Monday 5 January 2015

क्या चुनावों के बाद अच्छे दिन आएंगे?

क्या चुनावों के बाद अच्छे दिन आएंगे?
घोषित रूप से 2014 का लोकसभा  चुनाव विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है भाजपा, कांग्रेस सहित सभी दल बार-बार यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि अगर वे सत्ता में आए तो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली जनता से लेकर मध्यमवर्गीय जनता तक और आर्थिक विकास से लेकर हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में प्राथमिकता से कार्य करेंगे। हालांकि भ्रष्टाचार और आंतरिक और बाहरी समस्याओं से निजात दिलाने के साथ चहुंमुखी विकास करने के अपने वादे के साथ इस चुनावी समर में भाजपा एवं नरेंद्र मोदी देश को यह विश्वास दिलाने में सबसे ज्यादा सफल होते दिख रहे हैं कि अगर देश की जनता मोदी सरकार को बहुमत दिलाती है तो आर्थिक, सामाजिक, सुरक्षा, आदि सभी क्षेत्रों में विकास की एक नई बयार देखने को मिलेगी एवं विश्व क्षितिज पर देश मजबूत बनकर उभरेगा। जहां मोदी बेहद मजबूती के साथ अपनी बात रखने में सफल दिखाई दे रहे हैं वहीं इस दौड़ में कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक दल कहीं बहुत पीछे छूट गए हैं।
वैसे यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि विकास की बात करते करते यह चुनावी प्रचार-प्रसार व्यक्तिगप आरोप-प्रत्यारोप एवं सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता आदि पर ही केंद्रित होने लगा है  एक समय भाजपा एवं नरेंद्र मोदी को लगता था कि ममता बनर्जी एनडीए में शामिल हो जाएंगी किंतु बांग्लादेशी घुसपैठियों पर नरेंद्र मोदी के बयान से अब ममता दी काफी मुखर होकर मोदी पर हमला करने लगी हैं, क्योंकि वास्तविकता यही है कि कल तक वाममोर्चा का आधार रहे ये बांग्लादेशी घुसपैठिए अब उनके वोटबैंक के बहुत बड़े आधार बन चुके हैं जिसे ममता दी किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहतीं। जहां नरेंद्र मोदी को ममता में बंगाल के सपने तोड़ने वाली खलनायिका नजर आने लगी हैं, वहीं ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस ने भी हथियार का रूख दुश्मन नंबर एक यानी वामपंथियों की ओर से हटा कर नरेंद्र मोदी की तरफ मोड़ दिया है। चंद हफ्तों में हुआ यह हैरतअंगेज बदलाव पश्चिम बंगाल में तेजी से बदल रहे राजनीतिक परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा है। जानकारों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी राज्य में पहली बार अपने बूते पांव जमाने वाली हालत में आती दिखाई दे रही है और बंगाल में भले मोदी लहरसे अधिक ममता लहर हो किंतु भाजपा के पीएम प्रत्याशी की तूफानी रैलियों का असर तो राज्य के चुनिंदा इलाकों में दिखने ही लगा है। भाजपा ने तेवर बदलने के साथ खुद को तृणमूल के विकल्प के रूप में दिखाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं, और इसका असर कांग्रेस के साथ वामपंथी समर्थकों के भी एक बड़े हिस्से पर भी दिख रहा है। तिलमिलाई तृणमूल ऐसे में मोदी कोगुजरात का कसाईबता रही है और मोदी के विकास मॉडल की खिल्ली उड़ा रही है तो इसमें आश्चर्य कैसा! केवल बंगाल में ही नहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि में भी मोदी विरोधी एक जुट नजर रहे है, और इस चुनावी महासमर में जमकर जुबानी जंग मची हुई है
इधर कांग्रेस के राहुल ग़ांधी एवं प्रियंका गांधी ने भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ जुबानी हमला बोल रखा है, तब भला नरेंद्र मोदी चुप क्यों रहें। उन्होंने भी शब्दों के बाण छोड़ने में कोई कोताही नहीं बरती है... राहुल गांधी कोनमूनाकरार देते हुए उनके भाषणों में राज्य में लोकायुक्त संस्थान तथा बड़े पैमाने पर नौकरियों में रिक्तियों संबंधी बयानों को लेकर गुजरात के बारे में उनकीकम जानकारीके लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष का मजाक उड़ाया। मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस अभी तक उनके गृहनगर वडनगर में 100 से अधिक दूतों को यह पता लगाने के लिए भेज चुकी है कि वह कभी चाय बेचते थे या नहीं। मोदी ने पाटन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में खेरालू में एक चुनावी सभा के दौरान सवाल किया, ‘यदि आप तनाव दूर भगाना चाहते हैं तो राहुल के भाषण सुनिए। उनके गणित के अनुसार, गुजरात में 27 हजार करोड़ नौकरियां रिक्त हैं। जब गुजरात की कुल आबादी ही छह करोड़ है तो ऐसा कैसे संभव है? कांग्रेस कैसा नमूना ले आई है ?’ मोदी ने कहा कि राहुल गुजरात के बारे मेंअज्ञानीहैं। प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार मोदी ने कहा, ‘राहुल ने हाल ही में अपने भाषण में दावा किया था कि गुजरात में लोकायुक्त नहीं है। लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए कि गुजरात में लोकायुक्त है और उसकी पहली रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जा चुकी है।

                 अगर इसी तरह यह चुनाव अभियान चलता रहा तो भूख, महंगाई, भ्रष्टाचार एवं विकास का मुद्दा कहीं पीछे छूट जाएगा, आम जनता भूख से मरती रहेगी एवं गरीबी बढ़ती ही जाएगी कई चुनावो के बाद इस बार देश में विकास के मुद्दे के साथ चुनाव लड़ा जा रहा था जो देश के विकास के लिए बहुत ही शुभ संकेत था पर जुबानी जंग एवं हिन्दू-मुस्लिम संबंधी चर्चाओं और नेताओं की बदजुबानी ने सारे चुनाव का माहौल ही बदल दिया है। फिर भी देश की जनता को नई सरकार से आर्थिक विकास के साथ सामाजिक विकास को लेकर बहुत ही ज्यादा अपेक्षाएं हैं। अब जनता देखना चाहती है की अच्छे दिन आते हैं कि नहीं? आखिर, उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी है....

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