Monday 5 January 2015

क्षेत्रीय दलों के लिए खतरे की घंटी

क्षेत्रीय दलों के लिए खतरे की घंटी

महाराष्ट्र औ रहरियाणा चुनाव के बाद तो साफ़ दिखने लगा हैकि अब क्षेत्रीय पार्टियों के दिन लदने वाले हैं या यूँ कहें कि क्षेत्रीय पार्टियों पर अपने अस्तित्व को बनाए रखने का खतरा मँडराने लगा है। अगर आगे भी देश की जनता का यही मूड रहा तो क्षेत्रीय दलों का खात्मा निश्चित लग रहाहै। क्योंकि अब जनता समझ चुकी है कि देश, राज्यत भी तरक्की कर सकेंगे जब पूरे देश में किसी राष्ट्रीय पार्टी की सरकार हो। केंद्र और राज्य सरकारों में तालमेल हो और ऐसा तभी होगा जब कोई राष्ट्रीय पार्टी केंद्र के साथ ही राज्यों में भी सरकार चलाए।हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए चुनावों से इसका साफ संकेत मिल रहा है। कुछ महीनों पहले तक जो बीजेपी इन दोनों राज्यों में बिना सहयोगी के चुनाव लड़ने की कल्पना नहीं कर पा रही थी, वही बीजेपी आज इन दोनों राज्यों में सरकार बना रही है। हरियाणा में बीजेपी बहुमत के साथ अपने दम पर सरकार बना रही है जबकि महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार, पर इस गठबंधन की लगाम पूरी तरह से बीजेपी के ही हाथ में रहने वाली है। इस चुनाव के पहले तक इन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का बोलबाला था पर इस चुनाव में जनता के रूख ने इनके खात्मे के संकेत दे दिए। यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि लोकसभा चुनाव से शुरू हुई बदलाव की धारा से अब राज्य भी अछूते नहीं रहे हैं। जिस तरह से आम चुनाव में नरेंद्र मोदी सर्वश्रेष्ठ चेहरा के रूप में नागरिकों के एकमात्र कर्णधार के रूप में सामने आए थे वही चेहरा और मोदी प्रसिद्धि इन दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला। मोदी ने अपनी बेजोड़ शैली में इन दो राज्यों में चुनाव अभियान शुरू किया था और केंद्र की तरह प्रदेशों में भी विकास की गंगा बहाने की बात कही और यह भी बताया कि यह तभी संभव है जब केंद्र और राज्य में किसी एक ही पार्टी की सरकार हो। अब क्या था, मोदी के इन दो राज्यों के समर-भूमि में कूदते ही विपक्षी पार्टियाँ बौखला गईं और मोदी व उनकी सरकार पर तीखे हमले करने शुरू कर दिए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भाषणों को देखें, उनका फोकस मोदी और उनके शासन पर हीथा। प्रदेशों के मुद्दे उनके भाषणों में लगभग नदारद थे।राज्य के नेताओं का निशाना भी केंद्र सरकार और मोदी बन गए। मोदी के आस-पास भी कोई दूसरी पार्टी के राष्ट्रीय नेता नज़र नहीं आये, टक्कर देना तो दूर की बातथी।

इस चुनाव में भाजपा की 25 साल पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना तो वाक्युद्ध पर उतर आई और मोदी पर अशोभनीय शब्दों की झड़ी लगा दी। वे मुखपत्र सामना के जरिए भी मोदी पर हमला करते रहे। वहीं राज ठाकरे भी मोदी पर हमला करने में पीछे नहीं रहे साथ ही अन्य पार्टियाँ भी राज्य के जरूरी मुद्दों पर कम ध्यान देते हुए मोदी पर कटाक्ष करने में लगे रहना ही अपनी जीत का मूलमंत्र समझती रहीं। मोदी जी ने चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में ताला लगा दिया। बीजेपी ने दोनों राज्यों में किसी को नेता नहीं बनाया था, इसलिए बीजेपी का चेहरा दोनों जगह मोदीही थे। यानी चुनाव भले राज्य विधान सभाओं के थे, पर इनका स्वरूप राष्ट्रीय राजनीति का तथा चेहरा मोदी बनाम अन्य का बनगया था। खैर विपक्षी हमलों का मोदी पर कोई असर नहीं दिखा और न ही मोदी किसी दबावया न प्रभाव में आए। यह बात 19 अक्टूबर के नतीजे में साफ़ देखी जा सकतीहै।

भाजपा ने केंद्रीय नेताओं एवं मोदी का भरपूर लाभ उठाया। वैसे केंद्रीय मंत्रियों के प्रभाव से राज्यों के चुनाव परिणाम निर्धारित होने कालंबा दौर हमारी राजनीति में रहा है लेकिन विगत कुछ समय से क्षेत्रीय नेताओं के प्रतिष्ठित उदय ने इनके प्रभाव को कमजोर कर दिया था पर अब फिर से समय बदलने लगा है। क्षेत्रीय पार्टियों पर विलुप्तता के बादल मँडराने लगे हैं। लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय नेता प्रभावहीन नजर आ रहे हैं और इस चुनाव में यह साफ देखा गया कि लालू, नितीश, मुलायम या मायावती में लोकसभा नें कुछ यादगार नहीं कर पाए।

वर्ष 1989 के बाद से गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हो गया था, बहुत सारी क्षेत्रीय पार्टियों का उदय शुरू हो गया था और बाद में तेजी से इनका सशक्तीकरण भी शुरू हो गया था। इनकी ताकत बढ़ने से केंद्र और कई बार प्रदेशों में भी सरकारों की स्थिरता पर सवाल खड़े हो गए थे। ये अपने दवाब में सरकार को दबा देते जिससे सरकार सही फैसले नहीं ले पाती थी पर अब समय बदलता नजर आ रहा है।अब सबकी नज़र झारखंड और बिहार के चुनाव पर टिकी है, जहाँ क्षेत्रीय दल मजबूतहैं, पर मोदी के नेतृत्व में जिस परिपाटी का चलन होता दिख रहा है, उससे लगता है कि जनता को राष्ट्रीय पार्टियाँ भाने लगी हैं और जनता को लगता है कि इसी में देश व राज्यों का भला है। क्योंकि अब जनता को लगने लगा है कि इन क्षेत्रीय पार्टियों के चलते ही देश में आर्थिकएवंराजनीतिकअस्थिरता का दौर हुआ था। खैर अब ,मय बदल चुका है और हम उम्मीद करते हैं कि मोदी सरकार, मजबूत सरकार का लाभ जनहित में, देशहित में, समाज हित में करेगी और भारत आर्थिक शक्ति के रूप में विकसित देशों की कतार में खड़ा नजर आएगा।


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