वादों का हवाई किला
देशवासियों के
मन में एक ही सवाल- दिल्ली का सीएम
कौन? इसका जवाबदेना मुश्किल है। सटोरियों की माने तो बीजेपी की जीत पक्की है। लेकिन
सर्वे अलग-अलग संभावनाएं जता रहे हैं। कुल मिलाकर यह चुनाव भाजपा एवं आम आदमी
पार्टी के बीच कड़ी टक्कर का संकेत दे रहा है। कांग्रेस तो इस लड़ाई में कहीं
दूर-दूर तक भी नजर नहीं आ रही पर यह हो सकता है कि कहीं यह भाजवा व आप के गले की
हड्डी न बन जाए और इन दोनों का खेल भी न बिगाड़ दे। क्योंकि अब समय फिर से करवट
लेने लगा है और यह वही कांग्रेस है जो पिछले लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली की बागडोर
संभालते हुए दिल्ली की तश्वीर बदलकर रख दी है। मेरे हिसाब से, अन्य प्रांतों की
तुलना में कांग्रेस सरकार ने दिल्ली में सबसे ज्यादा काम किया था। अगर तत्कालीन
केंद्र सरकार घोटाले और कॉमनवेल्थ गेम घोटाले नहीं हुए होते तो दिल्ली कांग्रेस
फिर से दिल्ली के तख्त पर विराजमान होती और अभी इस चुनाव से जनता के साथ ही
पार्टियों को द-चार नहीं होना पड़ता। पर तत्कालीन केंद्र सरकार के घोटाले, शीला
सरकार के विकास को लील गए और शीला सरकार की सारी मेहनत इन घोटालों की बलि चढ़ गई
तथा इसे के चलते एक नई पार्टी यानी आम आदमी पार्टी की उपज हुई।
केजरीवाल एण्ड
कंपनी द्वारा जारी घोषणा पत्र मात्र एक छलावा लगता है। सपनों में भी इन्हें पूरा
करना मुमकिन नहीं दिखता। दिल्ली का कुल बजट 40000
हजार करोड़ का है और ‘आप’ का बजट लगभग 12 लाख करोड़ का।
अब सबसे अहम सवाल यह उठता है कि इतना पैसा कहाँ सेलाएगी‘आप’? किसी के भी यह
समझ से परे हो सकता है कि केजरीवाल सरकार कैसे चलाएंगे। बिजली सस्ती कर देंगे, पानी फ्री कर
देंगे, 15 लाख सीटीवी लगवाएंगे, भईइसके लिए पैसा
चाहिए और वह पैसा आप कहाँ से लाओगे, जरा इस पर भी तो प्रकाश डाल दो? आज के समय में पार्टियों को वादे करना बहुत
ही आसान लगता है पर जब पूरा करने की बात आती है तो तो तमाम कठिनाइयों को बताकर
अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।यह घोषणा पत्र केजरीवाल एंड कंपनी के साथ ही दिल्ली जनता
के लिए मात्र एक छलावा ही है। सब्सिडी की भी एक सीमा होती है और इसके लिए भी पूर्व
तैयारी, धन आदि की जरूरत होती है, आखिर ये नेता, पार्टियाँ बिना सोचे-समझे ऐसे-ऐसे
दावे क्यों कर देती हैं, जो कभी पूरा ही नहीं हो सकते। क्या इन नेताओं, पार्टियों
के पास चुनाव के समय कोई जादू की छड़ी आ जाती है?केजरीवाल ने जो-जो वादे किए हैं,
वो पांच साल तो क्या बीस सालों में भी हो जाए
तो किसी चमत्कार से कम नहीं होगा! जब वादों का मौसम हो तो बीजेपी पीछे क्यों रहे।
वह भी तो वादे-पर-वादे करती जा रही है। मोदी ने कहा है कि उनका एक सपना है कि2022 तक हर
झुग्गीवाले के पास एक पक्का घर हो और इसी सपने को पूरा करने के लिए वह दिल्लीवालों
से वोट मांग रहे हैं। यह सपना कुछ हद तक संभव तो हैं पर करना मुश्किल है।
बीजेपी की सीएम
उम्मीदवार किरण बेदी ने महिलाओं के सुरक्षा के लिए अपना ब्लू प्रिंट जारी किया है।
किरण बेदी कह रही हैं कि महिलाओं को सुरक्षा देगी लेकिन यह तो दिल्ली की महिलाएं
और लड़कियां ही जानती हैं कि बीजेपी सरकार आने के बाद छेड़छाड़ की घटनाएं कितनी कम
हुईं हैं? इसी तरह करप्शन खत्म करने का वादा कर रही है
बीजेपी, लेकिन एमसीडी में तो उसी का राज है - क्या
एमसीडी में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है?
क्या नक्शे बिना पैसा दिए पास होने लगे हैं? क्या पुलिसवालों
ने, जो सीधे मोदी सरकार के अधीन हैं,
रिश्वत लेना बंद कर दिए हैं? आप किसी भी
व्यापारी, किसी भी ऑटोवाले,
किसी भी रेहड़ी-पटरीवाले से पूछ लीजिए, वह बता देगा कि
एनडीए सरकार आने के बाद भी हफ्तावसूली कैसे पहले की ही तरह चल रही है। मोदी सरकार
ने केन्द्र में भले ही कुछ सुधार किया होपर दिल्ली प्रदेश में भ्रष्टाचार व
रिश्वतखोरी पर रोक लगा पाने में विफल रही है।
एक तरफ केजरीवाल
के साथ ऑटो वाले, पान वाले, गरीब हैं, निम्न-मध्यमवर्गीय लोग हैं,
यूथ हैं तोवहीं बीजेपी के साथ मध्यमवर्गीय
परिवार, उच्चवर्गीय एवं युवा वोटों के साथ व्यापारियों कातबका है। अगर इस बार कांग्रेस
अपने पिछले विकास कार्यों के बल पर और हाल में दिल्ली में हुए उथल-पुथल को मुद्दा
बनाते हुए अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करअपने वोटों में इजाफा कर पाती है और पिछले
चुनाव के मद्देनजर4-5 प्रतिशत भी अधिक ला पाती है तो ‘आप’ को बड़ा नुकसान उठाना पड़ जाएगा और बीजेपी की बल्ले-बल्ले
हो जाएगी क्योंकि कांग्रेस दिल्ली में जितनी मजबूत होगी, उतना ही फायदा दिल्ली
बीजेपी को होगा, क्योंकि मोदी के पीएम बनने के बाद दिल्ली में भी काफी ओट बीजेपी
के पक्ष में सुरक्षित दिख रहा है और इसमें सेंध लगा पाना अभी मुश्किल लग रहा है।अब 10 फरवरी को क्या
रिजल्ट आता हैं यह देखना दिलस्पत होगा। यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के
लिए भी प्रतिष्ठा का चुनाव बन पड़ा है तभी तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह खुद ही चुनाव
की कमान संभाल रहे हैं और वरिष्ठ भाजपा नेता दिल्ली की गलियों में दिख रहे हैं। खैर अंत में यह भी कहना लाजिमी है कि भोजपुरिया
समाज की इस चुनाव में भी प्रमुख भूमिका होगी और ये जिधर
जाएंगे, दिल्ली के शासन को भी उधर ही जाना होगा।
Kuldeep Srivastava
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