उम्मीदें फिर जगीं.......
उम्मीद! एक ऐसा शब्द जो मुर्दे में भी प्राण फूँक
सकता है। कहा गया है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। जब उम्मीद धूमिल होने लगती है,
देखे हुए सपने केवल सपने ही बनने लगते हैं तो उम्मीदों की उम्मीद लगाने वाले अपनी
उम्मीद को सच में बदलने के लिए कुछ ऐसा कर जाते हैं कि उम्मीद हकीकत में बदल जाती
है। पिछली सरकार ने भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने के लिए बार-बार आश्वासनों
दिए और इन आश्वासनों के सहारे ही भोजपुरिया जनता जीती रही, इस उम्मीद में कि अब
उम्मीद का सूरज चमकेगा और भोजपुरी संवैधानिक भाषा के रूप में विराजित होगी, पर 25
करोड़ भोजपुरियों की उम्मीद, उम्मीद ही बन कर रह गई। 1969 में सांसद भागेन्द्र झा ने
पहली बार संसद में भोजपुरी को आठवी अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाया था। तबसे
लेकर आज तक भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने की मांग होती रही आ रही है, हाँ यह
अलग बात है कि इसे अभी इतने पुरजोर तरीके से नहीं उठाया गया जितने पुरजोर तरीके से
उठाना चाहिए था। शायद अगर यह माँग पूरे भोजपुरिया समाज द्वारा एक साथ, एक
सकारात्मक तरीके से उठाई गई होती तो भोजपुरी आज जहाँ है वहाँ से बहुत ही आगे
दिखती। भोजपुरी के विभिन्न मंचों से, व्यक्तियों से यह मांग अलग-अलग समय पर अपने
हिसाब से उठती रही है। खैर सरकारों की भी जिम्मेदारी थी कि भोजपुरी के फैलाव को
देखते हुए इसे उचित मान-सम्मान दें पर किसी सरकार ने कभी भी इसे गंभीरता से नहीं
लिया। यूपीए-2 सरकार से भी बहुत ही उम्मीद थी क्योंकि लोकसभा अध्यक्ष खाँटी
भोजपुरिया मीरा कुमार और गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह अहम पद पर विराजमान थे और
भोजपुरी के हिमायती भी फिर भी निराशा ही हाथ लगी और सरकार बस आश्वासन पर आश्वासन
देती रही।
लगभग 1000 साल पुरानी भाषा भोजपुरी आज भी संवैधानिक
दर्जा पाने के लिए जूझ रही है। अपने ही देश में यह 40 सालों से मान्यता की मांग करती
आ रही है पर घोर निराशा और दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि असल में भोजपुरी की यह
सम्मानजनक लड़ाई, यह यथार्थ माँग उसके अपनों से ही है, उसके बेटों से ही है। लगभग
16 देशों में बोली जाने वाली इस भाषा का एक समृद्ध साहित्य व इतिहास है। मॉरीशस में
तो भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता भी हासिल है और वहाँ के भोजपुरिया इसे बहुत ही
सम्मान की नजरों से अपनी माईभाखा के रूप में देखते हैं जो हर भोजपुरिया के लिए एक
गौरव की बात होनी चाहिए और खुद भी माई भाखा के सम्मान के लिए अपने-अपने स्तर पर
मिलजुलकर भोजपुरी की आवाज बुलंद करनी चाहिए।
अब सब कुछ बदल चुका है।
नई सरकार, नए प्रधानमंत्री, नई सोच के साथ आ चुके हैं। नरेंद्र मोदी सरकार
आने से फिर आस जगी है, क्योकि मोदी जो
कहते है, वो पूरा करने
में विश्वास रखते हैं। उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता। इस बार तो वे भोजपुरिया
क्षेत्र बनारस से सांसद भी बनकर आये हैं तथा साथ ही उन्होंने अपने विज़न डॉक्यूमेंट
में भोजपुरी को भाषा के रूप में मान्यता देने की बात भी कही है। इसके साथ ही इस सरकार
के कई भोजपुरी अंग यानि नेता, सांसद आदि भाजपा की सरकार बनने पर भोजपुरी को
मान्यता देने की बात प्रखर रूप से कहे भी हैं। पूरा पूर्वांचल मोदी के साथ खड़ा
दिखा, इस उम्मीद के साथ कि पूर्वांचल के विकास के साथ ही उनकी माईभाखा संवैधानिक
भाषा के रूप में प्रतिस्थापित हो जाएगी।
उम्मीद का सबसे बड़ा
कारण यह है कि कई सारे भोजपुरिया संसद में पहुँच चुके हैं और इनमे से कई मंत्री पद
पर भी आसीन हो गए हैं। इसके साथ ही मोदीजी खुद ही पूर्वांचल को अपनाकर भोजपुरी के
गढ़ बनारस से चुनाव मैदान में उतरकर जीत हासिल कर चुके हैं। बनारस के लिए अगल से
उनका विजन डॉक्यूमेंट, भोजपुरी भाषा के साथ ही गंगा-जमुना तहजिब को महत्व देते हुए
उन्होंने पूरे देश के साथ ही इस क्षेत्र के विकास को विशेष महत्व देने की बात कही
है।सूत्रों से मिली खबरों को सही माने तो पूर्वांचल के विकास पर विशेष जोर देने के
लिए पीएम मोदी ने बनारस में रीजनल ऑफिस खोलने का मन बना लिया है ताकि तेजी से इस
क्षेत्र की समस्याओं को समझकर उनका त्वरित निराकरण किया जा सके। अगर मोदी सरकार
द्वारा यह कदम उठाया जाता है तो यह पूर्वांचल के साथ ही भोजपुरीभाषा-साहित्य के लिए
मील का पत्थल साबित होगा। पूर्वांचल विकास के पथ पर
तेजी से दौड़ेगा। माई भाखा को सम्मान मिलेगा।
बहुत हो चुकी आश्वासन
की बातें, अब आश्वासन नहीं इसे साकार करना ही होगा, भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता
देना ही होगा। हमें सकारात्मक तरीके से अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए आगे बढ़कर आवाज़बुलंदकरनीहोगी।
हमें अभी से सकारात्मक पहल की शुरुआत करके इस सरकार पर दवाब बनानी चाहिए ताकि
पूर्वांचल के समग्र विकास के साथ माईभाखा सम्मानित हो सके। हमें अपने चुने हुए
सांसदों, मंत्रियों से केवल अपने व्यक्तिगत विकास की बात न करते हुए क्षेत्र के,
भोजपुरी के विकास के लिए बात करनी चाहिए। देश की सरकार भी मजबूत है, अब से बिना
देर किए अपने द्वारा किए हुए वादों को पूरा करने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि
जनता जिस उम्मीद पर इसे संसद में पहुँचाई है वह पूरा हो सके।
नरेंद्र मोदी आगामी संसद
सत्र में भोजपुरी को भाषा के रूप में मान्यता संबंधित बिल पेश कराकर इसे पारित
करवाएंगे इस उम्मीद के साथ ही अनेकानेक भोजपुरिया सांसदों, मंत्रियों से भी उम्मीद
है कि वे सकारात्मक सोच के साथ इस बिल को पास करवाने में पूरी सहायता करेंगे। मोदी
की ऐतिहासिक जीत में पूर्वांचल का बहुत ही बड़ा योगदान है और आशा ही नहीं पूर्ण
विश्वास है कि मोदी सरकार पूर्वांचलियों के उम्मीद पर पूरी तरह से खरी उतरेगी। जय
माई-भाखा। जय माँ भारती।
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