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Tuesday, 17 January 2017
बिग बॉस: मोनालिशा ने विक्रांत से शादी की
Saturday, 14 January 2017
भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची की ओर : मनोज तिवारी
नई दिल्ली: इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के साथ ही भोजपुरी साहित्य और आंदोलन के मुद्दे पर खूब जोरदार चर्चा हुई । सांसद और दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि सरकार ने भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने का मन पूरी तरह से बना लिया है और संसद के अगले सत्र में भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता संबंधी बिल के संसद में पेश होने की पूरी उम्मीद है । इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पत्रिका 'भोजपुरी पंचायत' द्वारा अपने प्रकाशन के पांच वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित भोजपुरी साहित्यांदोलन कार्यक्रम में मॉरिशस के कला व संस्कृति मंत्री पृथ्वीराज सिंह रूपन, भारत में मारीशस के उच्चायुक्त श्री जगदीश्वर गोवर्धन, भोजपुरी सिनेस्टार, लोकगायक, सांसद एवं भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, भोजपुरी समाज दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दुबे, सासाराम महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष गुरूशरण सिंह, बिहारी कनेक्ट के अध्यक्ष उदेश्वर सिंह, पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष शिवजी सिंह की मौजूदगी में सम्पन्न इस कार्यक्रम में भोजपुरी पत्रकारिता, साहित्य, संस्कृति, कला व सिनेमा सहित भोजपुरी से जुड़े अनेक मुद्दों पर चर्चा हुई और भोजपुरी को जल्द से जल्द संवैधानिक मान्यता देने की मांग भी की गई । लोकगायक, सांसद एवं भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भोजपुरी की मिठास, विस्तार और समृद्धि पर बात करते हुए भोजपुरी पंचायत द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना करते रहे। उन्होंने बताया की अब वह समय दूर नहीं, जब भोजपुरी संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कर ली जाएगी। वे 'भोजपुरी-पंचायत' द्वारा किये जा रहे कार्यों से अभिभूत थे। उन्होंने मंच से बोलते हुए कहा कि कुलदीप भाई का कार्य निश्चय ही सराहनीय है। ये पूरी निष्ठा एवं मेहनत से पत्रिका को निकालते हैं। उन्होंने पत्रिका के हर कार्यक्रम में आने का वादा भी किया।
भोजपुरी समाज दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दुबे ने अपने संबोधन में कहा कि यह गौरव की बात है कि मॉरीशस सरकार ने मॉरीशस में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर रखी है और अब भारत में भी वर्तमान सरकार ने भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने का मन बना लिया है । लेकिन हिंदी के कुछ विद्वान भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता की राह में रोड़ा अटकाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि सच्चाई ये है कि भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता से हिंदी का कोई नुकसान नहीं होने जा रहा है । उन्होंने कहा कि भोजपुरी का हिंदी से कोई विरोध नहीं है ।
इस अवसर पर मॉरीशस के कला व संस्कृति मंत्री पृथ्वीराज सिंह रूपन तथा भारत में मारीशस के उच्चायुक्त श्री जगदीश्वर गोवर्धन ने भारत और मारीशस के प्रगाढ़ आपसी संबंधों तथा एक समान भाषा, संस्कृति, परम्परा और रीति-रिवाजों को याद करते हुए कहा कि हमारी जड़ें भारत में हैं और हमारा सौभाग्य है कि हमें यहां पर इतना मान-सम्मान प्रदान किया जाता है ।
सासाराम महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष गुरूशरण सिंह ने भोजपुरी के विकास और समृद्धि में पत्र-पत्रिकाओं के योगदानो की चर्चा करते हुए अनवरत रूप से 'भोजपुरी-पंचायत' का निकलना अनुकरणीय और सराहनीय है। बिहारी कनेक्ट के अध्यक्ष उदेश्वर सिंह ने विश्व स्तर पर भोजपुरी के कार्यक्रमों के आयोजनों की चर्चा करते हुए पत्रिका के योगदानों की सराहना करते हुए भोजपुरी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष शिवजी सिंह ने बताया कि भोजपुरी केवल भाषा ही नहीं, एक संस्कृति है। विश्व भोजपुरी सम्मलेन के आयोजन द्वारा उनका यही प्रयास रहता है कि भाषा और संस्कृति की समृद्धि हो। इसमें साहित्यिक रूप से चर्चाओं और कवि-सम्मेलनों का आयोजन अनुकरणीय है। इसी क्रम में पत्रकार व 'भोजपुरी संसार' के संपादक मनोज श्रीवास्तव ने भी भोजपुरी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखते हुए भोजपुरी पंचायत की कल्पना और उसके अनवरत सफर पर विषय-परिवर्तन के रूप में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। सबने अपने-अपने पक्षों द्वारा भोजपुरी साहित्य की समृद्धि और इसके संवैधानिक सम्मान के लिए होते रहने वाले आंदोलनों पर विस्तृत विचार प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में आये अतिथियों का स्वागत भोजपुरी पंचायत के संपादक कुलदीप श्रीवास्तव ने किया। जहाँ चर्चा सत्र का संचालन प्रो गुरुशरण सिंह ने किया वही बाकी सत्र का सञ्चालन व धन्यवाद ज्ञापन केशव मोहन पाण्डेय ने दिया। केशव मोहन पाण्डेय ने पत्रिका के साहित्यिक पक्ष को प्रस्तुत करते हुए बताया कि पत्रिका में भोजपुरी साहित्य की समृद्धि के लिए लगभग सभी विषयों पर साहित्यकारों के विचारों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भाषा और संस्कृति के हर पक्ष पर विचार प्रस्तुत किया जाता है। पत्रिका में भोजपुरी साहित्यकारों को भरपूर मौका दिया जाता है और उनके बारे में जानकारी भी प्रस्तुत किया जाता है।
उक्त कार्यक्रम में भोजपुरी साहित्य और आंदोलन से जुड़े विभूतियों को सम्मानित किया गया। भोजपुरी पंचायत द्वारा आयोजित इस 'साहित्यन्दोलन' कार्यक्रम में प्रो गुरुशरण सिंह, पाती पत्रिका के संपादक और श्रेष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक द्विवेदी को, साहित्यकार डॉ जौहर शाफियाबादी को 'साहित्य-रत्न' से सम्मानित किया गया तो प्रसिद्ध व्यवसायी और समाजसेवी डॉ संजय सिन्हा को 'दमदार भोजपुरिया' का सम्मान दिया गया। 'भोजपुरी समाज' के अध्यक्ष अजीत दूबे को 'भोजपुरी-रत्न' से तथा पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष शिवजी सिंह को 'पूर्वांचल सम्मान' से सम्मानित किया गया। सम्मान के इसी क्रम में 'बिहारी कनेक्ट' के उदेश्वर सिंह, मधुवेंद्र राय और ज्योतिषाचार्य पं राकेश पाण्डेय, हरि नारायण राय और भोजपुरी संसार के संपादक मनोज श्रीवास्तव को 'भोजपुरी गौरव सम्मान' से सम्मानित किया गया। भारत में मॉरिशस के उच्चायुक्त श्री जगदीश गोवर्धन को 'भारत मॉरिशस मैत्री सम्मान' से सम्मानित किया गया। लोक कलाकार विपुल नायक को 'भिखारी ठाकुर सम्मान' तथा मॉरिशस के कला और संस्कृति मंत्री पृथ्वीराज सिंह रूपं को 'डॉ राजेंद्र प्रसाद सम्मान' से सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर भोजपुरी कवि देवकांत पाण्डेय 'देव', हेलो भोजपुरी के संपादक राजकुमार अनुरागी, अमरेंद्र सिंह, मुकेश सिंह, सुनील सिन्हा, रीता मिश्रा, नरेन्द्र कुमार सिंह - अध्यक्ष बिहारी संस्कृति मंच, लेखक आर के सिन्हा, राकेश परमार, सुजीत कुमार श्रीवास्तव आदि अनेक कवि, लेखक, वकील, अध्यापक, समाजसेवी, पत्रकार व अन्य बुद्धिजीवी उपस्थित थे ।
भोजपुरी समाज दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दुबे ने अपने संबोधन में कहा कि यह गौरव की बात है कि मॉरीशस सरकार ने मॉरीशस में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर रखी है और अब भारत में भी वर्तमान सरकार ने भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने का मन बना लिया है । लेकिन हिंदी के कुछ विद्वान भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता की राह में रोड़ा अटकाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि सच्चाई ये है कि भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता से हिंदी का कोई नुकसान नहीं होने जा रहा है । उन्होंने कहा कि भोजपुरी का हिंदी से कोई विरोध नहीं है ।
इस अवसर पर मॉरीशस के कला व संस्कृति मंत्री पृथ्वीराज सिंह रूपन तथा भारत में मारीशस के उच्चायुक्त श्री जगदीश्वर गोवर्धन ने भारत और मारीशस के प्रगाढ़ आपसी संबंधों तथा एक समान भाषा, संस्कृति, परम्परा और रीति-रिवाजों को याद करते हुए कहा कि हमारी जड़ें भारत में हैं और हमारा सौभाग्य है कि हमें यहां पर इतना मान-सम्मान प्रदान किया जाता है ।
सासाराम महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष गुरूशरण सिंह ने भोजपुरी के विकास और समृद्धि में पत्र-पत्रिकाओं के योगदानो की चर्चा करते हुए अनवरत रूप से 'भोजपुरी-पंचायत' का निकलना अनुकरणीय और सराहनीय है। बिहारी कनेक्ट के अध्यक्ष उदेश्वर सिंह ने विश्व स्तर पर भोजपुरी के कार्यक्रमों के आयोजनों की चर्चा करते हुए पत्रिका के योगदानों की सराहना करते हुए भोजपुरी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष शिवजी सिंह ने बताया कि भोजपुरी केवल भाषा ही नहीं, एक संस्कृति है। विश्व भोजपुरी सम्मलेन के आयोजन द्वारा उनका यही प्रयास रहता है कि भाषा और संस्कृति की समृद्धि हो। इसमें साहित्यिक रूप से चर्चाओं और कवि-सम्मेलनों का आयोजन अनुकरणीय है। इसी क्रम में पत्रकार व 'भोजपुरी संसार' के संपादक मनोज श्रीवास्तव ने भी भोजपुरी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखते हुए भोजपुरी पंचायत की कल्पना और उसके अनवरत सफर पर विषय-परिवर्तन के रूप में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। सबने अपने-अपने पक्षों द्वारा भोजपुरी साहित्य की समृद्धि और इसके संवैधानिक सम्मान के लिए होते रहने वाले आंदोलनों पर विस्तृत विचार प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में आये अतिथियों का स्वागत भोजपुरी पंचायत के संपादक कुलदीप श्रीवास्तव ने किया। जहाँ चर्चा सत्र का संचालन प्रो गुरुशरण सिंह ने किया वही बाकी सत्र का सञ्चालन व धन्यवाद ज्ञापन केशव मोहन पाण्डेय ने दिया। केशव मोहन पाण्डेय ने पत्रिका के साहित्यिक पक्ष को प्रस्तुत करते हुए बताया कि पत्रिका में भोजपुरी साहित्य की समृद्धि के लिए लगभग सभी विषयों पर साहित्यकारों के विचारों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भाषा और संस्कृति के हर पक्ष पर विचार प्रस्तुत किया जाता है। पत्रिका में भोजपुरी साहित्यकारों को भरपूर मौका दिया जाता है और उनके बारे में जानकारी भी प्रस्तुत किया जाता है।
उक्त कार्यक्रम में भोजपुरी साहित्य और आंदोलन से जुड़े विभूतियों को सम्मानित किया गया। भोजपुरी पंचायत द्वारा आयोजित इस 'साहित्यन्दोलन' कार्यक्रम में प्रो गुरुशरण सिंह, पाती पत्रिका के संपादक और श्रेष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक द्विवेदी को, साहित्यकार डॉ जौहर शाफियाबादी को 'साहित्य-रत्न' से सम्मानित किया गया तो प्रसिद्ध व्यवसायी और समाजसेवी डॉ संजय सिन्हा को 'दमदार भोजपुरिया' का सम्मान दिया गया। 'भोजपुरी समाज' के अध्यक्ष अजीत दूबे को 'भोजपुरी-रत्न' से तथा पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष शिवजी सिंह को 'पूर्वांचल सम्मान' से सम्मानित किया गया। सम्मान के इसी क्रम में 'बिहारी कनेक्ट' के उदेश्वर सिंह, मधुवेंद्र राय और ज्योतिषाचार्य पं राकेश पाण्डेय, हरि नारायण राय और भोजपुरी संसार के संपादक मनोज श्रीवास्तव को 'भोजपुरी गौरव सम्मान' से सम्मानित किया गया। भारत में मॉरिशस के उच्चायुक्त श्री जगदीश गोवर्धन को 'भारत मॉरिशस मैत्री सम्मान' से सम्मानित किया गया। लोक कलाकार विपुल नायक को 'भिखारी ठाकुर सम्मान' तथा मॉरिशस के कला और संस्कृति मंत्री पृथ्वीराज सिंह रूपं को 'डॉ राजेंद्र प्रसाद सम्मान' से सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर भोजपुरी कवि देवकांत पाण्डेय 'देव', हेलो भोजपुरी के संपादक राजकुमार अनुरागी, अमरेंद्र सिंह, मुकेश सिंह, सुनील सिन्हा, रीता मिश्रा, नरेन्द्र कुमार सिंह - अध्यक्ष बिहारी संस्कृति मंच, लेखक आर के सिन्हा, राकेश परमार, सुजीत कुमार श्रीवास्तव आदि अनेक कवि, लेखक, वकील, अध्यापक, समाजसेवी, पत्रकार व अन्य बुद्धिजीवी उपस्थित थे ।
२० जनवरी से प्रियेश की ''मेहरारू चाहि मिल्की वाइट''
भोजपुरी सिनेमा ''मेहरारू चाहि मिल्की वाइट'' २० जनवरी को पुरे बिहार-झारखण्ड में एक साथ रिलीज होने जा रही है।
अपनी एंकरिंग से में धूम मचाने वाले अभिनेता प्रियेश सिन्हा इस बार बड़े पर्दे पर छाने को तैयार हैं। उनकी एक्शन कॉमेडी फ़िल्म
मेहरारू चाही मिल्की व्हाइट का पोस्टर व ट्रेलर सोशल साईट पर रिलीज कर दिया गया है। प्रशंसकों की तरफ से हज़ारों की संख्यां में लाइक्स इस पोस्टर और ट्रेलर को अबतक मिल चुके हैं। ब्लू फॉक्स मोशन पिक्चर्स प्रेजेंटस व मनोहर एस झा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी अभिनेता प्रियेश सिन्हा की यह पहली फिल्म है।
फिल्म का निर्देशन मिथिलेश अविनाश ने किया है। शनिवार को फ़िल्म की पूरी टीम ने भव्य कार्यक्रम आयोजित कर धमाकेदार पोस्टर व ट्रेलर को रिलीज किया। पोस्टर में अभिनेता प्रियेश सिन्हा भोजपुरी क्वीन रानी चटर्जी के साथ नजर आ रहे हैं। एक पोस्टर में दूल्हे की यूनिफार्म में नजर आ रहे प्रियेश ने पोस्टर से ही लोगों का दिल जीत लिया है। फिल्म का पायलट एक्शन कॉमेडी है और इसी महीने 20 जनवरी को यह फिल्म भी रिलीज़ होने वाली है। इस पोस्टर को सोशल मीडिया पे खूब तारीफ़ मिल रही है।
प्रियेश सिन्हा और रानी चटर्जी की जोड़ी मिथिलेश अविनाश के निर्देशन में बनी यह पहली फिल्म हैं,मिथिलेश द्वारा कैमरे के पीछे बहुत कुशलता से कार्य किया गया है।
बहुप्रतीक्षित एक्शन कॉमेडी फ़िल्म मेहरारू चाही मिल्की व्हाइट अब रिलीज को तैयार है,20 जनवरी को ये फ़िल्म पुरे बिहार और झारखण्ड मे एक साथ रिलीज़ होने वाली है। इसे देखने वाले दर्शक अपने आप में एक बदलाव महसूस करेंगे। प्रियेश के मुताबिक भोजपुरी सिने उद्योग में मनोरंजक फिल्मों को बेचना अब पहले से आसान हो गया है, वैसे कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें बेचने से ज्यादा आप चाहते हैं कि लोग इसे देखें,यह ऐसी ही फिल्म है, आप चाहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस फिल्म को देखें."।
इस मौके पर फ़िल्म की पूरी टीम काफी उत्साहित हैं। प्रियेश के अनुसार मेहनत का कोई विकल्प नही होता,वैसे मेरा करियर बहुत ही दिलचस्प और चैलेंजिंग रहा है। लगातार 2009 से अब तक टेलीविजन शोज करते हुए चार बार बेस्ट एंकर का अवार्ड और अब साथ साथ रानी चटर्जी के साथ 'मेहरारू चाही मिल्की व्हाइट' फिल्म जो अब रिलीज को तैयार है,शुद्ध मनोरंजक फिल्म है। इसके अलावे भी प्रियेश कई दिलचस्प फिल्में कर रहे हैं। सर्वशक्तिशाली महादेव और वीर अर्जुन उनकी आने वाली फिल्में होंगी।
Monday, 9 January 2017
भोजपुरी का विरोध क्यों?
भाषा का विरोध और
वह भी अपने देश की भाषा का विरोध,
पारंपरिक, सांस्कृतिक एवं प्राचीन भाषा
का विरोध! एक ऐसी भाषा का विरोध जो हर तरह से
समृद्ध है और अपने ही देश में अपने उचित मान-सम्मान के लिए संघर्षरत है। जिस भाषा
को आधिकारिक दर्जा दिलवाने के लिए लोगों को एकमत होना चाहिए, उसी भाषा का विरोध शर्म की बात नहीं तो और क्या हो सकती है। जी हाँ,आज कल हिंदी के तथाकथित विद्वान भोजपुरी विरोध में लगे हुए हैं और वह भी बिना
उचित, उपयुक्त कारण के। ये विरोध तार्किकता, सत्यता पर निर्भर न होकर, उनके मन पर निर्भर है। मन बना लिया कि विरोध
करना है तो करना है, भले विरोध के सुर नाकारात्मक ही क्यों न हों, सत्य से परे ही क्यों न हों,
औचित्यविहिन ही क्यों न
हों, पर भाई मर्जी की बात, मन की बात, विरोध करना है तो करना है। कोई भारत के प्रधाव सेवक को खत लिखकर विरोध जता रहा
है तो कोई अखबार आदि के जरिए अपनी अतार्किक बातों द्वारा। इतना ही नहीं, आजकल तो फेसबुक आदि पर भी कुछ लोग भोजपुरी विरोध का राग अलाप रहे हैं और एक
प्रोफेसर साहब तो फेसबुक पर लोगों को गुमराह करने में लगे हुए हैं और अपनी विद्वता
को अपने प्रोफेसरी के घमंड में शर्मसार करने पर तुले हुए हैं।
कुलदीप श्रीवास्तव |
इस विषय पर एक
बहस आयोजित होनी चाहिए, जिसमें हिंदी आदि के उन सभी दिग्भ्रमित
साहित्यकारों, कथित विद्वानों आदिको बुलाया जाए, जो भोजपुरी का विरोध करते हुए लोगों को गुमराह करने में लगे हुए हैं, ताकि सबको स्पष्ट हो सके कि लोकभाषाओं की संस्कृति ही हिंदी की उदात्त
संस्कृति है। लोकभाषाओं को संरक्षित नहीं किया जाएगा, तो भाषा के साथ ही लोकसंस्कृति लुप्त हो जाएगी और अनेकता में एकता की संस्कृति
वाली हिंदी कमजोर ही नहीं अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए असहाय हो जाएगी। यह कहना
कितना हास्यास्पद है कि एक ही देश की एक भाषा मजबूत होगी तो दूसरी भाषा कमजोर हो
जाएगी। भोजपुरी के आधिकारिक होने से हिंदी के नुकसान का राग अलापना पूरी तरह से
बेबुनियाद है। लोग कैसे भूल जाते हैं कि भोजपुरी तो निरंतर हिंदी को समृद्ध करती
रही है। भोजपुरी देश के बाहर मॉरीशस, हॉलैंड सहित विश्व में
कहीं भी गई तो अपनी गठरी-मोटरी में हिंदी को भी साथ लेती गई। हिंदी भाषा के पितामह
भारतेंदु हरिश्चंद्र तथा उनके बाद प्रेमचंद और हजारी प्रसाद द्विवेदी एवं अन्य कई
समकालीन साहित्यकार भोजपुरी क्षेत्र से आए हैं, जिनके लिए भोजपुरी ने
प्रेरणा स्त्रोत के रूप में काम किया है। चाहें फणिश्वर नाथ रेणु का ‘मैला आँचल’, ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’, पहलवान का ढोलक आदि हो या राही मासूम रज़ा का ‘टोपी शुक्ला’, ‘आधा गाँव’, नीम का पेड़ आदि ये सभी बोली-भाषा की महत्ता को
संपादित करते हुए हिंदी को ही तो समृद्ध किए हैं। महोदय, अगर आज तक संविधान की सूची में सम्मिलित भाषाओं से हिंदी का कुछ नहीं हुआ तो
भोजपुरी से क्यों डर है? अगर डर ही है तो हिंदी को समृद्ध करने में लगें, भोजपुरी को रोकने में नहीं। एक बात और, आपके जैसे सत्ता-सुख की
लालसा में लगे हुए चाहे लाखों लोग भोजपुरी को लंगड़ी मारें, उसकी अजस्र धारा को कोई रोक नहीं पाएगा।
1000 हज़ार साल
पुरानी भाषा भोजपुरी का साहित्य अथाह समुंदर है। सैद्धांतिक तौर पर कहा जाता है कि
जो भाषा रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं करा पाती, उस भाषा का अस्तित्व
धीरे-धीरे खत्म होता जाता है। लेकिन यह सिद्धांत भोजपुरी के साथ ठीक-ठीक सामंजस्य
नहीं बना पा रहा। सीधे तौर पर देखें तो अभी तक भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा भी नहीं
मिला है पर इसके बावजूद यह भाषा अपनी उत्पत्ति क्षेत्र की सीमा लांघ कर दुनिया के
लगभग 20 देशों में पंख पसार चुकी है। भाषा के विकास की भावना के साथ कुछ पेशेवर
पहल भी देश में हुए हैं जो पर्याप्त न होने के बावजूद भी सकून देते हैं और संविधान
की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के दावे को पुख्ता करते हैं। दूसरी ओर देखें तो, नेपाल से लेकर मॉरीशस और सूरीनाम में यह कुछ हद तक रोजगार की भाषा बनी है।
एक हजार साल
पुरानी भोजपुरी भाषा न केवल एक भाषा है बल्कि बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर
प्रदेश के भोजपुरी क्षेत्र तथा कितने विदेश में बसे भोजपुरियों का संस्कार और जीवन
है। भोजपुरी में वह क्षमता है जो अन्य भाषाओं में कम देखने को मिलता है। यह हर
परिस्थिति में अपनी स्थिति मजबूत कर लेती है और उस मुकाम पर पहुँच जाती है जहाँ
इसे होना चाहिए था। अपनी ऐतिहासिकता के लिए विख्यात भोजपुरी एक तरफ बलिया से
बेतिया तक फैली है, तो इसका उत्तरी-दक्षिणी फैलाव लौरिया नंदनगढ़ से
आजमगढ़, देवरिया तक है। दूसरी ओर जहां इसकी कीर्ति पताका राम प्रसाद
बिस्मिल, मंगल पांडेय,
असफाकउल्लाह खां जैसे
क्रांतिवीरों ने लहराया है तो, वहीं बाबू कुंवर सिंह ने इसी जमीं से जीत का
जज्बा भरा है। आजादी के बाद भोजपुरी क्षेत्र से बनने वाले प्रथम राष्ट्रपति की बात
हो या कर्मठ प्रधानमंत्री का, डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर लाल बहादुर
शास्त्री तक सर्वश्रेष्ठ विकल्प पुरबिया माटी से ही निकले हैं। सचिदानंद सिन्हा ने
अपना कौशल दिखलाया तो वहीं दूसरी ओर दुश्मनों के दांत खट्टे करने और सरहदों की
रक्षा ही नहीं वरन विस्तार करने में बाबू जगजीवन राम का कोई सानी नहीं।
हमारे सांसद अपने
गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा ले सकते हैं, क्योंकि हमारा भोजपुरिया
प्रदेश विशेष रूप से सदा सत्ता का केंद्र रहा है और अपने सम्मान की रक्षा में
हमेशा आगे रहा है। मौर्यों से पहले जरासंध और शिशुनाग जैसे शासकों को देख चुका यह
क्षेत्र महान सिकंदर के आक्रमण को चंद्रगुप्त मौर्य के शौर्य से चुनौती देता है।
कभी शिक्षा का महानतम केंद्र, तेजस्विता से ओत-प्रोत यह क्षेत्र कितने
मनीषियों, शिक्षाविदों, राजनेताओं की महान
कर्मस्थली बन विश्व का नेतृत्व किया, विश्व को मानवता का पाठ
पढ़ाया और आज एकाएक यह अनपढ़ और अपने कर्तव्य के प्रति उदासिन कैसे हो गया? नेता, सांसद अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान की बात तो
करते हैं पर संसद में असहाय क्यों दिखते हैं, यह संदेहास्पद बात है, इनकी कोई मजबूरी है या ये जानबूझ कर अपनी मातृभाषा को उपेक्षित रखना चाह रहे
हैं और ऐसे में ही इन कथित हिंदी प्रेमियों को भी विरोध का मौका मिल जा रहा है। एक
से बढ़कर एक पावरफुल भोजपुरिया सांसद, मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री एवं देश के सर्वोच्च पद महामहिम
राष्ट्रपति हुए। पर, आजादी के 69 साल बाद भी
भोजपुरी भाषा अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रही है। वह भी भारत में सबसे ज्यादा भोजपुरी
बोलने वाले सपूतों को पैदा करने के बाद भी, भोजपुरी माटी के लाल देश
मे ही नहीं विदेशों में भी अपनी हुनर, मेहनत और ताकत के बलबूते
सर्वोच्च पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
आज मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सुरीनाम, नीदरलैंड, त्रिनिदाद, टोबैगो जैसे देशों में
भोजपुरी जनसमूह अपना परचम बड़े गर्व से फहरा रहा है। मॉरीशस के खेतों में गन्ने की
खेती के लिए धोखा से ले जाए गए मजदूरों ने बसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओत प्रोत
हो कर उस मिट्टी को ही अपने खून-पसीने से सिंचना शुरू किया। बंजर जमीनें लहलहा
उठीं और आज मॉरीशस विश्व का जीता-जागता स्वर्ग बन गया। यह भोजपुरी माटी की ताकत ही
है कि देश के बाहर एक और भारत का निर्माण हो गया। आखिर हमारे नेता अपने इतिहास से
सीख क्यों नहीं लेते और वर्षो से लंबित भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने
की जोरदार पहल क्यों नहीं करते?
आखिर कब तक ये सांसद, नेता, मंत्री केवल बातें बनाते रहेंगे और कोरा
आश्वासन देते रहेंगे। यूपीए 1 एवं 2 के मंत्री और नेता भी केवल आश्वासन देने के
सिवा कुछ नहीं किए। खांटी भोजपुरिया एवं सासाराम की सांसद, मीरा कुमारलोकसभा अध्यक्षा रहीं और कुशीनगर के सांसद आरपीएन सिंह गृहराज्य
मंत्री रहे, फिर भी बिल तक पेश नहीं करा पाए लोकसभा में। और
आज की सरकार भी अभी आश्वासन के सिवा कुछ कर नहीं पाई है।
भोजपुरी माटी में
पैदा होकर अनेक भोजपुरिया सपूत अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण एवं पावरफुल बने।
उन्हीं में से कवि केदार नाथ सिंह जी, आलोचक नामवर सिंह, मनेजर पाण्डेय जी और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी जी। इन
चारों का मेरा नमन। इन लोगों ने भी अपने साहित्य, कविताओं और आलोचनाओं से
देश-विदेश में भोजपुरी माटी का मान बढ़ाया है पर, इन लोगों ने कभी भी अपनी
मां की भाषा भोजपुरी की बात करना तो दूर, कर्ज चुकाने की भी कोशिश
नहीं की। हम ए महान विभूति लोगन से पुछत बानी की, ‘भोजपुरी के संवैधानिक
दरजा मिले, एकरा खातिर कवनो राउर फरज नइखे का? विकिपीडिया पर भोजपुरी माटी के महान सपूत नामवर सिंह के हम प्रोफाइल पढ़त रहनी, पढ़ि के हमरा सरमिंदा महसूस भइल कि का कवनो भोजपुरिया खातिर एतना खराब समय आ
गइल बा की ओकरा आपन पहिचान बतावत में सरम आवत बा? रउआँ सभे भी पढ़ लीं की का
लिखल बा, ‘वे हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, बाँग्ला, संस्कृत भाषा भी जानते हैं।’ नामवर सिंह के जनम 1 मई 1927 के बनारस (अब के चंदौली जिला में) के एगो गाँव
जीयनपुर में भइल रहे। तऽ का माननीय नामवरजी के आपन माई भाखा भोजपुरी ना आवेला? का पैदा होते उहाँ का उर्दू भा बंगला बोले लगनीं? यह बहुत ही शर्म की बात है कि ऐसा व्यक्ति जिस पर हम भोजपुरियों को नाज है वह
अपनी माटी की खूशबू और भाषा से ही परहेज कर गया, जिसमें वह पला-बढ़ा, जिसको बोलकर वह आज इस मुकाम पर पहुँचा। मनेजर पाण्डेय जी एवं कविवर केदारनाथ
सिंह जी भोजपुरी में कुछ ना लिख सकेनीतऽ भोजपुरी मान्यता के मांग भी ना कर सकेनी
का? ओने साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ त्रिपाठी 24 भासा
के लोगन के सम्मान देत समय एक्को बेर उनका आपन माई के भासा भोजपुरी के यादो ना आइल? इ सभ देख के दिल के बड़ा ठेस पहुँचे ला, पर का इ चारों विभूतियन
के कुछु फर्क भी ना पड़े? अब ए से बड़हन सरम के बात का होई। 2013 में
पटना में मोदी सरकार के पावरफुल मंत्री रविशंकर प्रसाद भी कहले रहनी की मोदी सरकार
आवते भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता मिल जाई। पर मान्यता तऽ दूर के बात बा, पिछले साल रविशंकर बाबु 22 भासा में किताबन के ‘डिजिटलाइजेशन’ के घोसना कइलन, पर भोजपुरी के तनको इयाद ना कइनें!
जहाँ तक भोजपुरी
विरोधियों की बात हैं तो इतना कहूंगा कि यह असक्षम लोगो का एक ग्रुप मात्र हैं, और तथाकथित हिंदी के सूबेदारों द्वारा भोजपुरी का विरोध करना यह साबित करता है
कि भोजपुरी दुनिया की सबसे मजबूत भाषा है जिसका सामना नहीं कर सकते ये लोग। इनको
अपने आप पर और अपने साहित्य पर तनिक भी विश्वास नहीं। यह अपनी कमजोरी छिपाने के
लिए भोजपुरी विरोध का सबसे आसान तरीका ढूंढ लिए हैं। कई बार तो भोजपुरी विरोध में
यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि बहुत-सी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया
गया तो रिजर्व बैंक के लिए उन सभी भाषाओं को नोट पर छापना असंभव हो जाएगा, क्योंकि नोट पर इतनी जगह नहीं है। दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि संघ लोक
सेवा आयोग भी पर्याप्त मूलभूत सुविधा के अभाव में आठवीं अनुसूची में शामिल सभी
भाषाओं में परीक्षा लेने में समर्थ नहीं है। अब तो लोग यह कहने लगे हैं कि भोजपुरी
को संविधान में सम्मिलित करने से हिंदी को नुकसान होगा। वाह रे स्वार्थी मानव।
मुझे तो जहाँ तक पता है कि दिया जाने वाला कोई भी कारण तर्कसंगत नहीं है। अगर
आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं का नोट पर छापना अनिवार्य होता तो चौदह की जगह
बाइस भाषाएं छापी जातीं और जहाँ तक परीक्षा की बात है तो संघ लोक सेवा आयोग भी केवल
दस बड़ी भाषाओं को ही परीक्षा का माध्यम बनाने की व्यवस्था रखे और अन्य भाषाओं को
विकल्प के रूप में मान्यता दे दे। तो कृपया भोजपुरी का या किसी भी भारतीय भाषा का
विरोध न करके भाषा को, हिंदी को समृद्ध करने की बात करें। नकारात्मकता, स्वार्थ से ऊपर उठकर सब भारतीय भाषाओं के विकास की बात करें। क्या यह संभव
होगा कि आप एक ही परिवार के कुछ लोगों को उपेक्षित रखें? क्या यह उचित होगा और वह भी ऐसे व्यक्ति, भाषा को जो पूरी तरह से
सामर्थ्यवान, समृद्ध है? आखिर कब तक आप
सामर्थ्यवान को दबाने की कोशिश करते रहेंगे? आप परिवार के मुखिया को
तभी मजबूत कर सकते हैं जब परिवार के बाकी लोग भी मजबूत हों, सबका सम्मान हो। तो, कृपया आप पुनःविचार करते हुए, सत्य, तर्क, यथार्थ की कसौटी पर अपने
विचारों को कसते हुए, भाषा की, हिंदी के विकास की बात
करें, उसे समृद्ध करने में अपना योगदान दें न कि भोजपुरी का विरोध
करें। जय हिंद। जय हिंदी। जय भोजपुरी।
मनोज तिवारी इलेवन को जीविका और वर्ल्ड वाइड रिकार्ड्स ने खरीदा
मधुवेंद्र राय की ’जीविका फिल्म्स’ और रत्नाकर कुमार की ’वर्ल्ड वाइड रिकार्ड्स’ ने बीआईपीएल मनोज तिवारी इलेवन को खरीद लिया है। मीडिया से बात करते हुए दोनों पार्टनर, मधुवेंद्र राय और रत्नाकर कुमार ने कहा कि ’बीआईपीएल’ भोजपुरी फिल्म उद्योग के लिए एक परिवार की तरह है पर साथ ही यह एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहाँ परिवार के सभी स्टार एक साथ खेलते हैं। बीआईपीएल का यह दूसरा साल काफी लोकप्रिय हो चुका है और अब हम सब को मिलकर इसे अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड के रूप में स्थापित करना है, जिससे भोजपुरी सिनेमा का विकास एवं प्रचार-प्रसार हो और हर तरह से भोजपुरी फिल्मों के क्षेत्र का विकास हो सके, इन्हें समृद्ध किया जा सके। मधुवेंद्र राय ने कहा कि आपको पता ही है ’जीविका फिल्म्स’ 2016 से ही अंतर्राष्ट्रीय शोज का आयोजन करते आ रहा है और इन शोज के जरिए भोजपुरी सिनेमा के कलाकारों ने खूब धमाल मचाया है। अब बीआईपीएल के मैच भी अगले साल से देश के बाहर कदम रखने वाले हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धमाल मचाने वाले हैं। इन दोनों बड़ी कंपनियाँ का जुड़ना, भोजपुरी सिनेमा के लिए बहुत ही शुभ संकेत है।
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