Wednesday 4 February 2015

विश्व का स्वर्ग मॉरीशस

विश्व का स्वर्ग मॉरीशस

भारतीय अप्रवासियों के मारीशस आगमन के 80वीं वर्ष गाँठ के संदर्भ में मॉरीशस सरकार द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव में दुबारा मॉरीशस जाने का मौका मिलासबसे ख़ुशी की बात यह थी कि मैं अपने पत्रकारिता गुरु मनोज श्रीवास्तव के साथ मॉरीशस सरकार द्वारा ऑफिसियल बुलावाया था। इस बार के अपने ९ दिनों के मॉरीशस प्रवास के दौरान मैं उन जगहों पर भी गया जहाँ पिछली बार नहीं जा पाया था और कई जगह तो दुबारा गया और भरपूर टाइम बिताया, और इससे मुझे मॉरीशस को पूरी तरह जानने और समझने का खूब मौका मिला


१८० साल पहले २ नवंबर १८३४ को हमारे पूर्वज गिरिमिटिया बनकर मॉरीशस गएथे और आज अपनी मेहनत और लगन से मॉरीशस को दुनियाका का स्वर्ग बना डाले हैं।पर मॉरीशस में भारतियों का अप्रवासन बहुत ही कठिन एवं चुनौतीपूर्ण समस्याओं से गुज़रा थासरिता बुधु अपने किताब में लिखती हैं कि 'यह जीवित रहने, सफल  होने तथा विपरीत परिस्थितियों में रहकर एक स्वर्ग जैसे सुन्दर टापू के निर्माण करने किदुर्जेय अभिलाषा है, जो पुरे विश्व के लिए आज भी मिशाल के रूप में पेश किया जाताहै


जहा तक मॉरीशस में भोजपुरी भाषा का सवाल है तो यहाँ भोजपुरी इंडिया से अधिक समृद्ध लगती है और यहाँ विद्यालयी स्तर पर भोजपुरी की पढ़ाई होने लगी है। जो भी बच्चे भोजपुरी पढ़ते हैं या जो लोग-बाग भी हैं, वे सभी भोजपुरी के प्रति गंभीर दिखते हैं। भोजपुरी के प्रति उनकी गंभीरता का नजारा इस सम्मेलन में भी देखने को मिला। इसके साथ ही मैंने वहाँ के विद्यालयों में पढ़ाई जानेवाली कुछ किताबें भी लाया हूँ जिन्हें काफी व्यवस्थित और यथार्थपूर्ण रूप से तैयार किया गया है। भोजपुरी को इतने सरल और मधुर तरीके से पेश किया गया है कि बच्चे रूचि लेकर पढ़ सकें और आसानी से समझ सकें। वैसे मॉरीशस में दैनिक जीवन में लोगों  कासंपर्क तीन भाषाओं से होता है, फ्रेंच, क्रिओल औरभोजपुरी से। यहाँ फ्रेंच भी क्रिओल और भोजपुरी से थोड़ी प्रभावित दिखती है पर जहाँ तक भोजपुरी की बात है तो इसके बहुत कम शब्द यहाँ बोली जाने वाली फ्रेंच और क्रिओल में मिलते हैं। वैसे यहाँ मूल भोजपुरी भाषियों के साथ ही अन्य प्रांतों से आने वाले अप्रवासी भी पहले भोजपुरी ही बोलते थेक्योंकियहाँ उस समय हर बस्तीया गावों में भोजपुरी-भाषियों का ही बहुमत था और वैसे भी भोजपुरी इतनी मधुर व सरल भाषा है कि सब इसे बोलना चाहते हैं। परंतु आज स्थिति थोड़ी बदल गई है और अब यहाँ के लोग-बाग वैसे ही भोजपुरी से थोड़ा दूर होते जा रहे हैं जैसे भारत में कुछ भोजपुरी भाषी, भोजपुरी अगुवा, नेता, संभ्रांत भोजपुरिया भोजपुरी से कन्नी काटते नजर आते हैं। अब मॉरीशस में भी लोग क्रिओल, फ्रेंच और अंग्रेजी पर ही ज्यादा ध्यान देने लगेहैं। जो बहुत ही सोचनीय है।

मुझे  मॉरीशस में कई बातें बहुत ही महत्वपूर्ण लगीं और बरबस ही मेरा ध्यान इधर चला गया। यह ध्यान देने वाली बात है कि मॉरीशस में ६० प्रतिशत से भी अधिक जन संख्या भारतीय मूलकी है। यह भी सत्य है कि भारत के सबसे गरीब लोग ही गिरिमिटिया मजदूर बनके मॉरीशस आये थे और आज वे अपनी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा के बल पर इतने आगे निकल गए हैं कि ऐसा लगता ही नहीं के ये लोग गिरमिटिया मजदूर की संताने हैं। एक सबसे महत्वपूर्ण और विचारणीय बात यह भी है कि यहाँ ऊँच-नीच, जाति-पाति का भेदभाव नहीं है और ना ही आरक्षण ही है और न इसके लिए मारामारी व राजनीति। यहाँ पर शिक्षा व चिकित्सा सुविधाएँ निश्शुल्क हैं तथा साथ ही यहाँ हर बच्चे को शिक्षा लेना अनिवार्य है, अगर बच्चा शिक्षा ग्रहण नहीं करता तो उसके घर पर पुलिस आ जाती है और माता-पिता को फाइन भरना पड़ता है।बुजुर्गों को पेंशन की सुविधा है। मॉरिशस सरकार की इन गतिविधियों को देखकर लगा कि अपने ही लोग इस देश को किस तरक्की पर पहुँचा दिए हैं और यहाँ के अपनों के लिए कितना कुछ कर दिए हैं। वहीँ एक ओर हम लोग हैं जो आज भी ऊँच-नीच, जाति-पाँति में उलझे हुए हैं। जितना समय हम अपने विकास पर नहीं देते उससे अधिक हमारा समय समाज व देश में फैली कुरीतियाँ बर्बाद कर देती हैं। गौर से देखने पर हम अपने को मॉरीशस से भी ५०  साल पीछे पाते हैं और ऐसे में भी अगर आज यही मॉरीश ससरका की मारी सरकार से उम्मीद करती है कि मोदी जी मॉरीशस को मेट्रो की सौगात देंगे... तो यह बहुत ही हास्यास्पद लगता है?
Left udeshwar Singh, Mauritius Presiden, Kuldeep Kumar and Mr Mukeshar Choonee at Mauritius


जो भी हो,मॉरीशस सरकार ने भारतीय अप्रवासियों के मारीशस आगमन के 180वीं वर्ष गाँठ के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव का सफल आयोजन कर इतिहास तो रच ही  दियाहै। भारत में केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा इस तरह के आयोजन हमने आज तक नहीं देखा है, जिसमें कोई सरकार इतने बड़े स्तर पर अपनी भाषा, संस्कृति एवं संस्कारों पर जोर देती दिखी हो। इसमें कोई दोराय नहीं कि मॉरीशस सरकार का यह अभूतपूर्व आयोजन भोजपुरी भाषा और  साहित्य के साथ ही संस्कृति के प्रसार-प्रचार  मेंमील का पत्थर साबित होगा और इससे हमारी भाषा, संस्कृति को एक नई दिशा व ऊँचाई मिलेगी। एक बात और हम भारतीय भोजपुरियों को मारिशसवासी भोजपुरियों से बिना शर्म किए सीखने की जरूरत है, उनके कार्यों, व्यवहारों को अपनाने की जरूरत है। अगर सँच कहूँ तो वे लोग हम लोगों से हर क्षेत्र में आगे हैं।

हम लोग शिष्टाचार भी भूलते जा रहे हैं। नाम व दाम पाने के लिए हम काफी हदतक गिर जाते हैं, न ही प्रोटोकॉल की परवाह करते और ना ही अपने बड़े-बुजुर्गों की। हम जहाँ भी जाते हैं, बस इसी अभिलाषा से जाते हैं कि हमें सम्मानित किया जाए। हम कभी मंच से बाहर रहकर काम करने में विश्वास नहीं करते अपितु मंच पर आसीन होने के लिए धक्का-मुक्की करते नजर आते हैं। अगर मंच पर पधारने हेतु संचालक हमारे नाम पुकारने में देरी करता है तो हम खुद ही बिना बुलाए मंच पर पहुँच जाते हैं, ये कैसी सभ्यता? यह कैसी शिष्टता?इतना ही नहीं हम हद तो तब कर देते हैं जब फोटो खिंचवाने के लिए धक्का-मुक्की कर देते हैं और उस सम्मानित व्यक्ति को भी पीछे कर देते हैं, जिसके साथ हमें फोटो खिंचवाना होता है। इस सब बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।
अंत में मैं इस सफल आयोजन के लिए करबद्ध होकर मॉरीशससरकार, डॉ. सरिता बुधु जी एवं श्री अरविन्द बिसेसर जी को धन्यवाद देता हूँ.... जयभोजपुरी! जय मारिशस!


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