ्रम की स्थिति में हैशायद अब उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि जाएं तो जाएं किधर! बिहार की जनता के मन में कई प्रश्न उठ रहे हैं, जैसेकि अगर संघ भाजपा वाले लालू राज को जंगल राज और खुद लालू अपने राज को मंडल राज बता रहे हैं तो आखिर इसमें हकीकत क्या है? सच क्या है?क्या सच वह है, जो लालू कह रहे हैं या वह, जो भाजपा वाले बतला रहे हैं। अभी फिलहाल लालू और भाजपा की मौखिक लड़ाई में नीतीश कहीं गुम हो गए लगते हैं। लगता है कि असली लड़ाई भाजपा एवं राजद यानी लालू के बीच ही सिमट कर रह गई है।
भाजपा और मोदी कह रहे हैं कि पहले लालू को उनके ही जंगलराज में उनको जेल का अनुभव नहीं था पर अब तो जेल का भी अनुभव भी है उनके पास। क्या आप ऐसा बिहार चाहते हैं? अगर नहीं तो भाजपा को वोट दें और हम ही बिहार से पूरी तरह जंगल राज खत्म करेंगे। तो दूसरी तरफ लालू गुजरात दंगे का अलाप लगा रहे हैं और तो और लालू संघ को ब्राह्मणों की संस्था बता भाजपा और मोदी पर वार पर वार किए जा रहे हैं।
                दादरी की घटना ने बिहार चुनाव में आग में घी काम किया है। लालू और भाजपा को विकास से इतर एक ऐसा मुद्दा मिल गया है जिसके चलते बिहार और देश-समाज की समस्याएँ मीडिया और नेताओं के मुख से नौ-दो-ग्यारह हो गई हैं। लालू ने यह कहकर कि हिन्दू भी बीफ खाते हैं, दादरी मामले को बिहार चुनाव में झौंक दिया। लालू के समर्थक इस पूरे घटना-क्रम को नफरत-राजके रूप में देख रहे हैं और लोगों को दिखा रहे हैं। बिहार की जनता डरी हुई है कि कहीं10 साल पहले वाले बिहार में हम न आ जाएं और दूसरी तरफ भागलपुर की जनता भी डरी हुई है। यहां के सांप्रदायिक सौहार्द के वातावरण को बिगाड़ने की कोशिशें चल रही हैं और रेशमी नगर अपनी आंखों से यह सब विवश होकर देख रहा है। यहां भी अफवाहों का बाजार गर्म है। चर्चा है कि एक बार मंदिर निर्माण के नाम पर यहां हिंसा भड़की थी। महागठबंधन के लोग कहते हैं कि इस बार एक नेता अपने पुत्र के भविष्य निर्माण के लिए ऐसा करवा रहे हैं। रेशमी शहर के लोग सहमे हैं। गाय-सूअर का खेल और अफवाहें जोर-शोर से उड़ रही हैं। सद्भाव बिगाड़ने की साजिश चल रही है। नफरत का माहौल बनाने की कोशिशें हो रही हैं। धन्य है भागलपुर की जनता, जो राजनेताओं की साजिशों से दूर खड़ी है। सबकुछ समझ रही है। ये तो पब्लिक है, ये सब जानती है। पब्लिक है।
                भाजपा और मोदी दावा कर रहे है कि हम जंगल राज खत्म करेंगे। जनता के मन में
प्रशअन उठना लाजमी है कि क्या नफरत के रास्ते जंगल राज खत्म होगा? प्रश्न तो कई मन में उठते हैं कि क्याजात-पात के नाम पर या धर्म के नाम पर बाँटकर ही बिहार का विकास संभव है क्या? क्या हमारे नेतागण धर्म, जात-पात और नफरत की राजनीति से कभी ऊपर उठकर बिकास की बात करेंगे या सदा की तरह खुद को और जनता को भी नफरत की राजनीति में उलझाकर अपनी गोटी चम करने की फिराक में ही रहेंगे? क्या मोदी ने जैसे विकासवाद के नाम पर दिल्ली का शासन अपने हाथ में लिया वैसे ही विकास के नाम पर, विकास को मुद्दा बनाकर, बिहार की समस्याओं को उठाकर, सत्ता तक नहीं पहुँचा जा सकता? आखिर कब तक धर्म, जात-पात, नफरत की राजनीति में देश, बिहार जलता रहेगा, आखिर कत तक? ऐसा क्यों होता है कि चुनाव आते ही नफरत, धर्म, जात-पात की राजनीति गरमा जाती है, कहीं पर दंगे तो कहीं पर अफवाहों का बाजार गर्म होने लगता है और इसका खामियाजा अपने ही निर्दोष भाइयों-बहनों को भुगतना पड़ता है? आखि क्यों? क्या हमारे नेताओं के आँखों का पानी सदा के लिए मर गया है? क्या उन्हें अपनी तथा अपनी पारटी के स्वार्थ के सिवा कुछ और देखने-सुनने की जरूरत नहीं? क्या हो गया है हमारे नेताओं को?

                हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, दलित, महादलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा और अगड़ा सबके घर अंधेरे
में हैं। सब बेहाल हैं, परेशान हैं, देश, राज्य सभी असमंजस की स्थिति में नेताओं की ओर आँखें लगाए बैठे हैं पर सशंकित भी हैं कि क्या, उनके नेता, अपने ही घर-देश के नेता अपने तथा अपनी पार्टी के स्वार्थ से ऊपर उठते हुए देश, समाज, बिहार का विकास कर पाएँगे? क्या विकास की राजनीति को तवज्जो मिलेगी? खैर देखते हैं, आगे होता है क्या? बिहार का ताज किसके सिर बँधता है?

तुम डाल-डाल, हम पात-पात - बिहार चुनाव

चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियों को गिरगिट जैसे रंग बदलते आसानी से देखा जा सकता है। अब
देखिए न, बिहार में चुनावी बिसात तो बिछ ही चुकी है, इधरमहागठबंधन में दरार भी पड़ चुका है, नीतीश के भरोसेमंद जीतनराम मांझी अब एनडीए खेमे में जा मिले हैं। कुछ महीनों पहले जिस तरह से जीतनराम मांझी के इस्तीफे के साथ ही नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनते कई महीनों से जारी मांझी और नीतीश के बीच सियासी लड़ाई हुई थी, उस सियासी लड़ाई ने इस चुनावी लड़ाई को नीतीश के लिए थोड़ा मुश्किल तो कर ही दिया है। नीतीश कुमार ने जबसे दुबारा राज्य के मुख्यमंत्री की बागडोर संभाले हैं, बिहार की राजनीतीनेनीतीशको समझौते की राह पर ला खड़ा कर दिया है। बिहार की राजनीति उनके लिए इतनी मुश्किल जान पड़ रही है कि उन्हें न चाहते लालू यादव के साथ आना पड़ा है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि विकट परिस्थितियों के बीच भी अपने राजनैतिक हमलावरों, विपक्षियों से जूझते हुए, बातों-बातों में ही कभी पटकनी देते तो कभी पटखनी खाते हुए नीतीश अपनी पार्टी को एकजुट रख पाने में सफल भी हुए हैं। लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार अब बहुत हद तक मजबूत नज़र आ रहे है। उपचुनाव में जीत और दिल्ली में भाजपा की करारी हार ने उनको और पार्टी को टॉनिक पिला दिया है, उनमें जोश भर दिया है लेकिन अब उनके सामने नई चुनौतियां होंगी। अब उन्हें अपने महादलित वोट बैंक को समझाना होगा कि मांझी को हटाना क्यों जरूरी था? यह भी बताना होगा कि किस कारण से उन्हें लालू प्रसाद यादव से समझौता करना पड़ा है। लालू एवं राजद का साथ उनके लिए थोड़ा नुकसानदायक जरूर हो सकता है, लेकिन राजनीति में समयानुसार विरोधियों से भी हाथ मिलाना पड़ता है, यह जगजाहिर है। इस बात को भी साकारात्मक रूप से नीतीश कुमार जनता के बीच ले जाना चाहेंगे, क्योंकि सत्ता तक पहुँचने के लिए नीतीश कुमार लगभग दो दशक तक लालू एवं उनके कार्यकाल को जंगलराज बताकर बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे और गाहे-बेगाहे लालू एंड पार्टी को निशाना बनाया करते थे। खैर नीतीश को पता है कि जनता सब भूल जाती है और वर्तमान में जीती है, शायद इस बात को ध्यान में रखकर वे थोड़े निश्चिंत होंगे और जनता की नाराजगी दूर करने का प्रयास करेंगे।

भाजपा और जदयू गठबंधन टूटने के बाद और भाजपा के सरकार से बाहर होने के बाद बिहार में कानून व्यवस्था की हालत जर्जर हो गई है और विकास की गाड़ी पटरी से पूरी तरह उतर चुकी है। उन्हें हरहालत में विकास को फिर से पटरी पर लाना होगा, जिसे वे अपना यूएसपी बताते हैं। उनके सामने यह भी दुविधा होगी कि मांझी द्वारा आनन-फानन में लिए गए फैसलों का क्या करें? दलितों के पक्ष में लिए गए उन निर्णयों को पलटने से उन्हें सियासी नुकसान हो सकता है। इसलिए नीतीश फूँक-फूँक कर कदम रख रहे हैं और जनता के लिए, बिहार के लिए नई-नई घोषणाएँ करने के साथ ही प्रधानमंत्री की घोषणा को घोषणा से दूर उसे बिहार के लिए मजाक करार दे रहे हैं। नीतीश और उनकी टीम बिहार को समझाने में लगी है कि मोदीजी ने जो घोषणा की वे अपने घर से नहीं दिए, वह बिहार का हक है और साथ ही उनके घोषणा करने का तरीका भी पूरी तरह से गलत था।

हाँ, यह भी सत्य है कि मांझी नीतीश के लिए मुश्किल इसलिए भी खड़ी कर सकते हैं क्योंकि इस्तीफे के बाद से उनका कद थोड़ा बढ़ गया और मुख्यमंत्री बनने से पहले लोगों के लिए अनजान व्यक्ति, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते ही महादलितों के नेता के रूप में अपने को प्रोजेक्ट कर लिया और शायद इसलिए बीजेपी भी उन्हें अपने खेमे में रखकर बिहार की जंग जीतना चाहती है। बीजेपी जनता के बीच नीतीश सरकार की गलतियों को गिनाने में लगी है। यह सही है कि बिहार की हालत अच्छी नहीं है। पिछला चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था की २०१५ तक हर गॉव में २४ घंटा बिजली नहीं पंहुच पाई तो वोट मांगने नहीं जाऊंगा! अब उनके वादों का क्या होगा? क्या जनता नीतीश के वादों को भूलकर उन्हें ओट करेगी या उन्हें धूल चटाएगी, यह देखने वाली बात होगी। साथ ही लालू से हाथ मिलाना भी बिहारी जनता को अखर सकता है और इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ सकता है पर साथ ही यह भी हो सकता है कि नीतीश की राजनीतिक मजबूरियों को समझते हुए जनता उनके साथ बनी रहे।

इधर मोदी की बिहार में दनादन रैलियाँ हो रही हैं। भीड़ भी खूब जुट रही है, तालियाँ भी खूब बज रही हैं, पर अभी तक यह भी असमंजस है कि यह तालियाँ मोदी के लिए बज रही हैं, एक प्रधानमंत्री के लिए बज रही हैं, उनकी घोषणाओं के लिए बज रही हैं या बिहार की जंग जीतने उतरी भाजपा के लिए, उनके उम्मीदवारों के लिए बज रही है? क्योंकि यह भी तो हो सकता है कि जनता मोदी को तो पसंद करती हो पर बिहार में वह बीजेपी के पक्ष में न जाए, जैसा कि दिल्ली आदि में देखा जा चुका है।
वैसे नीतीश की राह भले कठिन हो पर यह भी सत्य है कि उनका भी एक जनाधार है, जो उन्हें एक अच्छा अगुआ, एक अच्छा मुख्यमंत्री के रूप में देखता है। उसे लगता है कि बिहार को सही रास्ते पर, विकास के रास्ते पर नीतीश जरूर दौड़ा सकते हैं पर इसके लिए हमें उन्हें समय देना होगा। बिहार की यह लड़ाई सभी पार्टियों, गठबंधनों के लिए नाक की लड़ाई बनते नजर आ रही है और खींचातानी भी शुरू हो गई है। कहीं चुनावी भाषण तो कहीं गानों के माध्यम से अपने को अच्छा साबित करने की कोशिश। जनता भी चुनावी भाषणों, गानों आदि का खूब आनंद ले रही है और लगभग 80 प्रतिशत जनता ने ओट के लिए अपने माइंड को सेट भी कर लिया है। लगभग 20 प्रतिशत जनता उहापोह में है और अब इन्हें ही पार्टियाँ अपने लटके-झटके और भाषाणों से लुभा सकती हैं। तो चलिए देखते हैं कि तुम डाल-डाल, हम पात-पात की लड़ाई में बाजी कौन मारता है?