Monday 5 January 2015

दम बा भोजपुरी में

दम बा भोजपुरी में

भोजपुरी पंचायत टीम की हमेशा यह कोशिश रही है कि आप सबकी इस प्रिय पत्रिका के प्रत्येक अंक को नए कलेवर में, नई रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत किया जाए। इसी क्रम में, वर्ष 2015 का पहला अंक विभिन्न क्षेत्रों के दमदार 50 भोजपुरियों को समर्पित है। शुरू में यह काम जितना उत्साहजनक लग रहा था, समय के साथ यह उतना ही चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। सबसे पहली समस्या सीमित संसाधनों के साथ सही चुनाव करने की थी। इसके लिए सोशल मीडिया, ई-मेल और व्हाट्स ऐप का सहारा लिया गया। शुरू में जहां प्रतिक्रिया की रफ़्तार धीमी थी वहीं दिन बीतते-बीतते लोगों की प्रतिक्रिया में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होने लगी।


इस सर्वे से जो सबसे बड़ी बात सामने आई वो यह कि भोजपुरिया माटी ने एक से बढ़कर एक हीरे पैदा किए हैं, जिस पर समस्त भोजपुरिया समाज को गर्व है। इस सर्वे में कई ऐसे नाम भी आए जो पत्रिका-टीम के लिए भी अपरिचित थे, परंतु उनके द्वारा किए गए कार्य इतने प्रभावशाली थे कि उनका नाम इसी सूची में शामिल हुए बिना नहीं रह सका।

पुरबियों को उनके समृद्ध इतिहास, उनकी विद्वता और संस्कृति के लिए विश्व पटल पर जाना गया है। इसकी पहचान हमेशा ही चंद्रगुप्त से ज्यादा चाणक्य के लिए रही है। पाटलिपुत्र से ज्यादा विक्रमशिला और नालंदा के लिए रही है, और यही वह धरती है जहां सिद्धार्थ नामक राजकुमार ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध के रूप में समस्त संसार को अपनी दिव्य प्रभा से आलोकित किया। इस माटी की विशेषता है कि इसके संस्कृति के केन्द्र में हमेशा पूरी मानव सभ्यता रही। शायद इसीलिए दक्षिण अफ्रीका से लौटकर महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत बिहार के चंपारण से की। आजादी के बाद भी बिहार ने सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के लिए संघर्ष किया जिसका प्रभाव पूरे देश की राजनीतिक व्यवस्था पर हुआ। यह बिहार का दर्शन है, बिहार की स्वाभाविक पहचान है, क्योंकि यह वही धरती है जिसने देश को प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को दिया। भिखारी ठाकुर जैसे नाटककार एवं दार्शनिक इसी माटी की उपज हैं, जिन्होंने अपने नाटको में तत्कालीन समाज की बुराइयों को उजागर कर उसके निराकरण के लिए लोगों को जागरूक किया। इस भोजपुरी माटी ने लोकनायक के रूप में जयप्रकाश नारायण को दिया जिन्होंने देश को आपातकाल एवं हिटलरशाही से मुक्ति दिलाने के लिए तत्कालीन युवा पीढ़ी के साथ ही संपूर्ण समाज को प्रेरित किया जिसके चलते आपातकाल के विरोध में पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया और तब ताकतवर इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी।

ये पुरबिया ही थे जो अपना सबकुछ छोड़छाड़ कर 180 साल पहले गिरमिटिया मजदूर बनकर मॉरीशस गए और आज उसे अपनी मेहनत और लगन से विश्व का जीता-जागता स्वर्ग बना डाला है। बिहार से गए ये लोग आज मॉरीशस सरकार और प्रशासन में उच्चतम पदों पर आसीन हैं। वर्तमान समय में भी नेतृत्व क्षमता, हुनर, कौशल, ईमानदारी और दृढ़ इच्छाशक्ति आदि गुण भोजपुरिया लोगों में भरपूर देखने को मिलते हैं। इसी बल के साथ जहां भी भोजपुरिया रोटी-रोजगार के लिए गया अपनी काबलियत के बदौलत बुलंदी पर पहुंचा है। एक जगह पर न होने के कारण भले ही हमारी शक्ति एकजुट नजर नहीं आती, मगर हम और हमारे लोग जहां भी हैं बेहद दमदार स्थिति में हैं।

दमदार भोजपुरियों की हमारी इस खोज ने हमें कई नामों से परिचय कराया। भोजपुरी माटी के इन सपूतों से पाठकों को रूबरू कराना किसी चुनौती से कम नहीं था। हमने पाठकों के लिए समुद्र में मोती ढूंढने जैसे काम को मिशन के रूप में लिया था और पूरी ईमानदारी से इस कार्य को निष्पादित किया। अब आप सभी सुधी पाठकों के हाथ में उन दमदार 50 भोजपुरियों की सूची के साथ यह अंक समर्पित है जिन्होंने अपनी मेहनत-लगन व जुनून से अपने-अपने क्षेत्र में भोजपुरिया पताका को फहराया है।
हमारी टीम ने देश-विदेश के दमदार भोजपुरियों की खोज में अपने अनथक मेहनत से इस महती काम को अंजाम तक पहुंचाया है। इस खोज के तहत भोजपुरी के सैकड़ों सपूतों के नाम हमारे पास आए, पर हमें इनमें से मात्र 50 दमदार भोजपुरियों की सूची जारी करनी थी। कोई भी नाम किसी दूसरे नाम से कम नहीं था। इस स्थिति में हमने ऑनलाइन लोकप्रियता ग्राफ, प्रोफाइल और उनके प्रभाव को ध्यान में रखकर नाम फाइनल करने का मापदंड रखा। इस अंक में जिन भोजपुरियो का नाम नहीं आ पाया है, वे यह न समझें कि उनका योगदान भोजपुरी माटी के लिए कम है। अगले वर्ष इसी तरह की एक और सूची हम जारी करेंगे। संभव है तब छूटे हुए नाम इस सूची में शामिल हो। इसलिए निवेदन है कि आप अपने क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करें। हमारी टीम की नज़र आपके कार्यों पर लगातार बनी रहेगी।
अंत में, मोदी सरकार के सात महीने बीत चुके। प्रधानमंत्री मोदी, अभिनेता से नेता बने मनोज तिवारी सहित लगभग सभी भोजपुरिया सांसदों ने चुनाव के पहले बड़े पुरजोर शब्दों में वादा किया था कि मोदी सरकार बनते ही भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर दिया जाएगा, परंतु अभी तक इस दिशा में कोई भी पहल होती हुई नहीं दिख रही है। इस दमदार सूची में भी कई शक्तिशाली मंत्री, सांसद और नेता शामिल हैं जो अगर एक बार दिल से चाह दें तो संसद के अगले सत्र में भोजपुरी आठवीं अनुसूची में होगी। अब देखना है कि क्या मोदी सरकार अपना वादा निभाती है या कि इस मुद्दे पर यू टर्न ले लेगी?

इस अंक को आप सबके समक्ष लाने में, तमाम मित्रों ने अपना बहुमूल्य समय व सुझाव दिया है। उन सभी को भोजपुरी पंचायतपरिवार साधुवाद देता है।

नववर्ष 2015 की हार्दिक मंगलकामनाओं सहित,

भवदीय,

कुलदीप श्रीवास्तव

(संपादक)

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