Friday 6 February 2015

दमदार भोजपुरिया...

दमदार भोजपुरिया...



भारतीय ज्ञान-परंपरा ने पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई है। भारतीयों की तर्क-शक्ति के आगे पूरी दुनिया नतमस्तक है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जिस तरह से भारतीय ज्ञान शक्ति व श्रम-शक्ति की बात होती है, उसी तरह भारतीय परिप्रेक्ष्य में बिहार की चर्चा होती है। बिहार की चर्चा होते ही सबसे पहले जिस भाषा-संस्कार-संस्कृति पर नज़र जाती है, वह है ‘भोजपुरी’। वैसे तो बिहार में मैथिली, मगही, अंगिका, बज्जिका भी बोली जाती है और इन सभी भाषाओं व इसके बोलने वालों की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है। लेकिन बिहार की पहचान को दर्शाने के लिए किसी एक भाषा का चुनाव करना हो तो वह निश्चित रूप से भोजपुरी ही है। बाकी भाषाओं व बोलियों की तुलना में भोजपुरी बोलने-समझने वालों की संख्या वैश्विक स्तर पर ज्यादा है। आज वैश्विक स्तर पर भोजपुरियों ने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाई है। यह उपस्थिति यूं ही नहीं है, इसके पीछे एक बहुत बड़ी संघर्ष-कथा है। इतिहास के आइने में भोजपुरी भाषी भू-भाग को देखने पर मालूम चलता है कि यहां पर ज्ञान का अकूत भंडार रहा है लेकिन दूसरी तरफ भौतिकवादी युग के साथ तारतम्य बिठाने में भोजपुरी माटी के पूर्वज उतने सफल नहीं हो पाए जितने दूसरे क्षेत्रों के लोग हुए। इसका मुख्य कारण यह रहा कि भोजपुरिया लोग तीन-पांच की भाषा कम जानते हैं, साफ-सुथरा जीवन जीने में विश्वास रखते हैं। सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास करते हैं। आध्यात्म व धर्म के दायरे में ज्यादा मजबूती के साथ बंधे रहे हैं। पूर्वजों से मिले इस संस्कार ने कालांतर में आकर भोजपुरियों को इस कदर गढ़ा कि वो जहां भी गए अपनी ईमानदारी, मेहनत व कर्मठता की बदौलत अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे। उनकी इस सफलता ने दूसरों के मन में जलन के भाव को जन्म दिया, जिसे गाहे-बगाहे मुंबई-असम में भोजपुरियों के खिलाफ घटी घटनाओं के रूप में हम देख सकते हैं।   दरअसल, भोजपुरी एक भाषा ही नहीं बल्कि एक संस्कृति है, संस्कार है। बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में मुख्य रूप से लिखी-पढ़ी व बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा का विस्तार आज देश की चौहद्दी को पार कर चुका है। मॉरीशस, फिजी, यूगांडा, सूरीनाम सहित दुनिया के तमाम देशों में भोजपुरी प्रमुखता के साथ बोली जा रही है। दूसरे संदर्भ में बात करे तो दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां पर ‘का हाल बा’ की गुंज नहीं गुंजती। दरअसल, सच्चाई यह है कि भोजपुरीभाषियों का चरित्र इतना कर्मठ व कर्मशील रहा है कि वे प्रत्येक परिस्थिति में अपनी सार्थक उपस्थिति को दर्ज करा देते हैं।भारत की पहचान विविधता में एकता के रूप में रही है। यहां पर रंग-रूप-वेश-भूषा में तमाम तरह की विविधताएं पायी जाती हैं, लेकिन जब भारतीयता की बात आती है तो सब के सब एकजुट दिखाई देते हैं। ठीक यही फार्मुला भोजपुरीभाषियों के साथ भी लागू होता है। सिवान-छपरा-गोपालगंज की भोजपुरी, आरा-बलिया-बक्सर की भोजपुरी, जौनपुर-बनारस की भोजपुरी व गोरखपुर-गोंडा सहित तमाम भोजपुरी क्षेत्रों की भोजपुरी बोलने के अंदाज में विभिन्नता के बावजूद भोजपुरी के नाम पर सभी एकजुट हैं। भोजपुरी के प्रति सभी में एक सम्मान व श्रद्धा का भाव है। सच्चाई तो यह है कि भोजपुरी भूगोल की तासीर ही इतनी मानवीय है कि भोजपुरियों से जो एक बार मिल लेता है, वह आजीवन उसका बन के रह जाता है। 2001 से मैं खुद गांव से दूर हूं। पिछले 14 वर्ष के वनवास में देश के तमाम क्षेत्र के अच्छे-बुरे लोग मिले, लेकिन ऐसा कोई नहीं मिला जिससे मैं बात करने की स्थिति में नहीं हूं। कहने का मतलब यह है कि हम भोजपुरियों का व्यवहारिक पक्ष इतना मजबूत होता है कि किसी भी परिस्थिति में खुद को ढालने में सकारात्मकता के साथ हम सफल होते हैं। भोजपुरिया माटी के लालों ने अपनी मेहनत व ईमानदारी के बल पर दूर-प्रदेश में भी भोजपुरिया शान को बुलंदी प्रदान की है। भोजपुरियों के स्वभाव को रेखांकित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. प्रमोद कुमार सिंह कहते हैं कि भोजपुरिया धान के बीज की तरह होते हैं। जिस प्रकार धान को उखाड़ कर दूसरे खेत में रोपा जाता है और उसकी उत्पादकता बढ़ जाती है ठीक उसी प्रकार जब भोजपुरिया अपना मूल स्थान छोड़कर दूसरे स्थान पर जाते हैं तो उनकी उत्पादन शक्ति बढ़ जाती है। दिल्ली-मुंबई-कोलकाता-चेन्नई में भोजपुरियों की दमदार उपस्थिति इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है। देश की अर्थव्यवस्था का लेखा-जोखा मुंबई के पास है। क्या बिहारी दिमाग को, खासतौर से भोजपुरिया दिमाग व श्रम शक्ति को मुंबई से बाहर कर के मुंबई की वर्तमान स्थिति की परिकल्पना की जा सकती है! शायद नहीं। मुंबई में इनकम टैक्स विभाग से लेकर छोटे-बड़े सभी कार्यों में भोजपुरी भाषी दमदार तरीके से श्रमदान करते हुए मिल जायेंगे। राजनीतिक रूप से भी आज मुंबई में भोजपुरिया इतने मजबूत हो चुके हैं कि वहां की राजनीतिक गणित को बनाने-बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं। भले ही ठाकरे जैसे कुछ लोग गिदर-भभकी दें, लेकिन यह भोजपुरियों का दमदार वजूद ही है कि वे खुटा गाड़कर मुंबई की सियासत में भी अपनी पकड़ बनाएं हुए हैं। मुंबई, सिनेमा के लिए जानी जाती है, भोजपुरियों ने अपनी प्रतिभा का बेहतरीन उदाहरण यहां भी दिया है। मनोज वाजपेयी से लेकर मनोज तिवारी तक तमाम कलाकारों ने भोजपुरिया मिट्टी को गरीमा प्रदान की है।इसी तरह दिल्ली में भी भोजपुरिया लोगों ने अपनी अलग पहचान बनाई है। सड़क से लेकर संसद तक भोजपुरियों की एक लंबी फेहरिस्त है। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने सत्ता के गलियारों में जिस भोजपुरियां संस्कार की नींव डाली थी, उसकी गुंज आज भी राष्ट्रपति भवन में सुनाई देती है। दिल्ली की तरह ही कोलकाता में भी भोजपुरियां श्रम ने वहां के चटकल व्यवसाय को बुलंदी पर पहुंचाया था और आज भी वहां पर भोजपुरियों की दमदार उपस्थिति है। दक्षिण भारत में भी भोजपुरियों ने जाकर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। यदि बंगलुरु की बात करें तो वहां के आईटी सेक्टर में भी ‘का हाल बा’ बोलने वालों की संख्या कम नहीं है। सभी बातों का सार यह है कि भोजपुरियों ने अपनी कार्य-कौशलता के बल पर देश में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर ज्ञान-विज्ञान-व्यवसाय, साहित्य, सिनेमा सहित प्रत्येक क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाई है। उम्मीद करता हूं कि हम भोजपुरिया अपनी मानवीय तासीर को ऐसे ही आगे बढ़ाते रहेंगे और देश-दुनिया में भोजपुरी माटी का बुलंद पताका फहराते रहेंगे।

दमदार भोजपुरियां की खोज


भारत के विकास में भोजपुरियां श्रम शक्ति व ज्ञान शक्ति का अहम् योगदान रहा है। लेकिन भोजपुरिया माटी के सपूतों को एक मंच पर लाकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने की कवायद कम ही हुई है। इसी संदर्भ में भोजपुरी पंचायत टीम ने यह फैसला किया कि हम 2015 के पहले अंक को उन भोजपुरियों को समर्पित करेंगे, जिन्होंने अपनी मेहनत-लगन व जुनून से अपने-अपने क्षेत्र में भोजपुरिया पताका को लहराया है। इसी संदर्भ में हमारी टीम पूरे देश-विदेश से दमदार भोजपुरियों की खोज में जुटी रही। इस दौरान सैकड़ों भोजपुरी के लालों के नाम हमारे पास आए। हमें इनमें से 50 दमदार भोजपुरियों की सूची जारी करनी थी। यह बहुत ही माथा-पच्ची का काम रहा। कोई भी प्रतिभागी किसी से कम नहीं था। इस स्थिति में हमने ऑनलाइन पापुलारिटी के ग्राफ को भी नाम फाइनल करने का एक मापदंड बनाया।

इस अंक में जिन भोजपुरियो का नाम नहीं आ पाया है, वे यह न समझें कि उनका योगदान भोजपुरी माटी के लिए कम है। अगले वर्ष इसी तरह एक और सूची हम जारी करेंगे। संभव है तब आपका नाम इस सूची में हो। बस आपको अपने क्षेत्र में बेहतर से और बेहतर कार्य करना है। हमारी टीम की नज़र आपके कार्यों पर लगातार बनी रहेगी। इस अंक में तमाम मित्रों ने अपने बहुमूल्य समय व सुझाव दिया है। उन सभी को भोजपुरी पंचायत परिवार साधुवाद देता है।

आशुतोष कुमार सिंह
Bhojpuri Panchayat - Jan 2015

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